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चाइनीज पर भारी पड़ने लगे स्वदेशी खिलौने, डिमांड से बाहर हुआ ड्रैगन

गोरखपुर के बाजार में चाइनीज खिलौनों पर भारतीय खिलौने भारी पड़ रहे हैं। स्थिति यह है कि इस समय चाइनीज ड्रैगन डिमांड न के बराबर रह गई है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Tue, 01 Sep 2020 10:40 AM (IST)Updated: Tue, 01 Sep 2020 11:17 PM (IST)
चाइनीज पर भारी पड़ने लगे स्वदेशी खिलौने, डिमांड से बाहर हुआ ड्रैगन
चाइनीज पर भारी पड़ने लगे स्वदेशी खिलौने, डिमांड से बाहर हुआ ड्रैगन

गोरखपुर, जेएनएन। बाजार में चाइनीज खिलौनों का दबदबा कम हो रहा है। शहर में बिकने वाले करीब 80 फीसद खिलौने चीन से निर्यात होकर आते थे, लेकिन भारत से चीन के टकराव के बाद बाजार में ड्रैगन की जड़ें हिलने लगी हैं। अब स्वदेशी खिलौने बाजार में काबिज होते जा रहे हैं। काेरोना महामारी के चलते इतनी ग्राहकी नहीं है, लेकिन जो कोई भी ग्राहक बच्चों के लिए खिलौने लेने आ रहा है, वो स्वदेशी की मांग कर रहा है। खिलौने कारोबारियों के मुताबिक एक समय तक जब चीन के खिलौनों से बाजार भरा रहता था। यह रेट में थोड़े सस्ते होते हैं, लेकिन अब इसी रेट में भारत निर्मित खिलौने बाजार में हैं। गुणवत्ता में भी वह चीन निर्मित उत्पाद से कम नहीं है।

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पांडेयहाता और शाहमारुफ में खिलौने की सौ से ज्यादा थोक की दुकानें हैं। आसपास के जिलों क अलावा नेपाल और बिहार के सिवान, छपरा, बेतिया और नरकटियागंज तक खिलाैने की आपूर्ति गोरखपुर से होती है। अनुमान के मुताबिक खिलौने का सालाना कोराबार करीब 75 से 80 करोड़ रुपये का है। चाइना से तकरीबन एक हज तरह के खिलौने स्थानीय बाजार में आते थे। कई ऐसे थोक विक्रेता हैं जो महीने में 50 लाख रुपये खिलौना बेच लेते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद से खिलौना की मांग करीब 50 फीसद तक कम हो गई है। कोरोना के कारण बीते आठ महीनों में चीन से आने वाले सामान पर निभर्रता कम हुई है। दिल्ली समेत कई शहरों में शानदार खिलौने बन रहे हैं, हालांकि लॉकडाउन के बाद से उत्पादन में 35 फीसद तक कमी आई।

विकल्प तलाश रहे कारोबारी

बच्चों को जो खिलौने सार्वधिक पसंद आता है उसमें रिमाेर्ट कार, हेलीकाॅप्टर, बस, ट्रेन, म्यूजिकल गुड़िया और काटूर्न कैरेक्टर वाले खिलौने शामिल हैं और यह सभी चाइना से निर्यात होकर आता है। खिलौने विक्रेता इसरार अहमद का कहना है कि निर्यात कम होने से खिलौने की कीमत 65 फीसद तक बढ़ गई है। दिल्ली में कई कंपनियां खिलौना बनाती थी, लेकिन स्टॉफ की कमी के चलते फैक्ट्रियाें में उत्पादन कम हो गया है। चाइनीज खिलौने को लेकर भी ग्राहकों का मिजाज भी बदल रहा है। खिलौना कारोबारी चंदन शर्मा के मुताबिक अगर देश में ही सस्ता एवं अच्छा खिलौना बने तो कोई विदेशी सामान क्यों खरीदें। कई आइटमों को भारतीय कंपनियों ने बनाना शुरू कर दिया है। अगले साल जनवरी से दुकानों पर स्वदेशी खिलौने ज्यादा नजर आएंगे।

डिमांड से बाहर हुआ चाइनीज ड्रैगन

स्वदेशी खिलौने में रॉयल स्पिन फिश, कार, बाइक, बंदूक, सॉफ्ट टॉयज, शतरंज, लूडो, बोर्ड गेम, बिजनेस गेम और न्यूबोर्न बेबी के झूले सहित अन्य खिलौने बाजार में उपलब्ध हैं। इसी तरह स्पिन पोनी, मॉर्निंग कॉक, म्यूजिकल गियर एलीफेंट, गियर होर्स, हैलो पप्पी, इंडियन टाइगर और फनी फायर जैसे खिलौने भी देश में बनने लगे हैं। जबकि चायनीज ड्रैगन सहित अन्य खिलौने अब डिमांड से बाहर होते जा रहे हैं।


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