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अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस: युवाओं को चुनौती दे रही बुजुर्गों की जिंदादिली, उम्र को पीछे छोड़ मिसाल बने यह लोग

गोरखपुर जिले के कई ऐसे बुजुर्ग हैं जो खुद को बुजुर्ग नहीं समझते हैं बल्कि अपने उत्साह और जज्बे से युवाओं में जोश भरने का काम कर रहे हैं। घर छोड़ वृद्धाश्रम में शरण लेने वाले लोग भी खुद को खुश रखने का कोई कसर नहीं छोड़ते।

By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandPublished: Sat, 01 Oct 2022 03:47 PM (IST)Updated: Sat, 01 Oct 2022 03:47 PM (IST)
अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस: युवाओं को चुनौती दे रही बुजुर्गों की जिंदादिली।

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। कौन कहता है हम बुजुर्ग हैं? बुजुर्गियत तो मन से होती है और मन से हम आज भी किसी युवा से कम नहीं। जब यह जज्बा हो तो उम्र उत्साह में कभी आड़े आ ही नहीं सकती। शहर के कुछ बुजुर्ग इसकी बानगी हैं। उन्होंने अपने आत्मबल से बढ़ती उम्र को पिछले पांव पर कर दिया है। यही नहीं ऐसे कई लोग अपने परिवार के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बने हुए हैं। कुछ ऐसे भी बुजुर्ग हैं, जिन्होंने वृद्धाश्रम में शरण ले रखी है, बावजूद इसके, जिंदगी को लेकर उनका नजरिया बहुत ही सकारात्मक है। ऐसे लोग अपनी सकारात्मकता से आश्रम में रहने वाले अन्य बुजुर्गों में भी जीवन के प्रति आकर्षण बढ़ा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस हमें यह अवसर देता है कि इन युवा-बुजुर्गों के जरिये उम्र से हार मानने वालों में जोश भरें और उनमें जीवन को जिंदादिली से जीने का जज्बा जगाएं।

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पूरे परिवार की ऊर्जा है बालकृष्ण सर्राफ

ऐश्प्रा ग्रुप के संरक्षक बालकृष्ण सर्राफ 95 वर्ष के हो चुके हैं लेकिन जीवन को लेकर उनका उत्साह पूरे परिवार के लिए ऊर्जा का स्रोत है। उनके पुत्र अतुल सर्राफ बताते हैं कि पिताजी मना करने के बावजूद दिन में एक बार प्रतिष्ठान में जरूर जाते हैं और सभी का हौसला बढ़ाते हैं। किसी भी परिवारिक आयोजन या पर्व को लेकर उनका उत्साह पूरे परिवार को उत्साहित कर देता है।

बुजुर्गों को तीर्थाटन कराते हैं 88 वर्ष के जगदीश

कोतवाली रोड पर रहने वाले जगदीश प्रसाद की उम्र 88 वर्ष हो चुकी है लेकिन वह अपने दिनचर्या में इसे मानने को तैयार नहीं। जानकारी आश्चर्य होगा कि साल में करीब दो बार वह बुजुर्गों को जुटाकर तीर्थाटन कराने के लिए ले जाते हैं। इस दौरान वह अपने से काफी कम के उम्र के लोगों का भी सहारा बनते हैं। इस उम्र में भी वह प्रतिदिन संघ की शाखा में जाते हैं।

गीतों से खुद को खुश रखते हैं मनोज

गोकुलधाम वृद्धाश्रम में ठिकाना बनाने वाले दीवान बाजार के मनोज कुमार दुबे की उम्र 70 पार कर चुकी है लेकिन उनकी दैनिक गतिविधियों को देखकर इसका अंदाजा हरगिज नहीं लगाया जा सकता। वह खुद को युवा-दिल बनाए रखने के लिए फिल्मी गीतों का सहारा लेते हैं। पूरे दिन गीत गाते देखे जा सकते हैं। अपनी गीतों के जरिये वह पूरे वृद्धाश्रम का माहौल बदल देते हैं।

खुद खुश रहती हैं, औरों के लिए बनती हैं प्रेरणा

घोसी मऊ की रहने वाली 80 वर्षीय सुभावती मूक-बधिर है। गोकुलधाम वृद्धाश्रम में वह लंबे समय से रह रही हैं। इन सारे कष्टों के बावजूद वह हमेशा न केवल खुद खुश रहती हैं बल्कि आश्रम में रहने वाली सभी महिलाओं को खुश रहने को प्रेरित करती रहती हैं। आश्रम के अधीक्षक राम सिंह निषाद ने सुभावती को संस्थान के सुचारू संचालन की जिम्मेदारी सौंप रखी है।


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