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यहां आज भी मौजूद है NER का पहला भाप इंजन, 1875 में दरभंगा से दलसिंगसराय तक की पूरी की थी यात्रा

लार्ड लारेंस भाप इंजन आज भी गोरखपुर के रेल म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहा है। वर्ष 1874 में इंग्लैंड में बना यह इंजन उत्तरी बिहार में अकाल के दौरान 01 नवंबर 1875 को 46 हजार टन खाद्यान्न और पशुओं का चारा लेकर दरभंगा से दलसिंगसराय तक 61 किमी चला था।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 18 Apr 2021 01:25 PM (IST)Updated: Sun, 18 Apr 2021 01:25 PM (IST)
एनईआर का पहला भाप इंजन वर्ष 1874 में इंग्लैंड में बना था। - फाइल फोटो

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गोरखपुर, जेएनएन। वर्ष 1874 में इंग्लैंड में बना लार्ड लारेंस भाप इंजन आज भी गोरखपुर के रेल म्यूजियम की शोभा बढ़ा रहा है। यह इंजन उत्तरी बिहार में अकाल के दौरान 01 नवंबर 1875 को 46 हजार टन खाद्यान्न और पशुओं का चारा लेकर दरभंगा से दलसिंगसराय तक 61 किमी चला था। इस दौरान ही पूर्वोत्तर रेलवे के वर्तमान दायरे की बुनियाद भी पड़ी थी।

रेलवे के विकास की कहानी कह रहे रेल म्यूजियम में रखे इंजन

रेल म्यूजियम में इंजन ही नहीं उसके गौरवशाली इतिहास को भी धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया है। साथ ही भारतीय रेलवे के गठन से पहले कंपनी काल की तस्वीरों, लोगो, ईंटों और उपकरणों के माध्यम से रेलवे के विकास गाथा को साझा किया गया है। ताकि, म्यूजियम पहुंचने वाले लोग यह जान सकें कि रेलवे कैसे धीरे-धीरे भारतीय लोगों की जीवन रेखा बन गया। म्यूजियम ही नहीं महाप्रबंधक कार्यालय और स्टेशन स्थित फर्स्ट क्लास गेट के सामने रखे गए इंजन भी रेलवे के विकास की कहानी कह रहे हैं। पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन भी अपनी धरोहरों को सहेजने का बीड़ा उठाया है।

इलेक्ट्रिक ट्रेनों तक का इतिहास है यहां 

पुरातन अभिलेखों और तस्वीरों को सहेजने के लिए पिछले साल महाप्रबंधक कार्यालय परिसर में धरोहर कक्ष का निर्माण कराया। आज इस कक्ष में प्रवेश करते ही रेलवे के उद्भव से लेकर इलेक्ट्रिक ट्रेनों तक के इतिहास की जानकारी मिल जाती है। वर्ष 1938 के समय का टाइम टेबल, बाबू गाड़ी (क्लर्क ट्रेन) की समय सारिणी और पूर्वोत्तर रेलवे के गठन की सभी जानकारियां धरोहर कक्ष में सुरक्षित हैं।

अभिलेखों में यह बताया गया है कि रेलकर्मियों के लिए कूड़ाघाट से बस्ती, आनंदनगर और चौरीचौरा तक बाबू गाड़ी चलाई जाती थी। प्रमुख मुख्य इंजीनियर कार्यालय (पीसीई) के सामने रेल लाइन के किनारे बाबू गाड़ी का प्लेटफार्म आज भी मौजूद है। मुख्यालय व कारखानों में कार्य करने वाले कर्मी बाबू पास के माध्यम से इसी प्लेटफार्म से आवागमन करते थे। अब तो अपनी धरोहरों को जीवंतता प्रदान करने के लिए रेलवे प्रशासन ने ई काफी टेबल बुक के प्रकाशन की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।

एक नजर में लार्ड लारेंस इंजन

निर्माण कार्य - वर्ष 1874

निर्माण कर्ता - डब्स एंड कंपनी ग्लास्गो लोकोमोटिव वर्क्स, लंदन

स्वामित्व - बी एंड एन, डब्लू आर/ पूर्वोत्तर रेलवे

गेज - मीटर गेज

इंजन का प्रकार - ए-वन, इंजन नंबर- 14, रजिस्ट्रेशन नंबर- 40

चक्कों का क्रम व बनावट- 2-4-0 तीलीयुक्त

ब्वायलर का प्रकार - फायर ट्यूब ब्वायलर

कर्षण बल- 3444 पाउंड्स

मोशन गियर- स्टीफेंस लिंक मोशन

भाप का प्रकार - संतृप्त

फायर बाक्स क्षेत्रफल- 784 वर्ग इंच

कोयले की क्षमता - 1.425 ब्रिटिश टन

पानी की धारिता- 469 गैलन

रेलवे प्रशासन धरोहरों को सहेजने एवं संवारने का भी कार्य करता है। म्यूजियम में रखा लार्ड लारेंस लोकोमोटिव इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। रेलवे स्टेशन पर रखा स्टीम लोकोमोटिव भी यात्रियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है। 100 वर्ष से भी अधिक पुराने अभिलेखों को संजो कर रखने के लिए धरोहर कक्ष भी बनाया गया है। सभी जानकारियों को एक प्लेटफार्म पर लाने के लिए ई काफी टेबल बुक का संकलन किया जा रहा है। - पंकज कुमार सिंह, मुख्य जनसंपर्क अधिकारी, पूर्वोत्तर रेलवे।


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