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इनके लिए बेमानी है स्वतंत्रता दिवस पर जश्न का मतलब

अनिल पाठक, गोरखपुर अंग्रेजी हुकूमत से 15 अगस्त 1947 को आजाद हुए इस देश में चारों ओर खुि

By JagranEdited By: Published: Wed, 15 Aug 2018 12:30 PM (IST)Updated: Wed, 15 Aug 2018 12:30 PM (IST)
इनके लिए बेमानी है स्वतंत्रता दिवस पर जश्न का मतलब

अनिल पाठक, गोरखपुर

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अंग्रेजी हुकूमत से 15 अगस्त 1947 को आजाद हुए इस देश में चारों ओर खुशियां मनाई गईं। जश्न में सभी शरीक हुए और उम्मीद रही कि देश के साथ क्षेत्र का भी विकास होगा। संसाधन बढ़ेंगे तो सुविधाएं मिलेंगी, लेकिन 72 वर्ष में भी हम वहीं खड़े हैं और विकास की बाट निहार रहे हैं। आज हम नए उत्साह से आजादी का जश्न तो मनाने जा रहे हैं, लेकिन पिछड़ेपन का दंश से पीछा नहीं छूटा। आज भी मुख्य धारा से कटे हुए हैं।

हम बात कर रहे हैं कुशीनगर जिले की, जहां पिछड़ेपन से अभी तक ¨पड नहीं छूटा। मूलभूत सुविधाओं का अभाव खत्म नहीं हुआ, जबकि देश के साथ हम 21 वीं सदी में चल रहे हैं। बिहार व महाराजगंज तथा नेपाल के सीमावर्ती इस जिले के बार्डर इलाके गांव मुख्यधारा से कटे हुए है। यहां सर्वाधिक पिछड़ा इलाका सेवरही, दुदही, विशुनपुरा व खड्डा, हाटा विकास खंड के वह गांव है जहां बाढ़ का कहर हर साल लोग झेलते हैं। वर्ष 1984 में आई बाढ़ के कहर ने सब कुछ बर्बाद कर दिया था। पिछले 34 वर्ष से विस्थापित का जीवन बसर कर रहे 85 सौ परिवारों को प्रशासन द्वारा रहने के लिए ठिकाना बनाने की जमीन तक नहीं दी गई। विकसित समाज से कटे 298 परिवारों को ¨सचाई विभाग ने छह महीने पूर्व भूमि खाली करने की नोटिस दे रखा है। हर वर्ष तीन तटबंध एपी व अमवाखास तथा पिपरा-पिपरासी के किनारे बसे लोगों पर मानसून सत्र भारी पड़ता है। सेवरही विकास खंड के पिपराघाट के 22 टोले में करीब 17 टोले ऐसे हैं, जहां नारायणी में पानी बढ़ते ही ग्रामीण बंधे के किनारे झोपड़ी डालकर आशियाना बना लेते हैं। अमवाखास बंधा के किनारे बसे गांव महुअवां, गोखुला, किशुनवा, रामपुर बरहन के समीप ऊंचे स्थान पर करीब साढ़े आठ हजार परिवार शरण लेते हैं। घरेलू सामान अथवा दवा लाने के लिए नाव के सहारे इस पार अथवा उस पार जाना होता है। यहां के लोगों को मूलभूत संसाधनों की कमी हमेशा खलती है। बीमार होने पर जाना पड़ता है 15 किलोमीटर दूर

प्रभावित हनुमान टोला, नांहू टोला आदि के केदार, नसुरन, दहारी, खलील, रामजी, बबलू कहते हैं कि देश आजाद हुआ और हम आजाद हुए लेकिन संसाधनों की कमी खटकती है। चाहे स्वास्थ्य हो या शिक्षा अथवा बिजली या पानी कुछ भी नसीब नहीं होता। बीमार होने पर 15 किमी दूर इलाज के लिए ले जाना पड़ता है तो शिक्षा के नाम की सुविधा भी नहीं है। कहते हैं कि हमें याद ही नहीं रहता कि कब स्वतंत्रता दिवस आया या गया, क्योंकि दो जून की रोटी की व्यवस्था में ही पूरा दिन बीत जाता है। पक्के मकान का टूट गया सपना

चैनपट्टी गांव के हेमंत ¨सह व राजेश ¨सह कहते हैं कि पिपराघाट के 22 टोले के लोग झोपड़ी में रहते हैं। पक्के मकान का सपना अधूरा रह गया। यहां के लोगों के शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली व पानी की समस्या बनी हुई है।


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