अब नहीं जाएंगे बाहर, गांव में ही खोज ली मुंम्बई और दिल्ली की राह
कोरोना आपदा ने परदेस कमाने गए लोगों से रोजगार छीना है तो गांव ने अवसरों के नए ठौर दिए हैं।
By Edited By: Updated: Sat, 29 Aug 2020 09:56 AM (IST)
संत कबीरनगर, जेएनएन : कोरोना आपदा ने परदेस कमाने गए लोगों से रोजगार छीना है तो गांव ने अवसरों के नए ठौर दिए हैं। जो हुनरमंद हाथ कभी मुंबई-दिल्ली में रोटी कमा रहे थे, बदली परिस्थितियों गांव में ही इसकी राह खोज ली है। मेंहदावल तहसील क्षेत्र के तमाम प्रवासी कामगार इसकी बानगी हैं तो जज्बे से नई राह निकालने की नजीर भी हैं। बड़े शहरों की तरह यहां रोजगार खड़ा कर परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं।
गुड्डू ने खोला सलूनमेंहदावल के टड़वरिया गांव के गुड्डू पिछले एक दशक से मुंबई में सलून की दुकान पर काम करते थे। 20 हजार महीने की आमदनी हो जाती थी। मार्च में लॉकडाउन हुआ तो घर लौट आए। घर के चूल्हे पर संकट आया तो मेंहदावल-सांथा मार्ग पर पेड़ के नीचे में अपना खुद का सलून खोल लिया। गुड्डू ने बताया कि अब यहीं रहकर काम करना है। दो पैसे कम मिलेंगे, लेकिन सुकून तो मिलेगा।
बेचन चला रहे लस्सी की दुकानमेंहदावल के बेचन 15 वर्षों से मुंबई में काम करते थे। कोरोना काल में घर आए तो रोटी का संकट खड़ा हो गया तो गांव में ही लस्सी की दुकान खोल ली। इसी से पूरे परिवार का खर्च चल रहा है। बेचन बताते हैं कि अगर बैंक से कर्ज मिल गया तो चप्पल बनाने की फैक्ट्री गांव में लगाएंगे और लोगों को भी रोजगार देंगे। विधायक मेंहदावल राकेेश सिंह बघेल का कहना है कि गांव में ही रहकर रोजगार पैदा करने का निर्णय सराहनीय है। सरकार प्रवासी कामगारों की मदद के लिए तमाम प्रकार की योजनाएं चला रही है। मैं खुद भी स्थानीय स्तर पर इनकी मदद करूंगा। मेंहदावल के एसडीएम का कहना है कि बाहर से आए कामगारों ने गांव में अपना रोजगार शुरू किया है, यह अन्य लोगों के लिए नजीर हैं। जिसे लघु व कुटीर उद्योग के लिए कर्ज या योजनाओं का लाभ लेना है, सही पटल पर आवेदन करे। कोई बाधा आ रही है तो संपर्क करें, उसे दूर किया जाएगा।
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