Nirbhaya case: फांसी से पहले ही इस दोषी को मुर्दा मान चुके हैं पैतृक गांव के लोग, बस्ती से गहरा नाता Gorakhpur News
निर्भया का एक दोषी पवन गुप्ता यूपी केे बस्ती जिले का रहने वाला है। इस घटना ने गांव के लोगों को भी झकझोर दिया और गांव के अधिकांश लोग पवन को मरा मान चुके हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। यूपी के बस्ती जिले इस गांव को सात साल पहले तक कोई नहीं जानता था। सात साल पहले देश को झकझोर देने वाले निर्भया कांड से बस्ती जिले का गांव जगरनाथपुर चर्चा में आया। निर्भया का एक दोषी पवन गुप्ता इसी गांव का रहने वाला है। इस घटना ने गांव के लोगों को भी झकझोर दिया और गांव के अधिकांश लोग पवन को मरा मान चुके हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पवन के दोस्तों को घटना का दोषी मानते हुए पवन को माफी की उम्मीद कर रहे हैं। साेमवार को जब पवन की फांसी पर फिलहाल रोक लगने की सूचना आई तो गांव के लोगों की मिलीजुली प्रतिक्रिया थी।
बुरी संगत का असर मान रहे हैं गांव वाले
गांव के लोगों का कहना था कि मौत पवन का पीछा कर रही है लेकिन कोई शक्ति ही उसे बचा रही है। गांव के लोग उस युवक का चेहरा याद कर कहते हैं कि वह ऐसा नहीं था। संगत में कहीं फंस गया। परिवार भी हंसमुख और मिलनसार है।
दिल्ली चला गया है पूरा परिवार
पवन का परिवार काफी पहले ही गांव छोड़कर दिल्ली चला गया है। पवन के पिता ने महादेवा चौराहा के पास नया मकान बनाना शुरू किया था तभी निर्भया कांड हो गया। मकान निर्माण का कार्य बंद हो गया, फिर वह दोबारा लौट कर नहीं आए। पवन के दो चाचा गांव में रहते है। पिता हीरालाल गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में पवन की क्यूरेटिव याचिका दायर की है। सोमवार को फांसी की सजा टलने की खबर सुनने के बाद सबने राहत की सांस ली। घर में ताला और गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है। ग्रामीणों से बात करने पर कुछ ने बताया कि हमें कानून के इंसाफ पर पूरा भरोसा है। पवन का यह कृत्य गांव के किसी शख्स के गले से नीचे नहीं उतर रहा है। कईयों ने न्यायालय के फैसले को अत्यधिक कठोर बताया। उनका कहना था कृत्य को सही तो नहीं ठहराया जा सकता ङ्क्षकतु उनको सुधरने का एक मौका दिया जाना चाहिए।
अपने तरह की पहली घटना
निर्भया केस ने सिर्फ देश ही नहीं दुनिया को भी हिलाकर रख दिया था। तब राजपथ, जंतर-मंतर, रामलीला मैदान समेत देश के कई हिस्सों में निर्भया के दोषियों को फांसी देने की मांग की गई थी। पवन गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दलील दी थी कि वह घटना के वक्त नाबालिग था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
यह थी घटना
दिसंबर 2012 में पैरामेडिक की छात्रा और उसका एक दोस्त एक बस में सवार हुए थे। उस बस में छात्रा से छह लोगों ने दुष्कर्म को अंजाम दिया था। दोषियों ने पीड़िता और उसके दोस्त को चलती बस से नीचे फेंक दियाथा। इसके बाद छात्रा की सिंगापुर में इलाज के दौरान मौत हो गई थी। इस मामले में अदालत ने चार लोगों अक्षय, विनय, पवन और मुकेश को दोषी ठहराया था, जबकि मामले में एक अन्य आरोपी ने दोषी साबित होने से पहले ही खुदकुशी कर ली थी। छठा आरोपी नाबालिग था, जिसे बाल सुधार गृह में सजा पूरी करने पर छोड़ दिया गया।
अभी बचे हैं यह विकल्प
सभी दोषियों की क्यूरेटिव पिटीशन जब तक सुप्रीम कोर्ट खारिज नहीं कर देगा और राष्ट्रपति दया याचिका खारिज नहीं कर देंगे तब तक दोषी फांसी पर नहीं लटकाए जाएंगे, यानि कि सभी दोषियों के पास फांसी से बचने का कानूनी विकल्प रहेगा।