फ्लैश बैक : प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना के आमरण अनशन से हिल गई थी नेहरू सरकार
स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर 1980 तक पूर्वांचल के विकास में सांसद प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना का महत्वपूर्ण योगदान था। उनके संघर्ष के कारण ही गंडक परियोजना को मुकाम मिल सका।
गोरखपुर, विश्वदीपक त्रिपाठी। 2019 के महासमर के लिए रणभेरी बजते ही तराई की फिजा में चुनावी रंग घुलने लगा है। सियासी दांव-पेंच के बीच कुछ नाम ऐसे भी हैं ,जो अपनी अनुपस्थिति में भी लोगों के दिल में जगह बनाएं हैं। युवा पीढ़ी को उनका व्यक्तित्व आज भी प्रेरणा दे रहा है। पूर्वांचल के गांधी कहे जाने वाले महराजगंज के पहले सांसद प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना के योगदान को यहां के लोग भला कैसे भूल सकते हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर 1980 तक जनपद के विकास में इस महापुरूष का महत्वपूर्ण योगदान था। उनके संघर्ष के कारण ही गंडक परियोजना को मुकाम मिल सका। बात 1957 की है। उस समय गोरखपुर मंडल सहित यूपी से सटे बिहार के कुछ हिस्सों में ङ्क्षसचाई के साधन का घोर अभाव था। सिंचाई साधन की किल्लत से भूमि बंजर हो रही थी। गंडक परियोजना को मूर्त रूप देने के लिए प्रो. सक्सेना ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से अनुरोध किया। इसके बाद भी जब उनकी बातों को अनसुना किया जाने लगा तो लोकसभा के सामने वह आमरण अनशन पर बैठ गए।
संसद के सामने बेहोश होने पर स्वीकृत हुई परियोजना
प्रो. सक्सेना का आमरण अनशन 28 दिनों तक चला। इस दौरान पं. नेहरू बराबर मिलने आते थे। अनशन के बीच में उन्होंने प्रो. सक्सेना के 11 पत्रों का उत्तर भेजा। 28 वें दिन जब शिब्बन लाल बेहोश होकर गिर पड़े तो, आनन-फानन में इस परियोजना को स्वीकृति प्रदान की गई।
डा. राजेंद्र प्रसाद ने भी किया था हस्तक्षेप
प्रो. शिब्बन लाल के आमरण अनशन के बाद भी जब सरकार द्वारा कोई पहल नहीं की गई , तो तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने भी हस्तक्षेप किया था। इस मुद्?दे को लेकर प्रो. सक्सेना ने राष्ट्रपति से मुलाकात की थी।
चार बार किया महराजगंज का प्रतिनिधित्व
सन दल
1952 केएमपीपी (किसान मजदूर प्रजा पार्टी)
1955 केएमपीपी -उपचुनाव
1971 जनता पार्टी
1977 जनता पार्टी