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सर्वे तक ही सिमट कर रह गईं भारत से नेपाल को जोडऩे वाली रेल परियोजनाएं

वर्ष 2016 में बढऩी स्टेशन से काठमांडू तक 359 किमी रेल लाइन सर्वे कार्य के लिए बजट स्वीकृत किया गया। बढऩी तक का सर्वे कार्य पूरा कर लिया है। इसके बाद प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Thu, 02 May 2019 10:37 AM (IST)Updated: Fri, 03 May 2019 09:50 AM (IST)
सर्वे तक ही सिमट कर रह गईं भारत से नेपाल को जोडऩे वाली रेल परियोजनाएं
सर्वे तक ही सिमट कर रह गईं भारत से नेपाल को जोडऩे वाली रेल परियोजनाएं

गोरखपुर, प्रेम नारायण द्विवेदी। मित्र राष्ट्र नेपाल से संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने, आवागमन की सुविधा और अधिक विकसित करने के लिए भारत वहां काठमांडू तक रेल लाइन बिछाने के लिए सत्तर के दशक से प्रयास कर रहा है। दोनों देशों की सामरिक, आर्थिक, आध्यात्मिक और रोटी-बेटी के सामाजिक रिश्ते को और मजबूत बनाने के लिए रेल परियोजनाएं तैयार की। लेकिन अभी तक परवान नहीं चढ़ सकीं।
परियोजनाएं फाइलों से बाहर नहीं निकल सकीं। फिलहाल यह परियोजना सिर्फ भारत में सर्वे तक ही सिमट कर रह गईं। तत्कालीन रेलमंत्री सुरेश प्रभाकर प्रभु ने वर्ष 2016 के रेल बजट में काठमांडू तक रेल लाइन बिछाने के लिए सर्वे की घोषणा की। भारतीय क्षेत्र में सर्वे पूरा हो गया है, लेकिन नेपाल में सर्वे के लिए पड़ोसी सरकार की इजाजत नहीं मिल पा रही। अब जबकि चीन पड़ोसी देशों तक रेल लाइन का विस्तार करने में जुटा हुआ है, भारत की इस परियोजना पर चर्चा जरूरी है।

सर्वे तक सिमटी प्रभु की कोशिश
वर्ष 2016 में तत्कालीन रेलमंत्री सुरेश प्रभाकर प्रभु ने पूर्वोत्तर रेलवे के बढऩी स्टेशन से काठमांडू तक 359 किमी रेल लाइन सर्वे कार्य के लिए 0.54 करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया। रेलवे ने भारतीय क्षेत्र में पडऩे वाले बढऩी आदि का सर्वे कार्य पूरा कर लिया है। इसके बाद प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई।
रेल प्रशासन ने छह बार नेपाल सरकार को लिखा पत्र
सुरेश प्रभु की घोषणा के बाद रेल प्रशासन ने नेपाल में पडऩे वाले क्षेत्र में सर्वे के लिए छह बार पत्र लिखा लेकिन नेपाल से सहमति नहीं मिली। रेलवे के अनुसार 22 मार्च 2016, 16 मई 2016, 29 मार्च 2017, 21 अगस्त 2017, 27 अप्रैल 2018 तथा 26 जुलाई 2018 को पत्र लिखा गया।
ठंडे बस्ते में नौतनवा-सोनौली व सोनौली-भैरहवा रेल लाइन
प्रारंभिक सर्वे पूरा होने के बाद भी नौतनवा-सोनौली और सोनौली-भैरहवा नई रेल लाइन ठंडे बस्ते में चली गई। अप्रैल 1978 में नौतनवां से सोनौली तक नई रेल लाइन की स्वीकृति मिली थी। प्रारंभिक सर्वे हुआ लेकिन रेट आफ रिटन्र्स सर्वे निगेटिव आना बड़ी समस्या बन गई। यही स्थिति सोनौली-भैरहवा नई रेल लाइन की भी रही। इसे अगस्त 1988 में स्वीकृति मिली। रेट आफ रिटन्र्स सर्वे तो पॉजीटिव आया लेकिन आज तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया। रेल लाइन बिछाने से पहले यातायात, लागत और कमाई का आंकलन किया जाता है और इसे रेट आफ रिटन्र्स सर्वे कहते हैं। रेट आफ रिटन्र्स 14 फीसद या उससे ऊपर होने पर ही रेल लाइन के लिए स्वीकृति मिलती है।

