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सैकड़ों को रोजगार देने वाला राजकीय रेशम फार्म हुआ सरकारी उपेक्षा का शिकार Gorakhpur News

महराजगंज जिले में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार मुहैया कराने व रेशम धागा के निर्माण के लिए वर्ष 1956 में स्थापित व 5.69 एकड़ में फैले राजकीय रेशम फार्म निचलौल अब उपेक्षा का शिकार हो गया है।

By Rahul SrivastavaEdited By: Published: Sat, 27 Feb 2021 12:10 PM (IST)Updated: Sat, 27 Feb 2021 12:10 PM (IST)
सैकड़ों को रोजगार देने वाला राजकीय रेशम फार्म हुआ सरकारी उपेक्षा का शिकार Gorakhpur News
राजकीय रेशम फार्म निचलौल में सहतूत की पत्‍ती तोड़ते मजदूर।

गोरखपुर, जेएनएन : महराजगंज जिले में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार मुहैया कराने व रेशम धागा के निर्माण के लिए वर्ष 1956 में स्थापित व 5.69 एकड़ में फैले राजकीय रेशम फार्म निचलौल अब उपेक्षा का शिकार हो गया है। मात्र एक केंद्र प्रभारी के जिम्मे रेशम फार्म की हालत बदहाल है। प्रति माह कई क्विंटल रेशम का उत्पादन करने वाला केंद्र अब कुछ किलो का उत्पादन मुश्किल से कर पा रहा है। सरकारी उदासीनता व मेहनत की अपेक्षा कम दाम मिलने से अब रेशम कीट पालन के लिए किसानों की आवक भी कम हो गई है। साथ ही उत्पादन भी घटकर कुछ किलो तक सीमित हो गया है। अगर राजकीय रेशम फार्म में कर्मियों की भर्ती कर उसे विस्तार दिया जाए तो रेशम उत्पादन के साथ क्षेत्र के किसानों की आय भी बढ़ेगी।

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क्षेत्र के किसान करते हैं रेशम कीट का पालन

राजकीय रेशम फार्म अब पहले जैसे रेशम कीट पालन की व्यवस्था नहीं कर पा रहा है। ग्राम बैदौली, बनकटवा, निचलौल व बाली के किसान रेशम कीट पालन में जुड़े हुए थे। अब केवल ग्राम बनकटवा के कुछ किसान रेशम कीट का पालन कर रहे हैं, जिसके लिए उन्हें रेशम फार्म से रेशम कीट उपलब्ध कराया जाता है। जिन्हें खिलाने के लिए केंद्र स्थित सहतूत की पत्ती तोड़कर घर ले जाते हैं।

25 दिन में तैयार होता है बाई बोल्ट प्रजाति का रेशम

रेशम फार्म पर काम कर रहे मजदूर हुकुम ने बताया कि रेशम धागा तैयार करने के लिए उन्नत प्रजाति के बाई बोल्ट कीट के अंडे को गोरखपुर व बहराइच से मंगाया जाता है, जिससे पहले राजकीय केंद्र पर ही रेशम कीट पैदा कराया जाता है। जिसे 6-7 दिन बाद किसानों को बांट दिया जाता है। जिसे वह अपने घर पर 22-25 दिन पालते हैं। इसके बाद 25 दिन में रेशम तैयार  हो जाता है, जिसे व्यापारी घर से खरीद कर ले जाते हैं।

पांच सौ रुपये किलो बिकता है कच्चा रेशम कोवा

रेशम कीट सहतूत की पत्ती खाकर रेशम का उत्पादन करते हैं, जिसके बाद वह एक गोल आकार का रेशम कोवा बनाते हैं, जिससे रेशम धागा निकाला जाता है। किसानों का कहना है कि 22-25 दिन में तैयार होने के बाद कच्चे रेशम कोवा को बैंगलोर, देहरादून व कश्मीर के व्यापारी कभी घर से तो कभी केंद्र से ही खरीद कर ले जाते हैं, जिसकी वर्तमान में कीमत पांच सौ रुपये प्रति किलो है।

एक किसान माह में कर रहा दस हजार की आय

किसानों ने बताया कि एक किसान 25 दिन में लगभग 20 किलो कच्चे रेशम को तैयार कर बेचते हैं। पांच सौ रुपये प्रति किलो के हिसाब से प्रत्येक किसान लगभग 10 हजार रुपये की आय कर लेता है, लेकिन पत्ती तोड़ने से लेकर उसे पालने की मजदूरी जोड़ी जाए तो यह कीमत कुछ भी नही है। फिर भी बेरोजगारी के दौर में कुछ किसान रेशम कीट पालन में जुटे हुए हैं।

कर्मियों की कमी और नई भर्ती नहीं होने से काम में आई शिथिलता

राजकीय रेशम फार्म प्रभारी कपिल गौड़ ने बताया कि उनके जिम्मे निचलौल व डोमा केंद्र की जिम्मेदारी है। कर्मियों की कमी और नई भर्ती नहीं होने से काम में शिथिलता तो आएगी ही, फिर भी अपनी पूरी क्षमता से काम किया जा रहा है। रेशम कीट पालन के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। मेहनत की अपेक्षा कम आय से कोई पालन नहीं करना चाहता है। अगर रेशम की मांग और सरकारी सहायता बढ़े तो यह रोजगार का बेहतर जरिया बन सकता है।


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