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एक ऐसा चौकी इंचार्ज जो पांच माह तक नहीं गया घर, करता रहा कोरोना संक्रमितों की सेवा

कोरोना संकट काल में एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ निभाने वाले पड़ोसी मुसीबत में मदद करने से कतराते रहे लेकिन मेडिकल कालेज चौकी प्रभारी गौरव राय कन्नौजिया कोरोना संकट काल के पहली और दूसरी लहर में खाकी के साथ इंसानियत का फर्ज निभाते रहे।

By Rahul SrivastavaEdited By: Updated: Mon, 09 Aug 2021 03:58 PM (IST)
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कोरोना संक्रमण काल के दौरान मरीज को भर्ती कराने ले जाते मेडिकल चौकी प्रभारी। सौ.पुलिस मीडिया सेल

गोरखपुर, सतीश कुमार पांडेय : कोरोना संकट काल में सामाजिक दूरियां बढ़ गई थीं। एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ निभाने वाले पड़ोसी मुसीबत में मदद करने से कतराते रहे, लेकिन मेडिकल कालेज चौकी प्रभारी गौरव राय कन्नौजिया कोरोना संकट काल के पहली और दूसरी लहर में 'खाकी' के साथ इंसानियत का फर्ज निभाते रहे। संक्रमण के डर से स्वजन ने साथ छोड़ा तो मेडिकल कालेज में भर्ती लोगों की तीमारदार बन सेवा की। मौत होने पर दूरी बना ली तो बेटा बन अंतिम संस्कार का बीड़ा उठाया।

2019 से मेडिकल कालेज चौकी पर प्रभारी के रूप तैनात हैं गौरव राय

बस्ती जिले के मुंडेरवा थानाक्षेत्र स्थित बोदवल गांव के रहने वाले गौरव राय कन्नौजिया जुलाई 2019 से मेडिकल कालेज चौकी पर बतौर प्रभारी तैनात हैं। कोरोना संक्रमण काल के पहली और दूसरी लहर में ड्यूटी के साथ ही उन्होंने इंसानियत का फर्जी बखूबी निभाया। लाकडाउन के समय जब लोग घरों में बंद थे, तब संक्रमितों की देखभाल करने के साथ ही तीन माह तक तीमारदारों को भोजन कराया, जिनके साथ कोई नहीं था, उनकी एक सच्चे मित्र, भाई व बेटे की तरह देखभाल की। कोरोना संक्रमित और वार्ड के आसपास रहने की वजह से हमेशा संक्रमण की चपेट में आने का डर बना रहा, लेकिन कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए गौरव ने खुद को सुरक्षित रखा। परिवार के लोग संक्रमण से बचे रहें, इसलिए पांच माह तक घर नहीं गए।

पूछती थीं बेटियां, घर क्यों नहीं आते पापा

गौरव के परिवार में माता-पिता के अलावा पत्नी और दो बेटियां हैं। सबके साथ वह शहर के रुस्तमपुर में किराये पर कमरा लेकर रहते हैं। कोरोना संक्रमण की पहली लहर में अप्रैल से सितंबर तक घर नहीं गए। उन्हें डर था कि कहीं उनकी वजह से परिवार के लोग चपेट में न आ जाए। गौरव बताते हैं कि पांच महीने तक जरूरत का सामान दरवाजे पर रखकर चला आता था, लेकिन फोन पर वीडियो काल के जरिए सबसे बातचीत होती थी। बेटियां हमेशा यहीं पूछतीं पापा घर क्यों नहीं आ रहे हो। हर दिन वह यही जवाब देना पड़ता था। जरूरी काम में फंसा हूं। एक सप्ताह में आऊंगा।

37 शवों का कराया अंतिम संस्कार

कोरोना संक्रमण की पहली लहर में 12 ऐसे लोग थे, जिनकी मौत होने पर स्वजन ने दाह-संस्कार करने से इन्कार कर दिया। दूसरी लहरमें यह संख्या 25 थी। स्वजन के किनारा करने पर मेडिकल कालेज चौकी प्रभारी ने सिपाहियों व नगर निगम की मदद से इन लोगों का अंतिम संस्कार कराया।