हाशिये के पात्रों को केंद्र में लाने का प्रयास है पुनर्लेखन
गोरखपुर: रीराइटिंग अथवा पुनर्लेखन का उद्देश्य वास्तव में सामाजिक संरचना तथा हेजिमनी से प्रश्न करन
गोरखपुर: रीराइटिंग अथवा पुनर्लेखन का उद्देश्य वास्तव में सामाजिक संरचना तथा हेजिमनी से प्रश्न करना है, लेकिन इसके पीछे निहित मंतव्य नकारात्मक न होकर पूर्णतया सकारात्मक है। पुनर्लेखन, मुख्यधारा लेखन के हाशिये के पात्रों को केंद्र में ले आने का एक प्रयास है।
यह वक्तव्य दिया कल्याणी विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर नीलाद्री चटर्जी ने, जो सोमवार को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग द्वारा आयोजित दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। प्रो. चटर्जी ने अपने वक्तव्य में संगोष्ठी के मूल विषय रीराइटिंग द पास्ट : लिटरेचर, मिथ एंड हिस्ट्री पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि वैचारिक मतभेद का यह अर्थ बिल्कुल नहीं कि इससे टकराव की स्थिति पैदा हो बल्कि ऐसी स्थितिया विमर्श की अनकही संभावना को जन्म देती है।
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे गोरखपुर विश्वविद्यालय के कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. अशोक श्रीवास्तव ने पुनर्लेखन, इतिहास, मिथक तथा साहित्य के बीच के अंतर्सबंधों को स्पष्ट किया। इससे पहले मेजबान विभागाध्यक्ष तथा संगोष्ठी की संयोजक प्रो. हुमा सब्जपोश ने अतिथियों का स्वागत तथा विषय प्रवर्तन किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. अजय कुमार शुक्ला तथा संचालन आयोजन सचिव प्रो. शिखा सिंह ने किया।
पहले दिन के दूसरे सत्र में पुनर्लेखन के विभिन्न आयामों पर हुई परिचर्चा में अंग्रेजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. एसजेडएच आबिदी, ¨हदी विभाग के प्रो. अनिल कुमार राय, इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. हिमाशु चतुर्वेदी तथा मेजबान विभागाध्यक्ष हुमा सब्जपोश ने भाग लिया। इस दौरान बहुत से लोग मौजूद थे।