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गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने का क्रम जारी, श्रद्धालुओं ने मेले का आनंद भी लिया

खिचड़ी चढ़ाने के बाद श्रद्धालुओं ने परिसर में लगे खिचड़ी मेले की ओर रुख कर रहे हैं और उसका जमकर लुत्फ उठाया। बुधवार को भी मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने वालों की भीड़ लगी रही। गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी का यह क्रम महाशिवरात्रि पर्व तक जारी रहेगा।

By Satish chand shuklaEdited By: Published: Wed, 27 Jan 2021 06:01 PM (IST)Updated: Wed, 27 Jan 2021 06:01 PM (IST)
गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाते श्रद्धालु।

गोरखपुर, जेएनएन। मकर संक्रांति के बाद दूसरे मंगलवार को पडऩे वाले बुढ़वा मंगल पर्व पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु गोरखनाथ मंदिर पहुंचे और आस्था की खिचड़ी बाबा गोरखनाथ के श्रीचरणों में अर्पित की। खिचड़ी चढ़ाने का सिलसिला सुबह से शुरू हुआ और देर शाम तक जारी रहा। खिचड़ी चढ़ाने के बाद श्रद्धालुओं ने परिसर में लगे खिचड़ी मेले की ओर रुख कर रहे हैं और उसका जमकर लुत्फ उठाया। बुधवार को भी मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने वालों की भीड़ लगी रही। गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी का यह क्रम महाशिवरात्रि पर्व तक जारी रहेगा।

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बुढ़वा मंगल पर खिचड़ी चलाने की भी मान्यता उतनी ही है, जितनी मकर संक्रांति की। ऐसे में जो श्रद्धालु मकर संक्रांति को खिचड़ी नहीं चढ़ा पाते, वह बुढ़वा मंगल के दिन अपना यह परंपरागत अनुष्ठान सम्पन्न करते हैं। इस अवसर पर होने वाली भीड़ को नियंत्रित करने और उनकी सुरक्षा के लिए जिला प्रशासन ने पुख्ता इंतजाम किए थे। मंदिर के स्वयंसेवक ने श्रद्धालुओं की आगे बढ़कर मदद की।

मेले में दिखा गजब का उत्साह

मकर संक्रांति से गोरखनाथ मंदिर परिसर में शुरू होने वाला खिचड़ी मेला बुढ़वा मंगल के दिन अपने रौ में दिखा। सुबह से ही मेले में श्रद्धालुओं की भीड़ उमडऩे लगी। देर शाम तक यह स्थिति बनी रही। बुधवार को भी बड़ी संख्या में मंदिर पहुुंचींं महिलाओं और बच्चों ने मेले का जमकर लुत्फ उठाया। किसी ने झूले का आनंद लिया तो किसी का रुझान खानपान की दुकान की ओर दिखा। घरेलू समान और सौंदर्य प्रसाधन की दुकानों पर सुबह से शाम तक भीड लगी रही। एक माह का यह मेला महाशिवरात्रि तक चलेगा।

बुढ़वा मंगल की यह है मान्यता

बुढ़वा मंगल का पर्व पौष माह के अंतिम मंगलवार को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले हनुमान जी का दर्शन-पूजन करना शुभ माना जाता है। मान्यता है इस दिन हनुमान जी की पूजा से सारे कष्ट समाप्त हो जाते  हैं। बुढ़वा मंगल की मान्यता रामायण काल से जुड़ी है। मान्यता है कि इसी दिन रावण ने लंका स्थित अपने राजदरबार में हनुमान जी पूंछ में आग लगवाई थी, जिसके बाद उन्होंने रावण की लंका को जलाने के लिए अपनी पूंछ में बड़वानल यानी विशाल अग्नि पैदा कर दी थी। इसी कारण माह के आखिरी मंगलवार को बुढ़वा मंगल नाम मिला।


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