गजब की जागरूकता : अब Coronavirus से जिंदगी की जंग जीत लेंगे हम Gorakhpur News
प्रवासियों से परिवार गांव और इलाके को सुरक्षित रखने के लिए नागरिक इनको 14 दिन के लिए अलग रखने का इंतजाम कर रहे हैं। ग्रामीण उनके भोजन बिस्तर पंखा आदि का प्रबंध खुद कर रहे हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। कोरोना से बचाव के लिए नागरिक अब सरकार पर ही निर्भर रहने की बजाय खुद भी जागरूक हो रहे हैं। लॉकडाउन में आ रहे प्रवासियों की चिकित्सकीय जांच के बाद प्रशासन भले ही उन्हें घर जाने को कह दे रहा है लेकिन परिवार, गांव और इलाके को सुरक्षित रखने के लिए नागरिक इनको 14 दिन के लिए अलग रखने का इंतजाम कर रहे हैं। प्रवासियों के भोजन, बिस्तर, पंखा आदि का प्रबंध खुद कर रहे हैं। प्राथमिक विद्यालयों में अव्यवस्था के बारे में सुनकर घर का रुख करने वाले प्रवासी अपनों की व्यवस्था में सुकून से रह रहे हैं।
गांवों में ऐसे हो रहे जागरूक
उरुवा क्षेत्र के बेसहनी गांव में अबतक तीस से ज्यादा प्रवासी आ चुके हैं। यह सभी घर जा रहे थे लेकिन गांव के लोगों ने उनसे बात की। कोरोना से परिवार और गांव को बचाने की दुहाई दी और स्कूल में रहने की व्यवस्था कराई। गांव के करुणेश द्विवेदी बिट्टू ने छह बड़े पंखे खरीदे, बिस्तर का इंतजाम किया और चाय-नाश्ते से लेकर भोजन की व्यवस्था कराई। बिना सरकारी मदद सभी प्रवासी गांव के बाहर स्कूल में रुके हैं। प्रवासियों के साथ उनके बच्चे भी हैं।
शहर में भी सतर्कता
मोहद्दीपुर में दो दिन पहले मुंबई से ट्रेन से दो युवक आए। श्रीरामपुरम निवासी युवक ने तत्काल फोन कर स्थानीय पुलिस को जानकारी दी और घर से दूर रहने के लिए जगह उपलब्ध कराने की मांग की। इधर, दूसरा युवक घर पहुंचा तो पड़ोसियों ने आपत्ति जता दी। समस्या दोनों को ठहराने की हुई तो मोहद्दीपुर निवासी अमरेश यादव ने युवकों के ठहरने के लिए रफी अहमद किदवई स्कूल में व्यवस्था कराई। खुद मच्छरदानी खरीदी, भोजन का इंतजाम कराया।
समझाया तो मान गए
उरुवा क्षेत्र के बेसहनी निवासी करुणेश द्विवेदी बिट्टू ने कहा कि ट्रेन, बस व पैदल चलकर प्रवासी परिवार के साथ गांव में आने लगे तो कोरोना संक्रमण को लेकर सभी सतर्क हो गए। सबने आपस में बात की और फिर प्रवासियों से बात कर उनको समझाया। परिवार के लोगों ने भी हमारी बात मानी।
प्रवासियों ने की व्यवस्था की तारीफ
बेसहनी में नागरिकों के सहयोग से स्कूलों में ठहरे प्रवासियों ने यहां की व्यवस्था की तारीफ की। उनका कहना है कि जब मुंबई, गुजरात से चले तो लोगों ने बताया था कि सरकारी क्वारंटाइन केंद्रों में कोई इंतजाम ही नहीं है। यहां गांव के लोगों ने अच्छी व्यवस्था की है। सब कुछ वैसा ही है, जैसा घर पर होता है।