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कृषि की तस्वीर और अन्नदाता की तकदीर भी बदली, जानें कैसे हुृआ करिश्मा

कार्यक्रम में ऐसे लोग भी उपस्थित रहे जिन्होंने गोबर से गेहूं बीनने का दौर देखा था। अब वह वर्तमान भी देख रहे हैं जहां लोग काफी ऊंचाई पर हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 05 Mar 2019 05:08 AM (IST)Updated: Tue, 05 Mar 2019 05:08 AM (IST)
कृषि की तस्वीर और अन्नदाता की तकदीर भी बदली, जानें कैसे हुृआ करिश्मा

गोरखपुर, जेएनएन। गोबर से गेहूं बीनने से लेकर विदेशी सड़े मक्के की रोटिया खाने वाले बुजुगरें की कहानी ने युवाओं को झकझोर दिया तो सरकार के प्रयासों से सुनहरे भविष्य की तस्वीर ने चेहरों पर संतोष की मुस्कान बिखेरी। मंच दैनिक जागरण का था और सत्र अन्नदाता की बदलती तस्वीर। कृषि क्षेत्र में अध्ययन, अनुसंधान और काम कर रहे विषय विशेषज्ञों की परिचर्चा में किसानों की आय दो नहीं बल्कि तीन गुना करने का मंत्र मिला तो सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी से वह समृद्ध भी हुए। परंपरागत जैविक खेती से लेकर आधुनिक तकनीकों, यंत्रों के इस्तेमाल और पशुधन के जरिए किसानों की तकदीर बदलने का खाका भी इस सत्र में खींचा गया। संचालक और पैनल सदस्यों ने एक-एक बिंदु पर सरल और सहज भाव में अपनी बात रखी तो सरकार की हर उपलब्धि पर हाल तालियों से गूंजता रहा।

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उत्तर प्रदेश की विकास यात्रा-23 माह परिवर्तन के विषय पर आयोजित परिचर्चा के पहले सत्र का संचालन डॉ राजशरण शाही ने किया। कृषि के अतीत से लेकर वर्तमान और भविष्य की संक्षिप्त रूपरेखा में ही उन्होंने भारत में खेती की पूरी तस्वीर प्रस्तुत कर दी। सरकार के प्रयासों और कायरें को आकड़ों के साथ उन्होंने पटल पर रखा तो मौजूद सदस्यों को चर्चा के लिए पर्याप्त सामग्री मिल गई। कृषि विज्ञान केंद्र के पूर्व निदेशक सीएम सिंह ने सत्र को आगे बढ़ाते हुए सरकार के प्रयासों पर संतोष जताया तो बीज पर सब्सिडी के साथ उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने का सुझाव भी दिया। पूर्व निदेशक ने इस बात पर जोर दिया कि मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराना ही पर्याप्त नहीं है, इसके उपयोग, तत्वों के महत्व को बताकर उसे मिट्टी को संतृप्त कराना भी आवश्यक है। उत्पादों की मार्केटिंग के लिए सरकार बाजार उपलब्ध कराए तो परिणाम और भी सुखद होंगे। दलहन, तिलहन और मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना किसानों के लिए वरदान है।

परंपरागत जैविक खेती की दुर्दशा पर भी चर्चा

इस चर्चा के बीच ही सत्र को आगे बढ़ाने की कमान जैविक खेती में ऐतिहासिक कार्य कर रहे कृषि वैज्ञानिक आरसी चौधरी ने संभाल ली। डा. चौधरी ने परंपरागत जैविक खेती की दुर्दशा पर सभी का ध्यान खींचा। उन्होंने बताया कि जैविक खेती की बात करते ही किसान किस तरह उल्टी माला जपने का ताना मारते हैं। उन्होंने कहा कि जिन किसानों को यूरिया और कीटनाशक रसायन की सलाह दी गई अब उन्हें दोबारा गोबर की खाद पर ले जाने का काम चुनौतीपूर्ण जरूर है, लेकिन यह हो रहा है। जैविक काला नमक को मूंछ के बाल की संज्ञा देते हुए उन्होंने जैविक खेती के बढ़ते रकबे को आकड़ों से समझाया। उन्होंने दूध, फल और सब्जी के उत्पादन पर भी जोर दिया। कृषि ऋण माफी योजना का खंडन करते हुए डा. चौधरी इसे बेईमानी को बढ़ावा देने वाला बताया। यंत्रों पर सब्सिडी देने के साथ बीज पर मिलने वाली सब्सिडी को छोटे-मझोले उत्पादकों तक पहुंचाने का सुझाव दिया।

सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए इस तरह किया काम

किसानों के हित में शासन-प्रशासन के कायरें और उपलब्धियों को बताने का जिम्मा जिला उद्यान अधिकारी बलजीत सिंह ने संभाला। डायरेक्ट बेनीफिट ट्रासफर (डीबीटी) को ऐतिहासिक कदम बताते हुए डीएचओ ने बिचौलियों और दलालों पर इसे सबसे बड़ा प्रहार बताया। उन्होंने बताया कि सरकार ने किस तरह आय को बढ़ाने के लिए चार टूल बनाए हैं। लागत कम करने के लिए अनुदान और सब्सिडी दी जा रही है तो उत्पादन बढ़ाने के लिए तकनीक और आधुनिक यंत्रों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है। उत्पाद का भाव सही मिले इसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ सरकारी खरीद, मंडियों और फूड पाकरें के विकास पर सरकार काम कर रही है। पशुधन को आय बढ़ाने का चौथा मंत्र बताते हुए उन्होंने इसके लिए किसानों को प्रेरित भी किया।

यूएफओ के पूर्व सलाहकार डा. संजीव श्रीवास्तव ने सत्र के अंतिम वक्ता के रूप में परिचर्चा को आगे बढ़ाने हुए कहा कि उद्देश्य तब पूर्ण होगा जब निष्कर्ष को सरकार के माध्यम से समाज के अंतिम छोर तक तक पहुंचाने का काम हम कर सकें। बढ़ते शहरी क्षेत्र और घटती कृषि भूमि के बीच पशुधन ही किसानों की दशा बदल सकता है। हमारी सरकार देशी गोवंश के संरक्षण पर काम कर रही है। आने वाले समय में ऐसी व्यवस्था होगी जब सिर्फ बछिया ही पैदा होगी। पशुधन तो समृद्ध होगा ही साथ ही छुट्टा मवेशियों से भी निजात मिलेगी। सत्र के समापन पर संचालक राजशरण शाही समेत सभी सदस्यों ने इस बात पर मुहर लगाई कि वर्तमान सरकार कृषि की तस्वीर बदलकर अन्नदाताओं की तकदीर बदलने का काम कर रही है।

सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धिया

- किसानों का 36 हजार करोड़ रुपये ऋण माफ किया गया।

- 55 हजार रुपये के बकाया गन्ना मूल्य का भुगतान हुआ।

- 93 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की गई।

- 89 लाख मीट्रिक टन धन की खरीद की गई।

- पहली बार दलहन-तिलहन की भी सरकारी खरीद हुई।

- मक्का की फसल को सरकार ने खरीदने की तैयारी की।

- 32 लाख किसानों को फसल बीमा योजना का लाभ मिला।

- सरकारी राशन का वितरण ई-पाश मशीनों से शुरू हुआ।

- जैविक खेती में बढ़ा रूझान, 2500 किसान कर रहे खेती।

- ड्रिप और स्प्रिंकलर से हो रही 1000 हेक्टेयर की सिंचाई।

- यंत्रों की खरीद पर सरकार दे रही 90 फीसद तक अनुदान।

- प्रदेश में 22 नए कृषि विज्ञान केंद्रों की स्थापना की गई।

परिचर्चा में आए सुझाव

- किसानों को मृदा परीक्षण और तत्वों का मिले तकनीकी ज्ञान।

- उत्पाद की मार्केटिंग और विक्त्रय के लिए उपलब्ध हों बाजार।

- जैविक खेती के विकास पर सरकार चलाए विशेष अभियान।

- बेईमानी को बढ़ावा देने वाली ऋण माफी की जरूरत नहीं।

- छोटे कृषि यंत्रों पर भी किसानों को दी जाए सब्सिडी।

- आय बढ़ाने के लिए निर्धारित चार टूल के बढ़ावे की जरूरत।


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