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दवा कंपनियों और डॉक्टरों की सांठगांठ से मर रहे जन औषधि केंद्र, नहीं बिक रहीं जेनरिक दवाएं

गोरखपुर जिले के अस्पतालों में डॉक्टर ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं। इससे उन्हें 40 प्रतिशत कमीशन मिल रहा है। ऐसे में जन औषधि केंद्रों पर उपलब्ध जेनरिक दवाएं नहीं बिक रही हैं। जिससे दवाएं एक्सपायर हो जा रही हैं।

By Pragati ChandEdited By: Published: Sun, 26 Jun 2022 10:50 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jun 2022 10:50 AM (IST)
दवा कंपनियों और डॉक्टरों की सांठगांठ से मर रहे जन औषधि केंद्र, नहीं बिक रहीं जेनरिक दवाएं
दवा कंपनियों और डॉक्टरों की सांठगांठ से मर रहे जन औषधि केंद्र। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। दवा कंपनियों व डॉक्टरों की सांठगांठ से गरीबों को सस्ती दवा (जेनरिक) उपलब्ध कराने वाले जन औषधि केंद्र दम तोड़ रहे हैं। अच्छे कमीशन के चलते डॉक्टर कंपनियों की ब्रांडेड दवाएं लिख रहे। रोगियों को मेडिकल स्टोरों से महंगे दाम पर दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं। दूसरी तरफ जन औषधि केंद्रों पर दवाएं एक्सपायर हो रही हैं। केवल जिला अस्पताल व महिला अस्पताल के जन औषधि केंद्रों पर एक साल में तीन-तीन लाख रुपये की दवाएं एक्सपायर हुई हैं। लगातार घाटा होने से ये केंद्र बंद होते जा रहे हैं। एक साल के अंदर जिले में सात केंद्र बंद हो गए।

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शासन का स्पष्ट निर्देश है कि जो दवाएं अस्पताल में न हों, उनकी जेनरिक रोगियों के पर्चे पर लिखी जाएं। ताकि वे जन औषधि केंद्रों से सस्ते दाम में खरीद सकें। जिला अस्पताल के हर बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) में प्रमुख अधीक्षक का निर्देश चस्पा किया गया है, जिसमें स्पष्ट निर्देश है कि जेनरिक दवाएं ही लिखी जाएं। बावजूद इसके ज्यादातर डाक्टर कमशीन के चलते ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं, जो मेडिकल स्टोरों पर मिलती हैं। जानकारों के मुताबिक डाक्टरों को 40 प्रतिशत तक कमीशन मिलता है।

एक केंद्र संचालक ने उदाहरण देकर समझाया कि गैस की दवा पेंटाप्राजोल व डोमपेरीडान की लोकल कंपनियों की ब्रांडेड दवा 150 रुपये में 100 गोली मिलती है। जिसका अधिकतम खुदरा मूल्य 1200 रुपये है। इसमें 20 प्रतिशत अर्थात 240 रुपये मेडिकल स्टोर का होता है। खरीद निकालकर जो भी बचता है, उसका आधा डाक्टर को चला जाता है। यह खेल लंबे समय से चल रहा है। मेडिकल स्टोरों पर इसके 10 गोली के एक पत्ते की कीमत 120 रुपये है। जबकि जन औषधि केंद्रों पर यही दवा मात्र 22 रुपये में मिलती है। डाक्टरों की मनमानी के चलते रोगियों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। यही सांठगांठ तोड़ने के लिए शासन ने जन औषधि केंद्रों की स्थापना की है, लेकिन शासन की मंशा सफल नहीं हो पा रही है।

सीएमओ डा. आशुतोष कुमार दूबे ने बताया कि सभी डाक्टरों को निर्देशित किया गया है कि जेनरिक ही लिखें। यदि कोई इसका पालन नहीं कर रहा है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। शासन की मंशा है कि रोगियों के सस्ती दवाएं उपलब्ध हों। शासन की मंशा से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

जिला अस्पताल के जन औषधि केंद्र के फार्मासिस्ट वसीउल्लाह खान ने बताया कि डाक्टरों व कंपनियों की मिलीभगत से रोगियों का ही नहीं, जन औषधि केंद्रों का भी नुकसान हो रहा है। जिले में 28 से अधिक जन औषधि केंद्र थे। इस समय केवल 12 चल रहे हैं। सात तो इसी साल बंद हो गए। दवाएं बिकती नहीं और एक्सपायर हो जाती हैं।


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