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गोरखपुर की इन तंग गलियों में बीता परमहंस योगानंद का बचपन Gorakhpur News

बहुत कम लोग जानते हैं कि परमहंस योगानंद का जन्म और शुरुआती परवरिश गोरखपुर की तंग गलियों में हुई।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Tue, 31 Dec 2019 10:23 AM (IST)Updated: Tue, 31 Dec 2019 04:50 PM (IST)
गोरखपुर की इन तंग गलियों में बीता परमहंस योगानंद का बचपन Gorakhpur News
गोरखपुर की इन तंग गलियों में बीता परमहंस योगानंद का बचपन Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। यूं तो गोरखपुर के कोतवाली क्षेत्र के मुफ्तीपुर का नाम आते ही संकरे रास्ते और तंग गलियों का दृश्य आंखों के सामने घूम जाता है। लेकिन, इन सबके बीच एक सुखद अहसास है परमहंस योगानंद के बचपन की यादों का। यह वही योगानंद हैं, जिन्होंने अमेरिका में रहकर पूरे विश्व को क्रिया योग का पाठ पढ़ाया। दरअसल, योगानंद का जन्म और शुरुआती परवरिश इन्हीं तंग गलियों में हुई। लोहे की आलमारियां बनाने वाले कारखानों, किराने और पान की दुकानों के बीच से गुजरकर जाने वाली मुफ्तीपुर की एक गली के एक पुराने मकान के माथे पर टंगा बैनर इस बात की तस्दीक है। परमहंस योगानंद बर्थ प्लेस एंड म्यूजियम, लिखा है उस बैनर पर।

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1893 को हुआ था जन्‍म

योगानंद का जन्म पांच फरवरी 1893 को हुआ। उनके पिता भगवती चरण घोष तत्कालीन बंगाल-नागपुर रेलवे के मुलाजिम के तौर पर गोरखपुर में तैनात थे। उनके आठ वर्ष के गोरखपुर प्रवास के दौरान ही योगानंद का यहां जन्म हुआ। योगानंद के पिता मुफ्तीपुर के उसी घर में किराएदार थे, जहां उनका जन्मस्थल है। योगानंद के बचपन का नाम मुकुंद लाल घोष था। गोरखपुर के लोग उन्हें आज भी इसी नाम से जानते हैं। कम ही लोग जानते हैं कि उनकी प्राथमिक शिक्षा यहां के सेंट एंड्रयूज कॉलेज से शुरू हुई।

परमहंस योगानंद का संक्षिप्त अकादमिक परिचय

क्रिया योग को ईश्वर से साक्षात्कार का प्रभावी तरीका मानने वाले योगानंद ने भारतीय योग दर्शन के प्रसार के लिए अमेरिका में 'सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप' का गठन किया और बाद में हिंदुस्तान में योगदा सत्संग सोसायटी बनाई। ऑटोबायोग्राफी आफ योगी (हिंदी में योगी कथामृत) उनकी सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताब है, जिसका अनुवाद कई भाषाओं में हुआ। 1920 में सर्वधर्म सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए योगानंद अमेरिका चले गए और वहां से पूरी दुनिया में क्रिया योग का प्रचार-प्रसार किया। सात मार्च 1952 को अमेरिका में ही भारतीय राजदूत विनय रंजन सेन के सम्मान में आयोजित भोज में भारत देश का गुणगान करते हुए उनका देहावसान हो गया।

जब गोरखनाथ मंदिर में ध्यानमग्न मिले योगानंद

योगानंद के परिवार के लोग उनमें आध्यात्मिक व्यक्तित्व का दर्शन बचपन से ही करने लगे थे। इसे लेकर एक वाकया काफी मशहूर है। एक बार बालक योगानंद ने अपने परिवार वालों से गोरखनाथ मंदिर ले चलने को कहा। व्यस्तता के चलते घर वाले उन्हें गोरखपुर नहीं ले जा सके तो एक दिन वह अचानक घर से गायब हो गए। काफी खोजने के बाद वह अगले दिन सुबह गोरखनाथ मंदिर मेें ध्यान में लीन बैठे मिले। - प्रो. आरसी श्रीवास्तव, अध्यक्ष, योगदा सत्संग ध्यान मंडली, गोरखपुर।


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