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मोरारी बापू ने कहा-मानस में कुछ भी अशुभ नहीं Gorakhpur News

मानस में राक्षस व उसके चरित्र का वर्णन है वह भी शुभ है। राक्षस में भी राम और सीता (रा और स) का दर्शन होता हैं। इसलिए ठाकुरजी से प्रार्थना करना कि सब छूट जाए मानस न छूटे।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Mon, 07 Oct 2019 07:27 PM (IST)Updated: Mon, 07 Oct 2019 10:00 PM (IST)
मोरारी बापू ने कहा-मानस में कुछ भी अशुभ नहीं Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। मानस स्वयं योगी है। वह योगिराज है। मानस नाथ है जो हम जैसे अनाथों पर कृपा करके सनाथ बना देता है। यह साक्षात विग्रह है ठाकुरजी का। इसमें कुछ भी अशुभ नहीं है। सब शुभ ही शुभ है। मानस में राक्षस व उसके चरित्र का वर्णन है, वह भी शुभ है। राक्षस में भी राम और सीता (रा और स) का दर्शन होता हैं। इसलिए ठाकुरजी से प्रार्थना करना कि सब छूट जाए, मानस न छूटे।

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यह बातें प्रख्यात संत मोरारी बापू ने कही। वह यहां चंपा देवी पार्क में सोमवार को व्यास पीठ से श्रद्धालुओं को श्रीराम कथा सुना रहे थे। श्रीराम कथा 'मानस जोगी ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की स्मृति में गोरखनाथ मंदिर व श्रीराम कथा प्रेम यज्ञ समिति के तत्वावधान में आयोजित है। मोरारी बापू ने कहा कि मानस का बालकांड व अयोध्या कांड ठाकुर जी के हाथ-पैर हैं। अरण्य कांड कटि, किष्किंधा कांड वक्ष, सुंदर कांड हृदय, लंका कांड मस्तक व उत्तर कांड मां जानकी की दी हुई निर्भीक बुद्धि की प्रज्ञा है। तीन वस्तु- विश्वास, समस्त आशा से मुक्ति व दासत्व, यदि जीवन में आ जाए तो हर चीज में राम का दर्शन हो जाए। इन तीन चीजों के जीवन में आ जाने से विराट को बांहों में भर लेने की क्षमता आ जाती है। कई बार व्यक्ति दो कदम (विश्वास व समस्त आशा से मुक्ति) उठा लेता है लेकिन इस बात को लेकर उसके भीतर अहंकार आ सकता है, इसलिए गोस्वामी जी ने तीसरा सूत्र दिया है- दासत्व। रावण का विश्वास बहुत प्रबल है, हिमांचल उठ जाता है लेकिन रावण का विश्वास अचल बना रहता है। दोष रावण में है, उसके आचरण में नहीं। राम से उसकी तू-तू-मैं-मैं होती है लेकिन वह किशोरी जी (जानकी जी) का दास है। ये तीनों चीजें जीवन में आ जाएं तो राक्षस में भी राम-सीता का दर्शन हो जाता है। इसलिए मानस में कुछ भी अशुभ नहीं है।

शिव ने किया सती का त्याग

मोरारी बापू ने कहा कि कुंभज ऋषि के आश्रम में शिव-पार्वती कथा सुनने आए हैं। ऋषि ने दोनों की पूजा की और कथा सुनाई। परंपरानुसार यजमान ही कथाव्यास की पूजा करते हैं, सती के मन में यह बात आती है कि जो मेरी पूजा कर रहा है, वह कथा क्या सुनाएगा। इसलिए श्रोता मंडल से गोस्वामी जी सती को अनुपस्थित कर देते हैं। फिर जब कथा सुनकर वे लौटने लगते हैं तो सती पुन: शिव के साथ आ जाती हैं। दक्षिणा में कुंभज ऋषि भक्ति मांगते हैं। शिव-पार्वती लौट रहे हैं। मार्ग में दंडक वन में भगवान राम सीता की खोज में विरही अवस्था में दिखाई पड़ते हैं। शिव ने उन्हें दूर से ही प्रणाम किया। सती के पूछने पर उन्होंने बताया कि जिसकी कथा सुनकर आ रही हो, ये वही पारब्रह्म परमेश्वर हैं। सती के मन में संदेह हुआ। समझाने पर भी वह नहीं मानी तो शिव हंसे और कहा परीक्षा करके देख लो। वह सीता का रूप धारण कर उनकी परीक्षा लेने पहुंची। राम ने उन्हें देखते ही प्रणाम किया और कहा आप अकेले घूम रहीं हैं, महादेव कहां हैं। सती को सीता रूप धारण करने की बात जानकर शिव ने उनका त्याग कर दिया लेकिन कृपालु शिव सती से यह बात कहे नहीं और कैलाश जाकर अखंड समाधि में लीन हो गए।

बाबा को देखा फक्कड़ योगी के रूप में

मोरारी बापू ने कहा कि कल गोरखनाथजी के दर्शन को गया था। बाबा (गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ) को फक्कड़ योगी के रूप में देखा, आरती करते हुए।

बापू ने बताई कुयोगी की परिभाषा

बापू ने योगी की बात करते हुए कुयोगी की दो परिभाषा बताई। उन्होंने कहा कि जिसको परम तत्व दुर्लभ लगे, वह कुयोगी है। जो मोह के वृक्ष को समूल उखाड़ नहीं पाता है, वह भी कुयोगी है।

किन्नर भी पहुंचे राम कथा सुनने

किन्नरों का एक समूह भी श्रीराम कथा सुनने पहुंचा। बापू ने उन्हें देखकर कहा जय माता जी और प्रणाम किया। किन्नरों ने भी उन्हें प्रणाम कर आसन ग्रहण किया।

बुजुर्ग घर में रहें, युवा कथा सुनने आएं

लम्हा बीत न जाए, इसलिए युवाओं को आमंत्रित करता हूं, कथा में आने के लिए। बुजुर्ग घर में रहें। उम्र के नाते कथा में आकर सोने से अच्छा है वह घर पर सोयें टीवी देखें। 


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