गोरखपुर, उमेश पाठक। गांव का नाम लेते ही लोगों से आबाद क्षेत्र का दृश्य आंखों के सामने आकार ले लेता है। कोई ऐसे दृश्य की कल्पना नहीं करता, जिसमें एक भी घर न हो। कल्पना भले ही न की जा सकती हो, लेकिन यह सच है। जिले में 465 ऐसे राजस्व गांव हैं, जहां चिराग नहीं जलता यानी कोई परिवार यहां आबाद नहीं है। राजस्व की भाषा में इसे गैर आबादी वाले गांव या बेचिरागी मौजा कहते हैं। इन गांवों में लोग खेती तो करते हैं, लेकिन रहते नहीं हैं। आबादी न होने के कारण घरौनी योजना के अंतर्गत भी इन गांवों को शामिल नहीं किया गया है। गैर आबादी वाले गांवों में से कई पहले आबाद भी थे, लेकिन प्राकृतिक कारणों से लोगों को यहां से पलायन करना पड़ा।

गांवों के आबादी वाले क्षेत्र में स्वामित्व निर्धारित करने के लिए ड्रोन सर्वे कराया गया है और घरौनी बनाने की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन इसके बीच 465 गांवों में सर्वे कराने की जरूरत ही नहीं महसूस की गई। राजस्व रिकार्ड में इन गांवों में आबादी नहीं है। हकीकत भी ऐसी ही है। सबसे अधिक गैर आबादी वाले गांव गोला तहसील क्षेत्र में हैं।

नदियों एवं जंगलों के किनारे हैं अधिकतर गैर आबाद गांव

गैर आबाद गांव अधिकतर नदियों एवं जंगलों के किनारे हैं। जंगलों के किनारे वाले गांवों में इक्का-दुक्का लोग कभी रहा करते थे, लेकिन सुविधाएं न होने से वहां से चले गए। इसी तरह नदियों के किनारे के कुछ गांव कटान की भेंट चढ़ गए और वहां के लोगों को दूसरी जगह बसना पड़ा। राजस्व विभाग के अधिकारी व कर्मचारी गांवों के गैर आबादी होने के पीछे पलायन को कारण नहीं मानते। उनका कहना है कि जमींदारी प्रथा के समय राजस्व से जुड़ी प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए कुछ ऐसे क्षेत्रों को भी राजस्व गांव में परिवर्तित कर दिया गया, जहां आबादी नहीं थी। उनका दावा है कि ये स्थान रहने लायक नहीं थे, लेकिन कुछ लोग इन गैर आबाद गांवों में अपने पूर्वजों के आवासित रहने का दावा करते हैं। राजस्व विभाग की ओर से घरौनी बनाने के अलावा अन्य सभी काम होते हैं, यहां की खतौनी भी बनती है।

कटान के कारण छोड़ना पड़ा गांव

नदी के कटान के कारण कई लोगों को अपना गांव छोड़ना पड़ा और ये गांव अब गैर आबाद के रूप में दर्ज हैं। गोला तहसील में कोटियादीप शाह एवं कोहड़ाभावर गैर आबाद गांव हैं और यहां के लोगों को नदी के कटान के कारण वहां से हटना पड़ा। उरुवा ब्लाक के ग्राम अराव जगदीश के पूर्व प्रधान लाल साहब सिंह बताते हैं कि चकवलीद गांव 1945 से गैर आबाद है। वहां लोग खेती तो करते हैं, लेकिन कोई बसता नहीं। ग्राम पंचायत हर्रेडाड़ निवासी कृपा नरायण श्रीवास्तव बताते हैं कि गैर आबाद गांव परसी में भी कोई नहीं बसा।

क्या कहते हैं लोग

देवेंद्र यादव ने कहा कि हमारे पूर्वज कोटियादीप शाह गांव के रहने वाले हैं। नदी की कटान के कारण सबको गांव छोड़ना पड़ा। अब कोटियानिरंजन में रहते हैं। वह गांव गैर आबाद है।

खड़ेसरी के राजन तिवारी ने कहा कि मेरे बाबा विश्वंभर नाथ तिवारी बताते हैं कि कोहड़ाभावर दो पुश्त पहले ही कट चुका है। यहां के लोग अब खड़ेसरी में रहते हैं। वहां खेत हैं।

Edited By: Pragati Chand