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गोरखपुर मेडिकल कालेज में किडनी के मरीजों की सांसत, डायलिसिस ठप, जानें-क्‍या है वजह Gorakhpur News

आरओ प्लांट 2014 में खरीदा गया था लेकिन इंस्टालेशन अप्रैल 2015 में हुआ था। पांच साल की वारंटी होती है। प्लांट की पाइप फटने के बाद संबंधित कंपनी मेडिलफ सिस्टम को सूचना दी गई है।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Thu, 23 Jan 2020 08:00 PM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 08:00 PM (IST)
गोरखपुर मेडिकल कालेज में किडनी के मरीजों की सांसत, डायलिसिस ठप, जानें-क्‍या है वजह Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में आरओ प्लांट की पाइप फटने से डायलिसिस यूनिट ठप हो गई है। इससे किडनी के मरीजों की सांसत बढ़ गई है। गरीब मरीजों को बाहर जाकर डायलिसिस करानी पड़ रही है। प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डॉ. गिरीश चंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि इंजीनियर आ चुके हैं। मरम्मत शुरू हो चुकी है। आरओ प्लांट बनते ही डायलिसिस शुरू कर दी जाएगी।

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जुलाई में ही खराब हो गई थी मशीन

जानकारी के अनुसार आरओ प्लांट 2014 में खरीदा गया था लेकिन इंस्टालेशन अप्रैल 2015 में हुआ था। पांच साल की वारंटी होती है, इसलिए अभी यह प्लांट वारंटी में है। प्लांट की पाइप फटने के बाद संबंधित कंपनी मेडिलफ सिस्टम को सूचना दी गई थी। उसके इंजीनियर मेडिकल कॉलेज पहुंच चुके हैं। यह आरओ प्लांट गत जुलाई में भी खराब हो गया था। डायलिसिस यूनिट में कुल आठ मशीनें लगी हैं, प्रतिदिन 16 मरीजों की डायलिसिस होती है। मरीजों को महीने में आठ से दस बार डायलिसिस करानी पड़ती है। बाहर हर बार डायलिसिस पर लगभग तीन हजार रुपये खर्च होते हैं। जबकि मेडिकल कॉलेज में गरीब मरीजों की डायलिसिस निश्शुल्क होती है।

एक मरीज की मौत

आवास विकास कालोनी निवासी किडनी के एक मरीज की बुधवार को मौत हो गई। परिजनों का कहना है कि वह 10 साल से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। बीते पांच साल से उनकी डायलिसिस मेडिकल कॉलेज में होती थी। मेडिकल कॉलेज में डायलिसिस ठप हो गई और आर्थिक तंगी के कारण हम लोग बाहर डायलिसिस कराने में असमर्थ थे।

इन मरीजों के लिए खतरनाक है सर्दी का मौसम

पूरे देश में करीब एक अरब लोग सांस की बीमारी से पीडि़त हैं, इसमें 30 करोड़ मरीज अस्थमा के हैं और उसमें तीन करोड़ लोग भारत में हैं। अस्थमा किसी भी उम्र में हो सकता है, यह ब'चों में तेजी से बढ़ता जा रहा है। इस बीमारी के लिए सर्दी का मौसम काफी खतरनाक होता है। यह बातें शाश्वत चेस्ट केयर क्लीनिक, राप्तीनगर फेज वन के चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. शशिकांत बरनवाल ने कही। उन्होंने कहा कि यह एक एलर्जिक बीमारी है जिससे श्वांस की नलियों में सूजन आ जाती है और मरीज की सांस फूलने लगती है। खांसी व बलगम आने लगता है। 


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