झरही नदी को भगीरथ की तलाश
गोरखपुर : कभी व्यवसायिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण व किसानों के लिए जीवन रेखा कहलाने वाली झरही नदी अब अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है।
गोरखपुर : कभी व्यवसायिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण व किसानों के लिए जीवन रेखा कहलाने वाली झरही नदी उदासीनता के चलते अपने अस्तित्व को जूझ रही है। अतिक्रमण व जलीय पौधों की भरमार से इसकी बहाव क्षमता भी कम हुई है। कुशीनगर जिले के पडरौना के खिरकिया स्थान से यह नदी अस्तित्व आई। करीब 50 किलोमीटर की यात्रा करते हुए यह नदी प्रतापपुर के खनुआ के पास छोटी गंडक नदी में जाकर मिलती है।
इस नदी के जल मार्ग से बभनौली आए अंग्रेजों ने नदी में जल परिवहन की सुविधा को देख नील की फैक्ट्री स्थापित की थी। नील की खेती से लेकर नील बनाने तक इस नदी के जल का प्रयोग होता था। तैयार नील की झरही नदी के माध्यम से ही ढुलाई की जाती थी। वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता व समाजसेवी सिराज अहमद बताते हैं कि अंग्रेजों के जमाने में इस नदी का व्यापक व्यवसायिक महत्व था।
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अब नदी में जलचर ही नहीं
दो दशक पूर्व तक झरही नदी अपने आगोश में तमाम जलचरों को पनाह देती थी। बरसात के दिनों में इस नदी का रूप काफी विकराल हो जाता था। इसके वर्ष पर्यन्त जल धारण क्षमता के चलते इर्द-गिर्द बसे ग्रामीण इसके मीठे जल का सेवन करते थे। इसके अलावा अपितु धर्मपुर पर्वत, मठिया भोकरिया, दुमही, मंझरिया, सपही टड़वा, खुदरा अहिरौली, पगरा पड़री, पगरा प्रसाद गिरी, नौगावां सहित तमाम गांवों के किसान अपने खेतों की ¨सचाई भी इसी नदी के पानी से करते थे। ¨कतु अब स्थिति एकदम विपरीत हो चली है। न तो इसका व्यवसायिक महत्व रह गया है न ही इसमे वर्ष पर्यन्त तक पानी ही रहता है। ¨सचाई की बात तो दूर प्रदूषण के चलते इसका पानी पीने योग्य भी नहीं रह गया है। पानी में आक्सीजन की कमी के चलते इसमें रहने वाले जलचर भी विलुप्त हो चले है।
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नदी तट पर अतिक्रमण भी
झरही नदी में जलकुंभी, पटेर, बेहया सहित तमाम जलीय वनस्पतियां इस कदर उग कर फैल चुकी है कि नदी का पानी ही नजर नहीं आता है। लोगों ने अतिक्रमण कर झरही नदी में खेत बना लिया है। जगह-जगह बांध लगाकर मछली पालन के लिए नदी को तालाब में परिवर्तित कर दिया है। सरकारी मशीनरी की उदासीनता के चलते पौराणिक महत्व की यह ऐतिहासिक नदी धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोती जा रही है। अगर यही स्थिति रही तो झरही नदी इतिहास का विषय वस्तु बनकर रह जाएगी।
इस नदी के उद्धार के लिए कभी किसी ने कोई पहल नहीं की। नदी के पानी से अपने खेतों को सींचने वाले ग्रामीणों को भी नदी की चिंता नहीं है। आश्चर्यजनक बात यह है कि उन्हीं ग्रामीणों में कुछ लोग नदी पर अतिक्रमण कर रहे हैं। ऐसे लोगों से नदी उद्धार की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। इसके लिए अब भगीरथ प्रयास की जरूरत है।
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