चुंबकीय तरंगें करेंगी लाइलाज रोगों का इलाज, बीआरडी मेडिकल कालेज में शुरू हुई इलाज की नई तकनीक
बीआरडी मेडिकल कालेज में चुंबकीय तरंगों से इलााज होगा। जिन मानसिक रोगियों पर दवाओं का असर नहीं होता है उन्हें नई विधि से चुंबकीय तरंगों के माध्यम से आसानी से ठीक किया जा सकता है। डाक्टरों को इस विधि की ट्रेनिंग दी गई है।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। BRD Medical College Gorakhpur: अजीब हरकतें करने वालों काे पागल बताते हुए फिल्मों में आपने बिजली के झटके लगते खूब देखे होंगे। कान के ऊपर दोनों तरफ मशीन से बिजली के झटके दिए जाते थे। झटके खाने वालों की चीख दर्द का एहसास उन लोगों को भी करा देती थी जो इसे देखते थे। अब यह झटके गुजरे जमाने की बात हो गई है। चुंबकीय तरंगों से बिना कुछ महसूस किए अब मानसिक रोगों का इलाज होने लगा है। बाबा राघवदास मेडिकल कालेज में रिपिटेटिव ट्रांसक्रेनियल मैग्नेटिक स्टीमुलेशन (आरटीएमएस) मशीन आ गई है। इस मशीन से रोगी को दूरी से चुंबकीय तरंगे दी जाती हैं। इससे रोगी को कुछ पता भी नहीं चलता और दिमाग का सोया हुआ हिस्सा सक्रिय भी हो जाता है।
डाक्टरों को दी गई ट्रेनिंग
मेडिकल कालेज के मानसिक रोग विभाग में आरटीएमएस से इलाज की जानकारी देने के लिए कार्यशाला का आयोजन किया गया। फैकल्टी के साथ ही जूनियर और सीनियर रेजीडेंट को लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के मानसिक रोग विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डा. सुजीत कुमार ने ट्रेनिंग दी।
दवाएं नहीं काम करतीं तो यह तकनीक बेहतर
बाबा राघवदास मेडिकल कालेज के मानसिक रोग विभाग के डा. आमिल एच खान ने बताया कि जिन मानसिक रोगियों पर दवाओं का असर नहीं होता है उन्हें नई विधि से चुंबकीय तरंगों के माध्यम से आसानी से ठीक किया जा सकता है। इसमें मशीन को रोगी से दूर रखा जाता है। रोगी को झटका नहीं लगता है। उपचार के दौरान उसे कुछ भी महसूस नहीं होता है। चुंबकीय तरंगों से दिमाग के उस हिस्से को सक्रिय किया जाता है हो सुसुप्तावस्था में पहुंच गया होता है।
दो से तीन हजार एक बार का खर्च
डा. आमिल एच खान बताते हैं कि आरटीएमएस मशीन बहुत महंगी होती है। प्राइवेट में इस मशीन से एक बार इलाज लेने में दो से तीन हजार रुपये खर्च होते हैं। मेडिकल कालेज में यह पूरी तरह निश्शुल्क है। रोगी की स्थिति के अनुसार चुंबकीय तरंगे देने का निर्णय लिया जाता है। वैसे 10-12 बार तरंगे दी जाती हैं, शुरू में रोजाना और बाद में अंतराल पर।
झटके से आजादी
गंभीर अवसाद (डिप्रेसन) और स्कीजोफ्रेनिया में बिजली के झटके दिए जाते थे। पहली बार वर्ष 1938 में रोम में बिजली के झटके दिए गए थे। इसमें सिर में दो इलेक्ट्रोड लगाकर करंट दिया जाता था। करंट का पावर 50-60 हर्ट्ज होता था, झटका सेकेंड के 10वें हिस्से का दिया जाता था। डाक्टरों का मानना था कि बिजली के झटके देने से मनुष्य की चेतना में तनिक ठहराव आता है, इससे इलाज में मदद मिलती है। हालांकि कई बार इन झटकों से रोगी की हालत और बिगड़ भी जाती थी।
बेहोश करना हो गया था अनिवार्य
बिजली के झटकों से रोगियों की खराब हालत को देखते हुए वर्ष 2013 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मानसिक स्वास्थ्य बिल को मंजूरी दी थी। इसमें मनोरोगियों को बेहोश करने से पहले बिजली के झटके देने पर रोक लगाने का प्रस्ताव पास किया गया था। केंद्र सरकार ने चेतन में रहने वाले राेगी को बिजली के झटके देने को अमानवीय माना था।
इस रोग में मिलेगा लाभ
अधकपारी, घबराहट, बेचैनी, अवसाद, बार-बार हाथ धोने वाला रोग, किसी से होने वाला डर आदि।