हेमा और माधुरी बांट लेती हैं ट्रेनें...यहां पढ़ें परदे के पीछे तैर रहीं रोचक खबरें
Musafir Hoon Yaron Dainik Jagran Gorakhpur weekly column दैनिक जागरण गोरखपुर के साप्ताहिक कालम मुसाफिर हूं यारों में पढ़ें- गोरखपुर शहर के सरकारी दफ्तरों के भीतरखाने की खबर। हर वह खबर जो अभी तक पर्दे के पीछेे है। अलग अंदाज में जानें गोरखपुर में क्या कुछ चल रहा है।
गोरखपुर, प्रेम नारायण द्विवेदी। गोरखपुर से बनारस जा रही इंटरसिटी की साधारण बोगी में जैसे ही ताली की आवाज कानों में पहुंची, यात्री सहम गए। कुछ शर्माए, कुछ सकुचाकर बगले झांकने लगे। कई अनदेखी का अहसास कराते हुए स्वजन से बातचीत में तल्लीन हो गए। नजरे चुरा रहे लोगों के बीच बैठे कुछ उत्साही युवा ठिठोली से बाज नहीं आए। लेकिन हेमा, माधुरी और सोनाली की टीम को उनकी चुहलबाजी रास नहीं आइ। चल निकाल, कहने के साथ उनके हाथ लोगों की जेब तक पहुंच गए। माहौल को भाप लोगों ने दस-बीस से पिंड छुड़ाया। उनके जाते ही राहत की सांस ली। भटनी जा रहे यात्री भगेलू बुदबुदाने लगे, अब तो परिवार के साथ रेल यात्रा मुश्किल हो गई है। पास बैठे यात्री बताने लगे, नरकटियागंज, छपरा और बनारस रूट पर चलने वाली लोकल में इनकी चहलकदमी बढ़ती जा रही है। मोहल्ला और दुकान के बाद अब ये ट्रेन भी बांटने लगी हैं।
सुरक्षा के नाम पर खा रहे मेवा
रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था भगवान नहीं अब यात्रियों के भरोसे है। कोविड काल में स्टेशनों पर यात्रियों का बैग सैनिटाइज व पैकिंग कर अपनी झोली भरी, ताकि यात्रियों में संक्रमण न फैले। अब त्योहारों में अपनी सुरक्षा के नाम पर उपभोक्ताओं से मेवा खाना शुरू कर दिया है। पार्सल बुक करने से पहले उपभोक्ताओं को सामान स्कैन कराना पड़ रहा है। बदले में जेब ढीली हो रही है। कमाई का यह नया तरकीब रेलकर्मियों को भी समझ में नहीं आ रही। लोग कहने लगे हैं, सुरक्षा के लिए रेलवे के पास भारी-भरकम फौज और बजट है। इसके बाद भी आमजन पर बोझ बढ़ाकर कोढ़ में खाज का काम कर रहा है। कर्मचारी संगठन के एक पदाधिकारी के मन की टीस निकल ही गई, यही न आउटसोर्सिंग है। यही स्थित रही तो आने वाले दिनों में लोगों को स्टेशनों और ट्रेनों को देखने का भी भाड़ा चुकाना पड़ेगा।
यह प्यास है बड़ी
रेलवे स्टेशनों पर गला तर करने के लिए भी जेब खाली करनी पड़ रही। जब से प्लेटफार्मों पर सस्ते दाम पर पीने का शीतल पानी उपलब्ध कराने वाली वाटर वेंडिंग मशीनें बेपानी हुई हैं, वेंडरों की मनमनी बढ़ गई है। वेंडर धड़ल्ले से पांच रुपये ठंडा कराई के नाम पर वसूलने लगे हैं। अगर आप ने टोक दिया तो हाथ में गर्म पानी पकड़ा देते हैं। कहते हैं, यहां ठंडा करने की कोई व्यवस्था नहीं है। मरता क्या न करता। बेचारे यात्री ठंडा होने के लिए रेल नीर का 15 की जगह 20 रुपये देने को विवश हैं। स्टालों पर लिखा गया नो बिल नो पेमेंट का दावा भी हवा- हवाई साबित हो रहा है। शिकायत पर भी कोई सुनवाई नहीं है। आम यात्री ही नहीं रेलकर्मियों को भी पानी के पीछे भागना पड़ रहा है। वे कहते हैं, यह प्यास है बड़ी।
मजा मारे गाजी... मार खाए....
सफर में अगर आपने खानपान में अनियमितता लेकर कोई शिकायत कर दी तो आपकी खैर नहीं। जिम्मेदारों और वेंडरों पर कोई कार्रवाई हो या न हो, लेकिन आपका सुख- चैन जरूर छिन जाएगा। जांच करने वाले यह नहीं सोचेंगे कि आप कहां हैं और किस अवस्था में। वह फोन करके सिर्फ यह साबित करने में लगे रहेंगे कि या तो आपका आरोप निराधार है या आपने बिना सोचे-समझ शिकायत कर दी है। कोई अपनी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता। कभी सुरक्षाकर्मी तो कभी आइआरसीटीसी कर्मी फोन करते हैं। इसके बाद भी न जांच पूरी हो रही और न जिम्मेदारी तय कर किसी के खिलाफ कार्रवाई। विभाग के कर्मी कहने लगे हैं। अब तो इस तरह के मामले रोज आने लगे हैं। वेंडर न खाने लायक खाना दे रहे और न बिल। जिम्मेदार मौज में रहते हैं। उल्टे शिकायतकर्ता की नींद खराब होती है। वही हाल है, मजा मारे गाजी... मार खाए...।