यहां Lockdown को माना अवसर, बुद्ध में हुए लीन विदेशी Gorakhpur News
Lockdown में कुशीनगर में फंसे तीन विदेशियों ने बुद्ध की विपश्यना (पूजा) शुरू कर दी है।
कुशीनगर, राजेंद्र शर्मा। कोरोना के कारण पूरा विश्व तबाह है। जीवन बचाने की जद्दोजहद चल रही है। इन परिस्थितियों के बीच कुछ लोग जीने की नई राह तलाश रहे हैं। साधना और पूजा-पाठ के माध्यम से शांति, सुख और सुरक्षा की कामना कर रहे हैं। ऐसे ही लोगों में शामिल हैं मैक्सिको निवासी एना गुआदरमा, अमेरिका निवासी पौला होरान और जापान निवासी शेजी मोरिसावा। तीनों लॉकडाउन को भगवान बुद्ध में लीन होने का अवसर मान रहे हैं।
मैक्सिको, अमेरिका व जापान के निवासी हैं तीनों
तीनों 16 मार्च को अंतरराष्ट्रीय पर्यटक केंद्र कुशीनगर पहुंचे थे। अब यहां धम्मकाया विपश्यना केंद्र में विपश्यना साधना (विशेष पूजा) का लाभ उठा रहे हैं। उनको अपने देश लौटने की कोई हड़बड़ी नहीं है। उनका कहना है कि जब लॉकडाउन खत्म होगा, तब स्वदेश जाने की सोचेंगे। 50 वर्षीया एना गुआदरमा, 67 वर्षीया पौला होरान और 42 वर्षीय शेजी मोरिसावा का कहना है कि वे खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं कि भगवान बुद्ध की धरती पर सामूहिक विपश्यना करने का अवसर मिला। यहां पहुंचने के बाद जैसे ही विपश्यना (पूजा) पूरी हुई, लॉकडाउन की घोषणा हो गई और वे यहां फंस गए। लॉकडाउन के कारण उन्हें साधना करने का पर्याप्त समय मिल गया।
खौफ के साए में बह रही खुशियों की बयार
चिलचिलाती धूप के बीच बोरीवली से प्लेटफार्म नंबर एक पर पहुंची श्रमिक ट्रेन की बोगी से एक-एक कर उतरते कामगार और उनके परिजन। कोई ठीक से खड़ा नहीं हो पा रहा था, कुछ दूर से ही बीमार लग रहे थे। चारो तरफ से खुले प्लेटफार्म पर अदृश्य शत्रु का डर। ऊपर से सूर्य की तपिश श्रमिकों के कमजोर शरीर में चुभ रही थी। इसके बाद भी उनके चेहरे पर दुख के भाव नहीं थे। खौफ के साए में भी श्रमिक खुश नजर आ रहे थे। स्टेशन परिसर में बह रही उनकी खुशियों की बयार दर्द के ताप को ठंडा कर रही थी। मुंबई से परिवार के साथ उतरे गोला के विजय कुमार काफी खुश लग रहे थे। उन्होंने तो घर आने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। मऊ के राजकिशोर का कहना था कि वे वापस नहीं जाएंगे। एक सप्ताह सड़क पर गुजारने के बाद टिकट मिला है। यह कहते ही उनकी आंखें भर आईं। गोरखपुर पहुंच गए तो घर भी चले जाएंगे।
दरअसल, लॉकडाउन के 44 दिन बाद चार मई को जब श्रमिकों ने जब अपनी माटी पर कदम रखना शुरू किया तो रेलवे स्टेशन की रौनक भी लौट आई। वीरान प्लेटफार्म गुलजार हो गए। सुरक्षाकर्मियों के कदमताल और ट्रेनों की छुक-छुक ने सन्नाटे को छिन्न-भिन्न कर दिया है। विश्व का सबसे लंबा प्लेटफार्म ने भी श्रमिकों के स्वागत में अपनी बाहें फैला दीं। आज स्थिति यह है कि रोजाना औसत 12 ट्रेनें और 15 हजार प्रवासी गोरखपुर पहुंच रहे हैं। उन्हें सहेजने के लिए एक हजार रेलकर्मी, आरपीएफ और जीआरपी के जवान 24 घंटे मुस्तैद हैं। स्वास्थ्यकर्मी जहां थर्मल स्कैनिंग कर रहे, वहीं शिक्षक और लेखपाल उनके नाम और पता लिखने में व्यस्त हैं। प्रवासियों को घर तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए रोडवेज की 300 बसें दिन-रात स्टेशन परिसर में लगी रहती है। अधिकतर श्रमिक भ्रमित हो जाते हैं कि वे रेलवे स्टेशन पर उतरे हैं या बस स्टेशन पर। डर के माहौल में भी बेखौफ जिंदगी दिख रही है।