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Coronavirus: हमारी संस्कृति आशावादी, शीघ्र मिलेगी महामारी से मुक्ति Gorakhpur News

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के चेयरमैन प्रो.रमेश चंद्र सिन्हा ने कहा कि हमारी संस्‍कृति आशावादी है इसलिए महामारी से छुटकारा भी जल्‍द मिल जाएगा।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Tue, 12 May 2020 08:10 AM (IST)Updated: Tue, 12 May 2020 11:00 AM (IST)
Coronavirus: हमारी संस्कृति आशावादी, शीघ्र मिलेगी महामारी से मुक्ति Gorakhpur News
Coronavirus: हमारी संस्कृति आशावादी, शीघ्र मिलेगी महामारी से मुक्ति Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। मानव दंभ को झकझोरने के लिए समय-समय पर ऐसी वैश्विक महामारियां आती रहतीं हैं। हमारी संस्कृति आशावादी है और हम शीघ्र ही इस निराशावादी माहौल से मुक्ति प्राप्त कर लेंगे। हम भविष्यवक्ता तो नहीं हो सकते, लेकिन अपने मूल्यों के आधार पर भविष्य की रूपरेखा के निर्माता हो सकते हैं। यह बातें भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के चेयरमैन प्रो.रमेश चंद्र सिन्हा ने कही। वे कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौरान एवं इसकी समाप्ति के पश्चात बेहतर भविष्य के निर्माण पर केंद्रित दो दिवसीय ऑनलाइन राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे।

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यह किसी अवसर से कम नहीं

जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के पूर्व कुलपति प्रो.योगेंद्र सिंह ने वर्तमान समय में इतिहासकार की भूमिका महाभारत के युद्ध के कृष्ण के समरूप बताया। उन्होंने महामारी को एक अवसर के रूप में बताते हुए इस दौरान लेखन जैसे रचनात्मक कार्यों से समाज में अपनी भूमिका को बेहतर ढंग से निर्वहन करने का आह्वान किया।

नंदलाल बोस ने चलाई थी राष्‍ट्रवादी मुद्दों पर कूंची

भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव प्रो. के.रत्नम ने महामारी के चित्रकला जैसे संवेदनशील कला माध्यम पर प्रभाव को स्पष्ट करते हुए नंदलाल बोस को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया, जिन्होंने 1918 की महामारी के पश्चात अपने अति यथार्थवादी चित्रकला शैली को छोड़कर राष्ट्रवादी एवं संवेदनशील मुद्दों पर अपनी कूची चलानी प्रारंभ की। सिक्किम विश्वविद्यालय गंगटोक की प्रो. वीनू ने महामारी के प्रति ब्रिटिश साम्राज्यवादी एवं भारतीय देसी रियासतों के रवैया की तुलना करते हुए महामारी के राजनीतिक पक्ष पर प्रकाश डाला।

अब सचेत रहने की जरूरत

नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी के शोध विभाग के अध्यक्ष प्रो.नरेंद्र शुक्ल ने महामारी के दौरान राज्य की भूमिका में आने वाले संभावित परिवर्तनों के प्रति सचेत करते हुए कहा कि ऐसे दौर में राज्य से व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक स्मृति में सेंध लगाने जैसे प्रयास किए जा सकते हैं, जिनसे सचेत रहने की जरूरत है। सेमिनार के संयोजक प्रो.सुगम आनंद ने वक्ताओं एवं प्रतिभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया तथा सह संयोजक प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी ने सेमिनार का संक्षिप्त कार्यवृत्त प्रस्तुत कर समापन की घोषणा की। कहा कि सेमिनार का आयोजन डॉ.भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विवि आगरा के प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद नई दिल्ली एवं भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के सहयोग से किया।


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