दुनिया पर होगा आत्मनिर्भर भारत का राज
राष्ट्रवादी चिंतक दयानंद पांडेय ने कहा कि भारत के आत्मनिर्भरता का रास्ता गांव से होकर गुजरता है। आत्मनिर्भरता भारत की मिट्टी में है। गांव के लोग पांच दशक पहले भी मेहनत के बल पर किसी भी समारोह का आयोजन सफलतापूर्वक कर लेते थे।
सिद्धार्थनगर : राष्ट्रवादी चिंतक दयानंद पांडेय ने कहा कि भारत के आत्मनिर्भरता का रास्ता गांव से होकर गुजरता है। आत्मनिर्भरता भारत की मिट्टी में है। गांव के लोग पांच दशक पहले भी मेहनत के बल पर किसी भी समारोह का आयोजन सफलतापूर्वक कर लेते थे। लेकिन धीरे-धीरे गांव पर बाजार ने कब्जा कर लिया है। उसके बाद परिस्थितियां परिवर्तित हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नए आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना की, जिसके तहत भारतीय उद्योगों को बढ़ावा मिला। वह दिन दूर नहीं जब आत्मनिर्भर भारत पूरे दुनिया पर राज करेगा।
दयानंद पांडेय गुरुवार को सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के बीबीए विभाग की ओर से आयोजित आर्थिक विकास में आत्म निर्भर भारत अभियान की भूमिका विषयक पर आनलाइन व्याख्यान में कही। कहा कि आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की आवश्यकता पर प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत से दुनिया की उम्मीदें बढ़ी हैं। कोविड-19 महामारी संकट के दौरान राष्ट्र ने पूरे विश्व का विश्वास जीतने का काम किया है। कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे ने कहा वसुधैव कुटुंबकम सूत्र पर राष्ट्र विश्वास करता है। लोकल के लिए वोकल बनना होगा। स्थानीय सुविधाएं विकसित करनी होगी। औद्योगिक क्षेत्र में मजबूती लाने के लिए उन उद्योगों में निवेश करना होगा। जिनमें वैश्विक ताकत के रूप में उभरने की संभावना है। अध्यक्ष बीबीए विभाग डा. अखिलेश दीक्षित, डा. नीरज कुमार सिंह, डा. विमल चंद्र वर्मा आदि मौजूद रहे। गौरवशाली है भारत का प्राचीन इतिहास : डा. मयंक सिद्धार्थनगर : दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कालेज के प्रोफेसर डा. मयंक कुमार ने कहा कि भारत का प्राचीन इतिहास गौरवशाली रहा। इस धरोहर को संजो कर रखना सभी भारतीय का नैतिक दायित्व है। प्राचीन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। इतिहास में पर्यावणीय कारकों को समझना होगा। तभी लेखन में समुचित स्थान प्रदान किया जा सकता है।
यह बातें उन्होंने शुक्रवार को सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति व पुरातत्व विभाग में हुए आनलाइन व्याख्यान में कही। वह इतिहास लेखन का बदला स्वरूप, पर्यावरणीय इतिहास के विशेष संदर्भ विषय पर अपने विचार को रखा। कहा कि प्राचीन ग्रंथों में पशुपक्षी, जलवायु विविधता, नदियों आदि का उल्लेख मिलता है। अगर इनपर गहराई से विचार किया जाए तो तत्कालीन इतिहास की जानकारी मिलेगी। उस समय का इतिहास जलवायु व पर्यावरण पर आधारित रहा। परंपरागत इतिहास की बंदिशों से बाहर निकलना होगा। लेखन के क्षितिज को विस्तृत करके ही हम अपनी संस्कृति को सुरक्षित रख सकते हैं। पर्यावरणीय कारकों की जानकारी इतिहास लेखन में समुचित स्थान मिलेगा। जब आयाम विस्तृत होगा तभी प्रासंगिक और तर्कपूर्ण इतिहास का लेखन संभव है। अध्यक्ष प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग डा. नीता यादव, डा. शरतेंदु कुमार त्रिपाठी आदि मौजूद रहे।