North Eastern Railway: तीन माह में रेलवे ने बचा लिया 15 हजार किलो लीटर पानी
गोरखपुर के दोनों वाशिंग पिट में प्रतिदिन लगभग 15 रेक धुलाई के लिए पहुंचती हैं। इसमें करीब 250 से 300 बोगियों की धुलाई होती है। सिर्फ एक बोगी की धुलाई में ही 250- 300 लीटर पानी खर्च हो जाता है।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। बोगियों की धुलाई में खर्च होने वाला पानी अब वाशिंग पिट की नालियों में नहीं बह रहा। बर्बाद होने वाले पानी का बार-बार उपयोग हो जा रहा है। साथ ही पानी संरक्षित भी होने लगा है। यह संभव हुआ है गोरखपुर सहित प्रमुख स्टेशनों के वाशिंग पिट में स्थापित री-साइकिलिंग प्लांट से। गोरखपुर के न्यू और ऐशबाग स्थित री-साइकिलिंग प्लांट ने कार्य करना शुरू कर दिया है। एक अप्रैल से 30 जून तक ही तीन माह में प्लांट ने लगभग 15 हजार किलो लीटर पानी बचा लिया है।
पाइप लगाने का कार्य अंतिम चरण में
गोरखपुर स्थित ओल्ड वाशिंग पिट में भी री-साइकिलिंग प्लांट बनकर तैयार हो चुका है। पाइप लगाने का कार्य अंतिम चरण में है। जल्द ही यह प्लांट भी शुरू हो जाएगा। गोरखपुर के दोनों वाशिंग पिट में प्रतिदिन लगभग 15 रेक धुलाई के लिए पहुंचती हैं। इसमें करीब 250 से 300 बोगियों की धुलाई होती है। सिर्फ एक बोगी की धुलाई में ही 250- 300 लीटर पानी खर्च हो जाता है। दोनों पिट में लगभग ढाई करोड़ की लागत से 50-50 हजार लीटर क्षमता के वाटर री- साइकिलिंग प्लांट तैयार किए गए हैं।
भवनों पर तैयार हो रहे रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट
रेलवे सिर्फ भूमिगत जल को ही संरक्षित नहीं कर रहा, बल्कि बारिश के एक-एक बूंद को भी सहेजने में अहम भूमिका निभा रहा है। इसके लिए 200 वर्ग मीटर व उससे अधिक क्षेत्रफल वाले छत के सभी भवनों में अनिवार्य रूप से रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट (वर्षा जल संचयन) तैयार किए जा रहे हैं। गोरखपुर स्टेशन के अलावा रनिंग रूम, रेलवे अधिकारी क्लब, सीनियर सेकेंड्री स्कूल, ट्रांजिट हाउस और 400 बेड वाले अस्पताल में रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट कार्य कर रहे हैं। पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह का कहना है कि जल संरक्षण को लेकर रेलवे में महत्वपूर्ण कार्य किए जा रहे हैं। विभिन्न स्थलों पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए जा रहे हैं। पानी बचाने के लिए वाटर री-साइकिलिंग प्लांट भी लगाए जा रहे हैं।