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समय, समाज और शब्द संवाद विषय पर मंथन के साथ गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल का आगाज Gorakhpur News

हिंदी साहित्य जगत की महान हस्तियों ने न केवल शब्द के अर्थ को रेखांकित किया बल्कि संवाद के महत्व से भी सभी को परिचित कराया।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Sun, 02 Feb 2020 09:50 AM (IST)Updated: Sun, 02 Feb 2020 10:02 AM (IST)
समय, समाज और शब्द संवाद विषय पर मंथन के साथ गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल का आगाज Gorakhpur News
समय, समाज और शब्द संवाद विषय पर मंथन के साथ गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल का आगाज Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। साहित्य, कला, मीडिया और फिल्म से जुड़े प्रासंगिक विषयों पर दो दिवसीय बौद्धिक मंथन की शुरुआत हो गई है। मंच था गोरखपुर लिटरेरी फेस्टिवल का और विषय 'समय, समाज और शब्द संवाद। हिंदी साहित्य जगत की महान हस्तियों में शुमार साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ तिवारी, मशहूर साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा, विभूति नारायण राय और प्रो. केसी लाल ने न केवल शब्द के अर्थ को रेखांकित किया बल्कि संवाद के महत्व से भी सभी को परिचित कराया।

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जहां संवाद खत्म होता है, हिंसा वहीं से शुरू

सेंट एंड्रयूज कॉलेज सभागार में प्रो. विश्वनाथ तिवारी ने अस्तित्ववादी दार्शनिक ज्यां पाल सात्र के उस कथन को याद किया, जिसमें उन्होंने शब्द संवाद को हिंसा का विकल्प बताया है। उन्होंने शब्द को मनुष्य के सर्वाधिक महत्वपूर्ण आविष्कारों में से एक बताते हुए कहा कि जहां संवाद खत्म होता है, हिंसा वहीं से शुरू होती है। कृत, कारित और अनुमोदित हिंसा का जिक्र करते हुए उन्होंने अनुमोदित ङ्क्षहसा में संपूर्ण समाज को शामिल किया। कहा कि संवाद ही वह माध्यम है, जिससे हम इस हिंसा पर विराम लगा सकते हैं। संवाद में साहित्यकार की भूमिका पर उन्होंने कहा कि उसे कहने की कला आती है, जिससे वह अभिव्यक्ति की समस्या को सुलझा लेता है। इसके उलट जो शब्दों से अभिव्यक्ति कर लेता है, वही लेखक है। संवाद दरअसल पुराने समय का शास्त्रार्थ है, जो आज लोकतंत्र की शक्ति बन चुका है।

मैत्रेयी पुष्‍पा की नजर में साहित्‍यकार की परिभाषा

मैत्रेयी पुष्पा ने भाव की अभिव्यक्ति को शब्दों में पिरो देने वाले को साहित्यकार बताया। आधुनिक युग में भाव के गुम होने पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि इसके लिए आज भी हम प्रेमचंद के हामिद को याद करते हैं। बदलाव के इस दौर में पत्र लेखन की प्रासंगिकता बताते हुए उन्होंने संवाद के विषय से अपनी अभिव्यक्ति को जोड़ा। कहा कि साहित्यकारों की रचनाएं समाज के नाम प्रेमपत्र हैं और यह हर किसी को लिखते रहना चाहिए। अपने जीवन के कई रोचक प्रसंगों को साझा करते हुए उन्होंने युवाओं से प्रेमपत्र लेखन की परंपरा को पुनर्जीवित करने अपील की। उन्होंने पत्र लिखने को साहित्य लेखन की शुरुआत बताया।

साहित्यकार विभूति नारायण राय ने अभिव्यक्ति के अंतर्द्वंद्व पर अपनी बात रखने के लिए शाहीनबाग में सीएए के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन का जिक्र किया। कहा कि तीन तलाक पर संविधान को नकारते लोग इस मुद्दे पर संविधान की दुहाई देते दिखे। शब्द की प्रासंगिकता पर चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि कालजयी साहित्य के शब्द समकालीन समय में ही नहीं आने वाली पीढिय़ों को भी प्रेरणा देते रहेंगे। साहित्य के सृजन को उन्होंने एक्टिविज्म की देन बताया। कहा कि वैश्विक स्तर पर मानवतावादी विचारों और अधिकारों की शब्द यात्रा मैग्नाकार्टा से लेकर संयुक्त राष्ट संघ के चार्टर में साफ तौर पर देखी जा सकती है।

प्रो. केसी लाल ने कहा कि शब्द किसी घातक शस्त्र से अधिक संहारक होते हैं, इसलिए इसका प्रयोग मर्यादित होना चाहिए। बोलने की आजादी में मर्यादा का उल्लंघन न हो, यह देखना हर प्रबुद्ध नागरिक की जिम्मेदारी है। अतिथियों का स्वागत डॉ. रजनीकांत श्रीवास्तव, शैवाल श्रीवास्तव, हर्षवर्धन राय, डॉ. संजय श्रीवास्तव ने किया। संचालन सुकीर्ति अस्थाना ने किया। 


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