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Mulayam Singh Yadav: गोरखपुर से 'नेताजी' का था खास लगाव, सभी दल में थे उनको चाहने वाले

Mulayam Singh Yadav मुलायम सिंह यादव का गोरखपुर से खास नाता था। उनके निधन से गोरखपुर में चारो तरफ शोक की लहर है। शोक संवेदना व्यक्त करने में दलीय सीमाएं टूट गईं। मुलायम सिंह यादव भी दलीय सीमाओं से ऊपर उठकर लोगों का सम्मान करते थे।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Tue, 11 Oct 2022 12:16 AM (IST)Updated: Tue, 11 Oct 2022 09:25 AM (IST)
समाजवादी पार्टी के संस्थापक व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव। - फाइल फोटो

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। Mulayam Singh relation with Gorakhpur: जीवनपर्यंत धरती से जुड़े रहे मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) अंतिम समय तक अपने चाहने वालों के लिए धरतीपुत्र बने रहे। लोग उन्हें वैसे धरतीपुत्र नहीं कहते थे, बल्कि उनके व्यक्तित्व और कृतित्व ने उन्हें यह उपाधि प्रदान की थी। वे विरोधी दल के प्रतिनिधियों का भी उतना ही सम्मान करते थे, जितना शिक्षक, अधिवक्ता, किसान, मजदूर और कार्यकर्ताओं का। वह हिंदी के बड़े समर्थक थे। तभी तो छात्रों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त कर दी। अंग्रेजी में कमजोर छात्र भी प्रतियोगी परीक्षाएं उत्तीर्ण कर देश और समाज की सेवा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे। उनका कहना था इस व्यवस्था से किसान और गरीब के बच्चों को भी आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा। मुलायम सिंह के देहांत से गोरखपुर में शोक की लहर है। हर कोई उन्हें अपने तरीके से याद कर रहा है।

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नेताजी के चेहरे पर साफ झलकती थी दल टूटने की पीड़ा

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय (तत्कालीन गोरखपुर विश्वविद्यालय) छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष व लोकतंत्र सेनानी सेवा संस्थान के अध्यक्ष राम सिंह बताते हैं कि वह 1968 से उनके साथ जुड़े रहे। 1987 में आजमगढ़ में किसी कार्यक्रम में भाग लेने गए थे। इस दौरान वर्षा होने लगी और वे अधिवक्ताओं के साथ कचहरी में रुक गए, लेकिन कचहरी में कोई भवन नहीं होने से वे भीग गए। इस दौरान उन्होंने अधिवक्ताओं को आश्वासन दिया कि मुख्यमंत्री बनते ही वे चेंबर बनवाएंगे। 1989 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश के सभी कचहरी में अधिवक्ताओं के लिए चेंबर बनवाने के लिए निर्देशित कर दिया।

लोकतंत्र सेनानी सेवा सम्मान अधिनियम बनाया

1971 में छात्र संघ के अध्यक्ष रहे राम सिंह ने उनके कार्यों को याद करते हुए बताया कि 2006 में उन्होंने लोकतंत्र सेनानी सेवा सम्मान अधिनियम बनाया, जिसके चलते आज भी प्रत्येक सेनानी को प्रतिमाह 20 हजार रुपये मिलते हैं। निधन पर राजकीय सम्मान के साथ अंत्येष्टि होती है। वे किसानों के लिए भी हमेशा संघर्ष करते रहे। 1996 में रामकोला गोलीकांड में प्रशासन के रोकने के बाद भी मौके पर पहुंचे और 40 लोगों के साथ जेल गए। जेल में भी उनकी जिंदादिली कायम रही और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाते रहे। दो माह पूर्व हाल-चाल लेने लखनऊ उनके आवास पर पहुंचा तो वे भावुक हो गए। उनके अंदर दल टूटने की पीड़ा साफ झलक रही थी। वे चाहते थे कि उनका परिवार समाजवाद के लिए एकसाथ खड़ा होकर लड़े।

टिकट बंटवारे में छोटे कार्यकर्ताओं की लेते थे राय

धर्मशाला बाजार निवासी 78 वर्षीय सत्यनारायण गुप्ता उन्हें याद करते हुए अपनी शोक संवेदना व्यक्त की। उन्होंने बताया कि वे 1962 से नेताजी के साथ रहे। जब वे लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष थे तो वह शहर अध्यक्ष। इमरजेंसी से पहले मुलायम सिंह यादव उनके घर आए थे और परिवार के साथ बैठकर खाना भी खाया। समाजवादी पार्टी के गठन के बाद भी वे उन्हें भूले रहे और टिकट बंटवारे और पदाधिकारियों की नियुक्त से पहले जरूर राय लेते थे। वे धरती से जुड़े नेता था। जो भी उनके साथ चला, उन्हें वह कभी भूले नहीं। हमेशा दबे, कुचले, शोषित और पीड़ित की ही बात करते थे और उनके हितों की लड़ाई के लिए 24 घंटे तैयार रहते थे।

