आरपीएन सिंह के भाजपा में जाने से बदल गया पडारौना का चुनावी सीन
UP Vidhan Sabha Chunav 2022 पूर्वांचल में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे आरपीएन सिंह के भाजपा में जाने से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। पडरौना राजघराना पिछले 42 वर्ष से कांगेस के साथ था। इस राजघराने के कांग्रेस का साथ छोड़ने से पूर्वााचल का चुनावी सीन बदल गया है।
गोरखपुर, अजय कुमार शुक्ल। पडरौना राजघराने को पूर्वांचल में कांग्रेस के एक मजबूत किले के रूप में देखा जाता रहा है। इसकी वजह रही है, क्षेत्र में इस परिवार की पकड़ और पार्टी से मजबूत राजनीतिक संबंध। 1980 में जब इस राजपरिवार ने कांग्रेस का हाथ पकड़ा तो 42 वर्षों तक कभी किसी अन्य दल की ओर नहीं देखा। मंगलवार को कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह (आरपीएन सिंह) के भाजपा में शामिल होने के साथ ही उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस का यह मजबूत किला उसके हाथों से सरक गया। कुछ दिनों से कुंवर आरपीएन सिंह के भाजपा में शामिल होने की चर्चा चल रही थी। सोमवार को पडरौना राजदरबार में कांग्रेस के विधानसभा प्रभारियों से बातचीत के दौरान जागरण के कांग्रेस छोडऩे के सवाल पर खुलकर तो नहीं बोले, लेकिन मौन स्वीकृति जरूर दी थी।
बसपा-सपा की लहर में भी लगाई जीत की हैट्रिक
कुंवर आरपीएन सिंह के राजनीतिक कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब कांग्रेस उत्तर प्रदेश में जमीन खो चुकी थी, बसपा-सपा की लहर चल रही थी, उस समय आरपीएन ने पडरौना विधानसभा सीट से 1996, 2002 और 2007 में जीत की हैट्रिक लगाई। 1996 में ही पडरौना संसदीय सीट पर उनको हार का समाना करना पड़ा। 2009 में यहां से चुनाव जीतकर जब संसद पहुंचे तो संप्रग सरकार में सड़क ट्रांसपोर्ट एवं कार्पोरेट, पेट्रोलियम एवं केंद्रीय गृह राज्य मंत्री बने। इसके बाद के लगातार दो चुनावों में उनको हार जरूर मिली, लेकिन पार्टी और क्षेत्र में उनका राजनीतिक कद छोटा नहीं हुआ। कांग्रेस ने राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाकर झारखंड के विधानसभा चुनाव की कमान सौपी तो वहां जीत दिलाकर आरपीएन किंग मेकर की भूमिका में उभरे। इस्तीफा देने से पहले तक वह कांग्रेस के बड़े राष्ट्रीय चेहरों में शामिल रहे। झारखंड और छत्तीसगढ़ के प्रभारी थे।
राजघराने ने ऐसे रखा राजनीति में कदम
पडरौना राजघराने के कुंवर सीपीएन सिंह 1969 में पडरौना विधानसभा से भारतीय क्रांतिदल से चुनाव मैदान में उतरे और विधायक बने। उस समय जनता ने राजा साहब आए हैं, कहकर वोट दिया। इसके बाद इसी दल से जब 1971 में पडरौना संसदीय सीट से चुनाव मैदान में उतरे तो जनता ने साथ नहीं दिया। हार का सामना करना पड़ा। इंदिरा गांधी के कहने पर वह कांग्रेस में शामिल हुए। 1980 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में संसदीय चुनाव मैदान में उतरे और संसद पहुंचे। इंदिरा गांधी सरकार में केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री बने। 1985 में पुन: कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। कांग्रेस से ही 1989 में लोकसभा चुनाव मैदान में थे। पारिवारिक विवाद में चचेरे भाई ने ही गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। इसके बाद उनके पुत्र कुंवर आरपीएन सिंह ने राजनीति की बागडोर संभाली और कांग्रेस के साथ जुड़े रहे।
ऐसा रहा आरपीएन सिंह का राजनीतिक सफर
25 अप्रैल, 1964 को जन्मे आरपीएन सिंह ने दून स्कूल से पढ़ाई की। 1991 में पहली बार पडरौना विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे और भाजपा से हार का सामना करना पड़ा। 1996 में कांग्रेस से पडरौना संसदीय सीट से चुनाव लड़े यहां भाजपा प्रत्याशी रामनगीना मिश्र से हारे। इसी वर्ष कांग्रेस-बसपा गठबंधन से पडरौना से विधायक बने। 2002, 2007 में कांग्रेस से इसी सीट से विधायक बने। 2009 में कांग्रेस से सांसद बने। 2014, 2019 में लगातार भाजपा प्रत्याशियों से हार का सामना करना पड़ा।