भगीरथ के इंतजार में महराजगंज के बौद्ध स्थल; केवल वादे हुए, नहीं हुआ विकास
दुनिया में शांति व अहिंसा का संदेश देने वाले महात्मा बुद्ध अपने ही घर में उपेक्षित हैं। महराजगंज जिले में स्थित बौद्ध स्थल अपना अस्तित्व खोता जा रहा है।
गोरखपुर/महराजगंज, विश्वदीपक त्रिपाठी। दुनिया में शांति व अहिंसा का संदेश देने वाले महात्मा बुद्ध अपने ही घर में उपेक्षित हैं। महराजगंज जिले में स्थित बौद्ध स्थल अपना अस्तित्व खोता जा रहा है। बुद्ध की ननिहाल के रूप में पहचाना जाने वाला बनरसिया कला (प्राचीन देवदह) रामग्राम व कुंवरवर्ती स्तूप के इस जनपद में मौजूद होने की संभावना को देखते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा इन स्थलों को संरक्षित किया गया है। बावजूद इसके विकास के संबंध में कोई ठोस पहल नहीं हो सकी है। हर चुनाव में इनका विकास मुद्दा बनता है। जनप्रतिनिधि मंच से विकास की दुहाई भी देते हैं, लेकिन चुनाव बाद अपने वादों का पन्ना कोई नहीं पलटता।
देवदह
नौतनवां तहसील क्षेत्र के बनरसिया कला गांव को पुरातत्वविद् बुुद्धकालीन देवदह नगर होने की संभावना व्यक्त करते हैं। यह नगर शाक्य व कोलीय राज्यों की सीमा पर स्थित था। महात्मा बुद्ध की माता महामाया और पत्नी यशोधरा दोनों ही देवदह की रहने वाली थीं। यहां मौजूद टीले, उत्खनन से प्राप्त मूर्ति व अन्य सामग्रियां इसके गौरवशाली अतीत की गवाही देती हैं। इसी को देखते हुए यहां की 88.8 एकड़ भूमि को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने संरक्षित किया है।
इस भू-भाग पर किसी प्रकार के स्थायी निर्माण पर रोक लगी है। पुरातत्व विभाग की दस्तक के बाद उम्मीद थी कि यह स्थल भी बौद्ध धर्मावलंबियों का केंद्र बनेगा, लेकिन उपेक्षा के चलते यहां की तस्वीर बदरंग है।
रामग्राम का स्तूप
महराजगंज के बौद्ध स्थलों पर पुस्तक लिखने वाले डॉ. परशुराम गुप्त बौद्ध ग्रंथों का हवाला देते हुए बताते हैं कि चौक बाजार से तीन किमी पश्चिम धरमौली गांव के करीब जंगल में रामग्राम का स्तूप होने का प्रमाण मौजूद है। बौद्ध ग्रंथों के मुताबिक महात्मा बुद्ध के अस्थि अवशेष को आठ भागों में बांटा गया था। अस्थि अवशेष के एक हिस्से पर ही रामग्राम का स्तूप बना है। जिला प्रशासन ने इस स्थल का उत्खनन कराने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को भूमि संबंधी अभिलेख उपलब्ध करा दिया है।
कंवरवर्ती स्तूप
बुद्ध कालीन कुंवरवर्ती स्तूप के महराजगंज जिले के चिउटहा गांव के पूरब होने की संभावना दिशा व दूरी के आधार पर पुरातत्वविद् लगा रहे हैं। बौद्ध धर्म ग्रंथों के अनुसार गृह त्याग के बाद गौतम बुद्ध ने यहीं से अपने राजसी वस्त्रों का त्याग किया।
लोगों ने कहा
- महराजगंज स्थित बौद्ध स्थलों का विकास न होना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह तय है कि इनके विकास के संबंध में ठोस पहल नहीं हुई, जिससे कभी गौरव के केंद्र रहे सभी प्रमुख स्थान अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। - डा. शांतिशरण मिश्र
- स्थानीय लोगों द्वारा हर वर्ष देवदह महोत्सव का आयोजन किया जाता है। बौद्ध स्थलों का विकास जनप्रतिनिधियों व प्रशासन की नजर में प्रमुख मुद्दा बने इसके लिए आवाज उठाई जाएगी। - विन्ध्वासिनी सिंह
- बौद्ध स्थलों के विकास से ही जिले का विकास जुड़ा हुआ है। यदि बौद्ध स्थल विकसित होंगे तो यह जिला अपने आप विकास के पथ पर अग्रसर होगा। बौद्ध स्थलों की उपेक्षा दुर्भाग्यपूर्ण है। - विमल पांडेय
- पूरे विश्व में आस्था के केंद्र गौतम बुद्ध का अपने ही घर में उपेक्षा हो रही है, इससे दुर्भाग्यपूर्ण क्या हो सकता है। चुनाव के समय तो विकास के दावे बहुत किए जा रहे हैं, लेकिन बाद में उन्हें भुला दिया जाता है। - दिग्विजय सिंह