पीपा का नहीं, पक्का पुल बनवाता है मुख्यमंत्री

विधान परिषद के पूर्व सभापति गणेश शंकर पांडेय सोमवार को नेताजी को देखने मेदांता जा रहे थे। रास्ते में पता चला कि उनका निधन हो गया है। वह व्यथित हो गए। दूरभाष पर शोक संवेदना व्यक्त करते हुए पूर्व सभापति ने बताया कि वर्ष 1985 से नेताजी से उनका लगाव हुआ जो हमेशा बना रहा। जब वे मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने संकोच के साथ सेमराघाट पर पुल बनाने का आग्रह किया था। हालांकि, उन्होंने शुरुआत में पीपा के पुल की बात की थी, लेकिन नेताजी ने पक्कापुल के निर्माण की स्वीकृति प्रदान करते हुए बजट भी आवंटित कर दिया। साथ ही कहा कि मुख्यमंत्री पीपा का नहीं पक्का पुल बनाते हैं। ऐसे थे धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव।

दलगत राजनीति से ऊपर उठकर करते थे सम्मान

पूर्व विधायक विनय शंकर तिवारी ने अपनी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि मुलायम सिंह यादव दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सबका सम्मान करते थे। नेताजी बाबू जी (पूर्व कैबिनेट मंत्री पं. हरिशंकर तिवारी) का सम्मान करते थे। नेताजी का पूरे परिवार के साथ गहरा लगाव रहा है। वे सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करते थे। एक किसान परिवार से निकलकर अपने बलबूते पार्टी बनाई और उसे राष्ट्रीय फलक पर पहुंचाया और देश में एक जननेता के रूप में अपनी पहचान बनाई। ऐसा दूसरा कोई नहीं है। उनका जाना देश और समाज के लिए अपूरणीय क्षति है।

दोहरी प्रोन्नति योजना के साथ बढ़ा दी सेवा की उम्र

पूर्व कुलपति प्रो. रजनीकांत पांडेय ने जब सुना कि नेताजी का निधन हो गया है तो वे विचलित हो उठे। विश्वविद्यालय तो गए लेकिन पढ़ाने में मन नहीं लग रहा था। शोक में दो बजे विश्वविद्यालय बंद होने के बाद वे सैफई निकल गए। बातचीत में उन्होंने बताया कि शिक्षकों के प्रति उनका गहरा लगाव था। नेता जी ने ही दोहरी प्रोन्नति योजना के साथ शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 से 62 वर्ष की स्वीकृति प्रदान की थी। उन्होंने बताया कि वह 1990 में समाजवादी चिंतक जनेश्वर मिश्र व प्रो. चितरंजन मिश्र के साथ नेताजी से मिले थे। बड़ी सोच और शिक्षकों के प्रति सम्मान ने उनके प्रति उनका झुकाव बढ़ा दिया। नेताजी हर कार्यक्रमों में उन्हें ही नहीं अपने सभी कार्यकर्ताओं का नाम लेकर ही पुकारते थे। 2012 में लखनऊ में उन्होंने अखिलेश यादव से परिचय कराया। 2013 में बहुमत की सरकार बनने के बाद पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय की पहल पर उन्हें सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु सिद्धार्थनगर को ओएसडी बनाया गया। 21 मई 2015 में प्रथम कुलपति बने। वह शुरू से ही नेताजी के प्रशंसक रहे हैं।

सदी के महानायक को साथ लेकर पहुंचे थे गोरखपुर

मुलायम सिंह यादव कन्याओं की शिक्षा पर बहुत जोर देते थे। 2006 में गोरखपुर मंडल की कन्याओं को कन्या धन योजना के तहत धन वितरित करने के लिए सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और अमर सिंह को लेकर गोरखपुर आए थे। विश्वविद्यालय परिसर में आयोजित समारोह में उन्होंने कन्याओं को धन दिया था। अपनी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए समाजवादी पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष चंद्रबली यादव ने बताया कि धुरियापार चीनी मिल के पेराई सत्र का शुभारंभ करने पहुंचे नेताजी हैलीपैड से उतरते ही पूछा कि सांसद कौन है। कार्यकर्ताओं ने बताया कांग्रेस से महावीर प्रसाद। उन्होंने तुरंत महावीर प्रसाद को बुलाया और अपने साथ कार्यक्रम स्थल तक ले गए। उनका दिल बड़ा था, वे विरोधी दल के जनप्रतिनिधियों का भी सम्मान करते थे।