नेपालगंज और भैरहवा रेल लाइन भी लटकी
वर्ष 2006 में रेलवे बोर्ड ने भारत को नेपाल से जोडऩे के लिए दो परियोजनाओं की स्वीकृति दी। एक नेपालगंज रोड से नेपालगंज तक लगभग 12 किमी। इसके लिए करीब 150 करोड़ का बजट भी स्वीकृत हो गया। दूसरी नौतनवां से भैरहवा तक लगभग 15 किमी। इसके लिए करीब 177 करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ। लेकिन दोनों परियोजनाएं रेट आफ रिटन्र्स सर्वे के पेंच में फंस गईं। नेपालगंज रोड नई रेल लाइन का आरओआर माइनस 3.81 फीसद आया वहीं भैरहवा का माइनस 4.14 फीसद हुआ।
रेलवे ने नौतनवा-भैरहवा लाइन के लिए बोर्ड को भेजी रिपोर्ट
वर्ष 2017-18 में नौतनवा से भैरहवा तक लगभग 20 किमी नई रेल लाइन के लिए सर्वे कराया। रेलवे प्रशासन ने फाइनल लोकेशन रिपोर्ट बोर्ड को भेज दिया है। तीन स्टेशनों के लिए स्थलों का चयन भी कर लिया गया है। नौतनवां स्टेशन से आगे सोनौली इंडियन कस्टम स्टेशन, नेपाल कस्टम स्टेशन और भैरहवा स्टेशन। बोर्ड ने करीब 335 करोड़ का बजट स्वीकृत कर दिया है। हालांकि इसका आरओआर माइनस में .55 आया है। रेलवे बोर्ड ने अभी निर्णय नहीं लिया है। यही स्थिति बाबागंज-नेपालगंज की है। रेलवे प्रशासन ने रेलवे बोर्ड को फाइनल लोकेशन रिपोर्ट भेज दिया है।

बौद्ध सर्किट पर भी नहीं बन पा रही बात
रेलवे बोर्ड ने भारत और नेपाल में पडऩे वाले भगवान बुद्ध से संबंधित तीर्थ स्थलों को रेल मार्ग से जोडऩे की योजना तैयार की है। लेकिन इसपर भी बात नहीं बन पा रही है। कुशीनगर-कपिलवस्तु 160 किमी नई रेल लाइन की स्वीकृति 2011-12 में मिली। रेलवे प्रशासन ने भारत क्षेत्र का प्राथमिक सर्वे पूरा कर लिया लेकिन नेपाल क्षेत्र का सर्वे आज तक पूरा नहीं हुआ। 
नेपाल तक पहुंचेगा सामान, बढ़ेगी आय
रेल लाइन से माल गाडिय़ां सीधे भैरहवा और काठमांडु तक पहुंचेंगी।  हैदराबाद, बेंगलूरू, कोलकाता, हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात से लोड सामान सीधे नेपाल में पहुंचेगा। अगर भैरहवा और नेपालगंज तक भी रेल लाइन बिछ जाती है तो इन स्टेशनों पर उतारा गया सामान सड़क मार्ग से नेपाल की राजधानी काठमांडू के अलावा अन्य शहरों में आसानी से पहुंच जाएगा। मालगाडिय़ों के अलावा यात्री ट्रेनें भी चलने लगेंगी। लोगों की भारत यात्रा भी आसान हो जाएगी। पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। रेलवे की आय भी बढ़ेगी।
भारत को भी लानी होगी तेजी
पूर्वोत्तर रेलवे के पूर्व मुख्य परिचालन प्रबंधक राकेश त्रिपाठी बताते हैं कि चीन ने वर्ष 2016 से ही काठमांडू तक रेल लाइन बिछाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सर्वाधिक ऊंचाई पर तिब्बत के ल्हासा से सिगाट्से 540 किमी रेल लाइन बिछनी शुरू हो गई है। सिगाट्से से जाइरांग दर्रा होते हुए काठमांडू तक 338 किमी रेल लाइन की भी तैयारी चल रही है। सिगाट्से तक कार्य पूरा होने के बाद काठमांडू तक रेल लाइन बिछाना आसान हो जाएगा। चर्चा तो यह भी है कि चीन काठमांडू से भैरहवा तक रेल लाइन बिछाने की तैयारी में है। ऐसे में भारत को भी पीछे रहने की जरूरत नहीं है। भारत को नेपाल सरकार से वार्ता कर भारत-नेपाल रेल लाइन परियोजना में तेजी लानी होगी। इससे दोनों देशों के संबंध प्रगाढ़ होंगे।
हालांकि, भारत और नेपाल सरकार के बीच रक्सौल से काठमांडू तक नई रेल लाइन पर आम सहमति बन गई है। सात अप्रैल 2018 को इस पर मुहर भी लग गई। सर्वे के लिए कोंकण रेलवे को जिम्मेदारी दी गई है। सर्वे शुरू है। इसके अलावा भारत-नेपाल सरकार ने पांच बार्डर क्रास रेल लाइन पर भी प्रस्ताव तैयार किया है। जिसमें नौतनवा-भैरहवा, न्यू जलपाईगुड़ी-काकरभिट्टा, नेपालगंज रोड- नेपालगंज, जयनगर-जनकपुर-कुर्था और जोगबनी-विराटनगर शामिल हैं। पूर्व मुख्य परिचालन प्रबंधक के अनुसार चीन वैश्विक स्तर पर सड़क, रेल और जल के माध्यम से वन बेल्ट, वन रोड का प्रस्ताव तैयार कर रहा है, जिसे 2049 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस प्रस्ताव में 152 देश जुड़ेंगे, जिसमें उनके विकास का भी खाका तैयार किया गया है।

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रेलवे बार्ड के दिशा-निर्देश पर भारत में पडऩे वाले क्षेत्र का सर्वे कार्य पूरा कर लिया गया है। नेपाल में सर्वे के लिए रेलवे बोर्ड स्तर पर पत्र लिखा गया है। रेलवे बोर्ड के आदेश के क्रम में आगे की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। - संजय यादव, सीपीआरओ, पूर्वोत्तर रेलवे


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