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पटाखे जलाने से पहले जान लें उसका असर, दिवाली के दो माह तक दूषित रहती है हवा Gorakhpur News

दिवाली के दिन जितना प्रदूषण होता है उसका असर हवा में करीब दो महीने तक रहता है। यही प्रदूषित हवा सांस के जरिए हमारे शरीर को बीमार बनाती है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Tue, 22 Oct 2019 11:42 AM (IST)Updated: Tue, 22 Oct 2019 02:30 PM (IST)
पटाखे जलाने से पहले जान लें उसका असर, दिवाली के दो माह तक दूषित रहती है हवा Gorakhpur News
पटाखे जलाने से पहले जान लें उसका असर, दिवाली के दो माह तक दूषित रहती है हवा Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। सुख और समृद्धि के पर्व दिवाली पर उत्साह-उमंग स्वाभाविक है। हर्ष-उल्लास के इस मौके पर हमारी जरा सी असावधानी या यूं कहें कि अति-उत्साह हमारी अपनी और शहर की सेहत पर भारी पड़ रहा है। पर्व की रात अधिक से अधिक आतिशबाजी की होड़ शहर की आबोहवा को जहरीली बना देती है जिसका सीधा दुष्प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। तेज आवाज के पटाखे जहां ध्वनि प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ा देते हैं वहीं आतिशबाजी वायु को बुरी तरह प्रदूषित कर देती है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और एमएमएम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय द्वारा पिछले वर्षों में किए आकलन से प्राप्त आंकड़े बताते हैं साल-दर-साल दिवाली पर प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है।

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400 तक पहुंच जाता है एयर क्वालिटी इंडेक्स

विशेषज्ञों के मुताबिक दिवाली के दिन जितना प्रदूषण होता है, उसका असर हवा में करीब दो महीने तक रहता है। यही प्रदूषित हवा सांस के जरिए हमारे शरीर को बीमार बनाती है। दरअसल, अक्टूबर से ओस गिरने लगती है और हवा भी नहीं चलती। इससे पटाखों से निकला जहरीला धुआं ज्यादा ऊपर नहीं जा पाता और हमारे आसपास के वातावरण में घुल जाता है। एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) का लेवल 150 होने पर ही हमारे शरीर को नुकसान पहुंचने लगता है, जबकि दिवाली के समय यही एक्यूआइ 350 से 400 तक पहुंच जाता है।

ऐसा रहा दिवाली पर प्रदूषण

वर्ष  - अधिकतम ध्वनि स्तर - पीएम 10

2018- 91.8 - 110.30

2017- 89.6 - 120.04

2016- 93.7 - 114.14

2015- 88.7  -101.58

पीएम 10 की गणना आरएसपीएम (रेस्पिरेबल सस्पेंडड पार्टिकल मैटर) में है। यह 10 माइक्रॉन से छोटे आकार वाले कण होते हैं। औद्योगिक और रिहायशी इलाकों में पीएम 10 अगर 60 आरएसपीएम तक हो तो सामान्य माना जाता है।

ध्वनि स्तर की गणना डेसिबल में है। सामान्य स्थितियों में दिन के समय शहर में ध्वनि का स्तर औसतन 55 डेसिबल और रात में 45 डेसिबल के आसपास रहता है। आंकड़े रिहायशी इलाकों के हैं।

रंगीन रोशनी वाले पटाखे सबसे खतरनाक

लाल : स्ट्रॉन्टियम के इस्तेमाल से बने पटाखों से लाल रंग निकलता है। यह छोटे ब'चों की वृद्धि पर प्रभाव डालता है और उनकी हड्डियों के विकास को रोकता है।

हरा : हरे रंग की रोशनी देने वाले पटाखों में बोरिक एसिड का इस्तेमाल होता है, जिससे शरीर में संक्रमण हो सकता है।

नीला : इस रोशनी वाले पटाखों में डायक्सिन होता है। इससे कैंसर होने की आशंका रहती है।

नारंगी : नारंगी रंग के लिए सोडियम क्लोराइड का इस्तेमाल होता है, जिससे ब्लड प्रेशर, किडनी संबंधी बीमारी हो सकती है।

बैंगनी : रूबिडियम और पोटैशियम से बैंगनी रंग बनता है। इसमें कार्सिनोजेनिक या हार्मोन्स को खराब करने वाले केमिकल्स होते हैं, जिससे हार्ट अटैक का खतरा अधिक रहता है।

सफेद : सफेद रोशनी पैदा करने वाले पटाखों में मैग्नीशियम, टाइटेनियम और एल्युमिनियम का प्रयोग होता है, यह अल्जाइमर के कारक हो सकते हैं।

अगर हम सच्‍चे अर्थों में दिवाली पर समृद्धि की कामना करते हैं तो पर्यावरण की समृद्धि को नजरअंदाज कैसे किया जा सकता है? आखिर उसका सीधा असर हमारी सेहत पर पड़ता है। दिवाली सुख और समृद्धि का पर्व है। खुशी जताने का एकमात्र जरिया आतिशबाजी ही नहीं है। - प्रो.सीपीएम त्रिपाठी, पर्यावरणविद्।

दीपावली के पहले और बाद के आंकड़े चौंकाने वाले होते हैं। पीएम 10 का मानक स्तर 60 आरएसपीएम हैं, पर आकलन बताता है कि हम इस मानक स्तर को बनाए रखने के लिए कतई कोशिश नहीं करते। पर्यावरण का सुरक्षित होना हमारे अस्तित्व का अहम कारक है। इसका ध्यान रखना ही होगा। - प्रो. गोविंद पांडेय, पर्यावरणविद्


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