सेंट एंड्रयूज कालेज में हुई थी नेताजी की अंतिम सभा

वर्ष 2013-14 में लोक सभा चुनाव के पहले मुलायम सिंह यादव ने गोरखपुर स्थित मानबेला में देश बचाओ-देश बनाओ महारैली को संबोधित किया था। इसीक्रम में उन्होंने सेंट एंड्रयूज कालेज में सांप्रदायिकता विरोधी रैली को भी संबोधित किया था। पार्टी के लोगों इस रैली को नेताजी की अंतिम सभा मानते हैं। उनका कहना है कि गोरखपुर से उनका विशेष लगाव था, तभी तो 2004 से 2007 तक वे 14 बार गोरखपुर आए थे। इसके बाद भी अनवरत उनका आनाजाना लगा रहा। पूर्व जिलाध्यक्ष गोपाल यादव उन्हें याद करते हुए बताते हैं कि वे विषम परिस्थिति में भी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाए रहते थे। संयत रहना उनकी खूबी थी। 1989 के चुनाव में यशवंत नगर में सभा के दौरान विपक्षी दलों के भारी विरोध के बाद भी उन्होंने संयत नहीं खोया और प्रदेश के मुखिया बने। उनका रूप देखकर वह उन्हें भगवान मानने लगे। वह हमेशा हम जैसे कार्यकर्ताओं के दिलों में रहेंगे।

अवधेश यादव के नेतृत्व में सैफई रवाना हुए कार्यकर्ता

मुलायम सिंह यादव के निधन की खबर सुनते ही सपा कार्यकर्ताओं में शोक की लहर दौड़ गई। समाजवादी पार्टी के निवर्तमान जिलाध्यक्ष अवधेश यादव सहित पार्टी के नेताओं ने नेताजी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए देश और समाज का अपूरणीय क्षति बताया है। बेतियाहाता स्थित कार्यालय पर निवर्तमान जिलाध्यक्ष के नेतृत्व में सपा कार्यकर्ता जुटे और नेताजी के अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए भारी मन से सैफई के लिए रवाना हो गए। अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. केसी पाण्डेय ने कहा कि मुलायम सिंह यादव ने एक बार जिसका हाथ पकड़ लिया, उसका आजीवन निर्वहन किया। देश को मुलायम सिंह जैसा नेता दूसरा नहीं मिलेगा। सपा पार्षद विश्वजीत त्रिपाठी सोनू ने कहा कि नेताजी के निधन से देश की अपूर्णीय क्षति हुई है, जिसकी पूर्ति नहीं की जा सकती है। मीडिया प्रभारी राघवेंद्र तिवारी राजू के अनुसार गोरखपुर पार्टी कार्यालय पर समाजवादी पार्टी का झंडा तीन दिन के लिए झुका दिया गया है।

टूटी दलीय सीमाएं, इन्होंने भी व्यक्त की शोक-संवेदना

मुलायम सिंह यादव के निधन पर दलीय सीमाएं टूट गई है। लोगों ने शोक संवेदना व्यक्त कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है। विधान परिषद सदस्य देवेंद्र प्रताप सिंह, विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष राधेश्याम सिंह, पूर्वोत्तर रेलवे कर्मचारी संघ के संयुक्त महामंत्री एके सिंह, टैक्स एडवोकेट एसोसिएशन के मारुति पांडेय, प्रमोद कुमार सिंह, आशीष सिंह और आशुतोष दूबे, महानगर कांग्रेस कमेटी के पूर्व महानगर अध्यक्ष दिनेश चंद्र श्रीवास्तव, राष्ट्रीय नाई महासभा के ध्रुव नारायण, राष्ट्रीय जनता दल के महेंद्र सिंह राणा, राष्ट्रीय लोकदल के सफातुल्लाह खान और मुरारी लाल यादव तथा समाचार पत्र विक्रेता संघ के उमाशंकर मझवार, रामाज्ञा निषाद, नवनीत कुमार यादव, राकेश निषाद, धमेंद्र कुमार और राहुल गुप्ता ने शोक संवेदना व्यक्त की है।


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