मुनव्वर राणा ने कहा, कलम का दाम लगाते हैं सरकारी इनाम
मशहूर शायर मुनव्वर राना ने कहा कि साहित्यकारों और पत्रकारों को सरकारी इनाम हमारी कलम का दाम लगाते हैं
By Edited By: Published: Sun, 24 Mar 2019 09:53 PM (IST)Updated: Mon, 25 Mar 2019 10:02 AM (IST)
गोरखपुर, जेएनएन। मशहूर शायर मुनव्वर राना ने साहित्यकारों और पत्रकारों को सरकारी इनाम-इकराम से परहेज करने की सलाह दी है। बकौल मुनव्वर राना, ' साहित्यकारों और पत्रकारों का काम सच की गवाही करना है। समाज को आईना दिखाना है। इनाम और अवार्ड हमारी कलम का दाम लगाते हैं। यह बैरीकेड्स की तरह हैं। इनसे जितना दूर रहें उतना ही अच्छा लिख सकेंगे है। मुनव्वर ने इन दोनों जमात के लोगों को सियासत की दुनिया से भी परहेज करने की सलाह भी दी है।'
गोरखपुर में आयोजित मुशायरे में शिरकत करने आए मुनव्वर राना ने यह बात पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहीं। 2015 के चर्चित अवार्ड वापसी प्रकरण का जिक्र करते हुए उन्होंने खुद के अवार्ड वापस करने को सही निर्णय बताया। उन्होंने कहा कि वह संकल्प ले चुके हैं अब से ताजिंदगी कोई सरकारी अवार्ड-पुरस्कार नहीं लेंगे। इमरान प्रतापगढ़ी को कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ने के एक सवाल पर मुनव्वर ने कहा कि इसकी लंबी फेहरिस्त है। बेकल उत्साही से लेकर तमाम शायर-कवि सियासत में सक्रिय रहे हैं। हालांकि सियासी दुनिया और कलम के जहान में मूल अंतर है कि शायरी में सिर्फ सच की बयानगी ही करनी होती है, जबकि सियासत में बगैर झूठ के गुजारा मुमकिन नहीं।
ऐसे में अगर कोई पत्रकार-साहित्यकार सियासत में जाता है, उसका पहले की तरह ईमानदारी और साफगोई से अपनी बात कह पाना आसान नहीं होगा। एक हिंदुस्तान के भीतर बन गए कई हिंदुस्तान : देश के मौजूदा हालात से भी मुनव्वर राना खासा खफा हैं। उनका कहना है कि पिछले चार-पांच सालों में देश में फिरकापरस्ती का दौर बढ़ा है। एक ¨हदुस्तान के भीतर कई-कई ¨हदुस्तान बन गए हैं। एक-दूसरे पर अविश्वास बढ़ा है, हिंसा बढ़ी है, दिनों-दिन हालात और बिगड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह सभी के लिए शर्मिदगी की बात है कि आज 70 साल बाद भी हमें यह दुहराना पड़ता है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है। यह जुमला बार-बार दुहराने की जरूरत क्या है, इतने बरसों में यह बात हर हिंदुस्तानी के भीतर गहरे बैठ जानी चाहिए थी। इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिंदुन्तान है, बार-बार दुहराकर हम किसे विश्वास दिलाना चाहते हैं?
गोरखपुर में आयोजित मुशायरे में शिरकत करने आए मुनव्वर राना ने यह बात पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहीं। 2015 के चर्चित अवार्ड वापसी प्रकरण का जिक्र करते हुए उन्होंने खुद के अवार्ड वापस करने को सही निर्णय बताया। उन्होंने कहा कि वह संकल्प ले चुके हैं अब से ताजिंदगी कोई सरकारी अवार्ड-पुरस्कार नहीं लेंगे। इमरान प्रतापगढ़ी को कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ने के एक सवाल पर मुनव्वर ने कहा कि इसकी लंबी फेहरिस्त है। बेकल उत्साही से लेकर तमाम शायर-कवि सियासत में सक्रिय रहे हैं। हालांकि सियासी दुनिया और कलम के जहान में मूल अंतर है कि शायरी में सिर्फ सच की बयानगी ही करनी होती है, जबकि सियासत में बगैर झूठ के गुजारा मुमकिन नहीं।
ऐसे में अगर कोई पत्रकार-साहित्यकार सियासत में जाता है, उसका पहले की तरह ईमानदारी और साफगोई से अपनी बात कह पाना आसान नहीं होगा। एक हिंदुस्तान के भीतर बन गए कई हिंदुस्तान : देश के मौजूदा हालात से भी मुनव्वर राना खासा खफा हैं। उनका कहना है कि पिछले चार-पांच सालों में देश में फिरकापरस्ती का दौर बढ़ा है। एक ¨हदुस्तान के भीतर कई-कई ¨हदुस्तान बन गए हैं। एक-दूसरे पर अविश्वास बढ़ा है, हिंसा बढ़ी है, दिनों-दिन हालात और बिगड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह सभी के लिए शर्मिदगी की बात है कि आज 70 साल बाद भी हमें यह दुहराना पड़ता है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है। यह जुमला बार-बार दुहराने की जरूरत क्या है, इतने बरसों में यह बात हर हिंदुस्तानी के भीतर गहरे बैठ जानी चाहिए थी। इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिंदुन्तान है, बार-बार दुहराकर हम किसे विश्वास दिलाना चाहते हैं?
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