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अनूठे कतरन प्रबंधन से गीता प्रेस में हो रहा पर्यावरण संरक्षण, रोजाना कटने से बच रहे तीन पेड़

Paper Recycling in Gita Press Gorakhpur गीताप्रेस में रोजाना होती है 15 हजार पुस्तकों की कटाई-छंटाई निकलती है डेढ़ टन कतरन परिसर में नहीं दिखता कागज का एक भी टुकड़ा सक्शन पाइप से गोदाम में होता है एकत्र।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 09 Jun 2022 06:05 PM (IST)Updated: Thu, 09 Jun 2022 06:18 PM (IST)
अनूठे कतरन प्रबंधन से गीता प्रेस में हो रहा पर्यावरण संरक्षण, रोजाना कटने से बच रहे तीन पेड़
Paper Recycling in Gita Press Gorakhpur: रोजाना कटने से बच जाते हैं तीन पेड़

गजाधर द्विवेदी, गोरखपुर: Paper Recycling in Gita Press Gorakhpur धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन की विश्व प्रसिद्ध संस्था गीताप्रेस, ज्ञान और नीति का उपदेश ही नहीं देती उसे आत्मसात भी करती है। किताबों की कटाई-छंटाई में निकलने वाली कतरन के व्यवस्थित निस्तारण का यहां ऐसा इंतजाम है, जो कारपोरेट कंपनियों की फैक्ट्रियों के लिए सीख है। 80 प्रतिशत रद्दी के दोबारा छपाई योग्य कागज बनने से न केवल घाटे की भरपाई हो जाती है, बल्कि हर दिन तीन पेड़ों को कटने से बचा लिया जाता है।

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एक भी टुकड़ा जमीन पर नहीं: गीताप्रेस में रोजाना 15 हजार पुस्तकों की कटाई-छंटाई होती है, लेकिन कागज का एक भी टुकड़ा फर्श पर नहीं मिलता है। गीताप्रेस प्रबंधन ने इसके लिए पूरी प्रणाली विकसित कर रखी है। कटिंग-बाइंडिंग सेक्शन से लेकर गोदाम तक सक्शन पाइप (कतरन को खींचने के लिए) बिछाया गया है, जो कागज के छोटे से छोटे टुकड़े को भी गोदाम तक पहुंचा देता है। छपाई में खराब हुए कागज, रील लादने के दौरान ट्रकों पर लगाए गए कागज, दफ्ती, सीटफेड मशीनों से निकली कतरन को कर्मचारी खुद गोदाम तक पहुंचाते हैं। गोदाम में हाइड्रोलिक बेलिंग मशीन है, जो कतरन पर उच्च दबाव देकर उसे ठोस बंडल में बदल देती है। गीताप्रेस में रोजाना डेढ़ टन (1,500 किलो) कतरन निकलती है, जो पूरे साल में लगभग 500 टन होती है। 120 किलो का एक बंडल तैयार कर उसे रीसाइकिल करने के लिए पेपर मिल में भेज दिया जाता है।

गोरखपुर में गीता प्रेस परिसर में कतरनों के बंडल बनाने वाली बेलिंग मशीन।

500 टन कतरन से बन जाएगा 400 टन कागज: रैना पेपर मिल, खलीलाबाद के महाप्रबंधक तकनीकी, एसपी शर्मा ने बताया कि कतरन को बहुत बारीक काटने के बाद रसायनयुक्त पानी में भिगोकर लुगदी बनाई जाती है। तीन-चार चरण की प्रक्रिया केबाद यह लुगदी मशीन पर सूखकर शीट बन जाती है, जिसे दोबारा छपाई के लिए प्रयोग कर लिया जाता है। यदि 500 टन कतरन को रिसाइकिल किया जाए तो लगभग 400 टन छपाई योग्य कागज तैयार हो जाएगा। इस हिसाब से गीताप्रेस हर वर्ष अपनी कतरन के 80 प्रतिशत भाग को दोबारा प्रयोग करता है।

एक पेड़ से बनता है 400 किलो कागज: महाप्रबंधक एसपी शर्मा बताते हैं कि यूकेलिप्टस के एक पेड़ से लगभग 400 किलो पेपर तैयार हो जाता है। इस हिसाब से देखें तो प्रतिदिन डेढ़ टन कतरन को रिसाइकिल कराकर दोबारा सवा टन कागज तैयार कराने वाला गीताप्रेस प्रतिदिन लगभग तीन पेड़ों को कटने से बचा रहा है। एक वर्ष का हिसाब जोड़ेंगे तो प्रतिवर्ष यह प्रेस 1,095 पेड़ों का संरक्षण कर रहा है।

छपने के बाद जमीन पर नहीं रखी जातीं पुस्तकें: गीताप्रेस में पुस्तकों की शुचिता का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। छपने के बाद फार्मा या पुस्तकें जमीन पर नहीं रखी जाती हैं। इनके लिए लकड़ी, लोहे व प्लास्टिक के पायलट (पहिये लगे हुए विशेष प्लेटफार्म) बनाए गए हैं। बाइंडिंग के समय भी पुस्तकों को दरी पर रखा जाता है।

गीताप्रेस ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल ने बताया कि संस्था की तरफ से केवल कागज की कतरन का ही प्रबंधन किया गया है। यदि परिसर में कहीं गंदगी नहीं दिखती है तो इसमें कर्मचारियों का भी बड़ा सहयोग है। कूड़ा इधर-उधर नहीं फेंका जाता है। सही जगह पर उसका निस्तारण किया जाता है।

गोरखपुर में गीता प्रेस परिसर में कतरनों के बंडल बनाने वाली बेलिंग मशीन।


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