कोरोना संक्रमण का नया इंजेक्शन बाजार में, डोनाल्ड ट्रंप इसी इंजेक्शन से ठीक हुए थे
कोरोना संक्रमण का असर कम कर शरीर को वायरस से लड़ने की क्षमता देने वाला इंजेक्शन बाजार में आ गया है। स्विटजरलैंड की दवा कंपनी रोश और सिप्ला ने कैसिरिविमैब और इमदेविमाब मालीक्यूल को मिलाकर इंजेक्शन बनाया है। इसमें दो मालीक्यूल के छह-छह मिलीग्राम का इस्तेमाल किया गया है।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। कोरोना संक्रमण का असर कम कर शरीर को वायरस से लड़ने की क्षमता देने वाला इंजेक्शन बाजार में आ गया है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप में कोरोना संक्रमण बढ़ने पर इसी इंजेक्शन का इस्तेमाल किया गया था। दो कंपनियों के दो मालीक्यूल से बने इस इंजेक्शन का काकटेल भी कहा जा रहा है। कोरोना संक्रमण के शुरुआती या मध्यम दौर में इंजेक्शन के इस्तेमाल से मरीज को अस्पताल में भर्ती करने की आशंका कम हो जाती है। इस इंजेक्शन से शरीर में एंटीबाडी बनती है। इससे कोरोना वायरस से लड़ना आसान हो जाता है।
दो कंपनियों ने मिलकर बनाया है इंजेक्शन, भर्ती मरीजों को लगेगा
स्विटजरलैंड की दवा कंपनी रोश और सिप्ला ने कैसिरिविमैब और इमदेविमाब मालीक्यूल को मिलाकर इंजेक्शन बनाया है। इसमें दो मालीक्यूल के छह-छह मिलीग्राम का इस्तेमाल किया गया है। 12 सौ मिलीग्राम क्षमता के इस इंजेक्शन के एक डोज की कीमत 59 हजार 750 रुपये रखी गई है। एक पैकेट में 10-10 मिलीलीटर इंजेक्शन की दो डोज आएगी। यानी एक पैकेट इंजेक्शन दो मरीजों के लिए होगा। भारत इंजेक्शन की उपलब्धता सिप्ला करा रही है।
ऐसे करती है काम
इंजेक्शन की एक डोज नस के माध्यम से मरीज को दी जाती है। यह इंजेक्शन कोरोना वायरस को मरीज की कोशिकाओं में प्रवेश करने से रोकती है और एंटीबाडी बनाकर वायरस से लड़ती है। कंपनी का दावा है कि भारत में फैले कोरोना के बी.1.617 वायरस के खिलाफ भी यह इंजेक्शन काफी प्रभावी है।
एंटीबाडी काकटेल की उपलब्धता हो गई है। डाक्टर इस दवा की मांग करेंगे। कमिश्नर से अनुमित लेकर लखनऊ डिपो को डाक्टर का पर्चा, अनुमित पत्र और रुपये भेजे जाएंगे। कुछ घंटों में दवा संबंधित मरीज तक पहुंच जाएगी। अभी गोरखपुर में किसी मरीज को यह इंजेक्शन नहीं लगाया गया है। डाक्टरों की तरफ से मांग नहीं आयी है। - योगेेंद्र नाथ दुबे, अध्यक्ष, दवा विक्रेता समिति।
कैसिरिविमैब और इमदेविमाब इंजेक्शन अभी गोरखपुर में किसी मरीज को नहीं दिया गया है। इसे कोरोना संक्रमण के खिलाफ इसे 70 फीसद तक असरदार बताया गया है। जरूरत के अनुसार मरीजों में इसका इस्तेमाल किया जाएगा। 12 साल से ज्यादा आयु के बच्चों में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। - डा. शांतनु मल्ल विसेन, फिजिशियन।