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दावा फेल, गोरखपुर शहर में चल रहा रीफिलिंग का खेल Gorakhpur News

रसोई गैस की खपत एलपीजी आटो में खूब होती है। जब ईंधन की जरूरत होती है तो एलपीजी पंप पर जाने की बजाय आटो चालक रीफिलिंग वालों के पास जाना पसंद करते हैं।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Tue, 25 Feb 2020 08:34 AM (IST)Updated: Tue, 25 Feb 2020 08:34 AM (IST)
दावा फेल, गोरखपुर शहर में चल रहा रीफिलिंग का खेल Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। उपभोक्ता रसोई गैस की घटतौली से जूझ रहे हैं तो दूसरी ओर जिले में इसकी कालाबाजारी खुलेआम हो रही है। इस पर रोक लगाने का विभागीय दावा पूरी तरह से फेल है। आलम यह है कि गाडिय़ों से लेकर छोटे सिलेंडर तक में रसोई गैस भरी जा रही है।

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दुकान देखकर नहीं लगा सकते अंदाजा

रीफिलिंग करने वालों की दुकान देखकर इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है कि यहां यह कारोबार चल रहा है। मुख्य सड़क के बगल स्थित दुकान में रसोई गैस सिलेंडर नजर नहीं आता। इसका भंडारण कहीं और करते हैं। जब जरूरत होती है, सिलेंडर लाकर फिलिंग करते हैं।

एलपीजी आटो में खूब होती है खपत

रसोई गैस की खपत एलपीजी आटो में खूब होती है। जब ईंधन की जरूरत होती है तो एलपीजी पंप पर जाने की बजाय आटो चालक रीफिलिंग वालों के पास जाना पसंद करते हैं। दुकान के सामने आटो खड़ी कर देते हैं और लंबे पाइप के जरिये एलपीजी भर दी जाती है। भरते समय केवल एक सिलेंडर दुकान के किसी कोने में रखा होता है।

यहां होती है रीफिलिंग

जिले के तकरीबन हर कस्बे में रसोई गैस की रीफिलिंग होती है। शहर की बात करें तो पैडलेगंज से रुस्तमपुर रोड की दुकानों में, हार्बर्ट बांध पर, राजघाट क्षेत्र के ट्रांसपोर्टनगर पुलिस चौकी क्षेत्र में, दाउदपुर चौराहा, मेडिकल रोड, खोराबार में यह कारोबार खूब चल रहा है।

सुरक्षा की दृष्टि से भी खतरनाक

अवैध रीफिलिंग सुरक्षा की दृष्टि से भी खतरनाक होती है। अधिकतर दुकानें आबादी वाले क्षेत्रों में ही होती हैं। यदि कोई घटना हुई तो काबू पाना आसान नहीं होगा।

डेढ़ साल में एक दर्जन एफआइआर

जिला आपूर्ति विभाग की ओर से अवैध रूप से रीफिलिंग करने वालों पर कार्रवाई की रफ्तार काफी धीमी है। पिछले करीब डेढ़ साल में एक दर्जन कारोबारियों पर ही एफआइआर दर्ज कराई गई है।

गैस की रीफिलिंग पूरी तरह से अवैध

इस संबंध में जिला पूर्ति अधिकारी आनंद सिंह का कहना है कि रसोई गैस की रीफिलिंग पूरी तरह से अवैध है। इसपर रोक लगाने के लिए नियमित रूप से निरीक्षण किया जाता है। कोई मामला मिलने पर एफआरआर भी दर्ज कराई जाती है।


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