साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ने कहा-भारतीय साहित्य को बचाने के लिए जगानी होगी जनचेतना Gorakhpur News
देश भर में अंग्रेजी और अंग्रेजी में शिक्षा पर जोर है। भारतीय भाषाओं और उसके साहित्य की समृद्धि में लोगों का यह अंग्रेजी प्रेम घातक सिद्ध हो रहा है। इसका गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
गोरखपुर, जेएनएन। साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष विश्वनाथ तिवारी को उनके मूल स्थान (गोरखपुर) में महत्तर सम्मान देने की परंपरा निभाने के लिए साहित्य अकादमी के वर्तमान अध्यक्ष मशहूर कन्नड़ साहित्यकार चंद्रशेखर कंबार गोरखपुर शहर में थे। ज्ञानपीठ अवार्डी पद्मश्री साहित्यकार कंबार शहर में हों तो उनसे साहित्य की वर्तमान चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं पर बातचीत लाजिमी थी। उन्होंने दोनों ही मुद्दों पर खुलकर अपना पक्ष रखा।
साहित्य अकादमी के सामने इस समय यह सबसे बड़ी चुनौती
साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ने कहा कि अंग्रेजियत ने पूरे देश को अपने शिकंजे में ले रखा है। देश भर में अंग्रेजी और अंग्रेजी में शिक्षा पर जोर है। भारतीय भाषाओं और उसके साहित्य की समृद्धि में लोगों का यह अंग्रेजी प्रेम घातक सिद्ध हो रहा है। इसका गंभीर प्रभाव आने वाले समय में भारतीय भाषाओं के साहित्य पर पड़ेगा। वह कमजोर होगा। ऐसे में भारतीय भाषाओं की साहित्यिक समृद्धि आगे भी बनी रहे, साहित्य अकादमी के सामने यह बड़ी चुनौती है। इसके लिए अकादमी तो हर संभव प्रयास में लगी ही है, सरकार को भी आगे आना होगा। भारतीय भाषा के साहित्य की समृद्धि को कायम रखने के लिए जनचेतना को जगाना होगा।
इससे साहित्य सृजन कमजोर नहीं कमजोर हुआ
कंबार ने कहा कि साहित्य सृजन के इतिहास में जाएं तो शुरुआत में इसकी परंपरा श्रवण थी। विकास के अलग-अलग दौर से गुजरते हुए यह लेखन से लेकर दृश्य परंपरा तक पहुंची और एक बार फिर श्रवण परंपरा की ओर बढ़ चली है। यह समय की जरूरत है और समय के साथ चलना ही होगा। इससे साहित्य सृजन कमजोर नहीं सशक्त होता है।
किताबें पढ़ने के अब कई माध्यम
चंद्रशेखर कंबार ने कहा कि देश के किसी कोने में लगने वाले पुस्तक मेले में कद्रदानों की भीड़ पाठकों की घटती तादाद को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम को झुठलाती है। किताबें छप रही हैं और जमकर पढ़ी भी जा रही हैं। हां, यह जरूर है कि पढऩे के माध्यम अब कई हो गए हैं। कोई इंटरनेट के माध्यम से पढ़ ले रहा है तो किसी ने अपने मोबाइल में ही इसे लेकर इंतजाम कर रखा है।
साहित्य में जल्दबाजी ठीक नहीं
कंबार ने कहा कि साहित्य एक साधना है और साधना में जल्दबाजी ठीक नहीं। साधना के लिए समय और निरंतरता बेहद जरूरी है। ऐसे में लोकप्रियता की जल्दबाजी सृजनात्मक क्षमता में ठहराव पैदा कर देती है, जो किसी भी युवा साहित्यकार के भविष्य के लिए ठीक नहीं। इससे उनका साहित्यिक भविष्य तो प्रभावित होगा, देश के साहित्यिक भविष्य पर
युवा साहित्यकारों को समझनी होगी अपनी अहमियत
साहित्य अकादमी के अध्यक्ष का कहना है कि युवा साहित्यकारों को अपनी अहमियत समझनी होगी। उन्हें यह समझना होगा कि वह आने वाले समय में भारतीय साहित्य की समृद्धि को बचाए रखने की महती जिम्मेदारी उनपर है। युवा साहित्यकार साहित्य अकादमी सहित सभी साहित्यिक संस्थाओं से मिलने वाली सुविधाओं का लाभ उठाएं और अपने सृजन को ऊंचाई देने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहें। साथ ही साथ वरिष्ठ साहित्यकारों से संपर्क भी बनाए रखें।