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कुलपति के खिलाफ एकजुट हुए गोरखपुर विश्वविद्यालय के शिक्षक, निर्णायक लड़ाई की घोषणा

गोरखपुर विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने कुलपति प्रो. राजेश सिंह के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की घोषणा कर दी है। विश्वविद्यालय के मजीठिया भवन में हुई शिक्षक संघ की आमसभा ने एक स्वर इस लड़ाई की न केवल घोषणा की बल्कि योजना भी बनाई।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Tue, 04 Jan 2022 10:10 AM (IST)Updated: Tue, 04 Jan 2022 10:10 AM (IST)
कुलपति के खिलाफ एकजुट हुए गोरखपुर विश्वविद्यालय के शिक्षक, निर्णायक लड़ाई की घोषणा
गोरखपुर विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने कुलपति प्रो. राजेश सिंह के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की घोषणा की है। - प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। दीनदयाल उपााध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने कुलपति प्रो. राजेश सिंह के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की घोषणा कर दी है। विश्वविद्यालय के मजीठिया भवन में हुई शिक्षक संघ की आमसभा ने एक स्वर इस लड़ाई की न केवल घोषणा की बल्कि योजना भी बनाई। उन्होंने कुलपति को कार्यविरत कर उनके खिलाफ निष्पक्ष जांच की मांग भी उठाई है। आमसभा में मौजूद 165 शिक्षकों ने दस्तखत कर इस बाबत सर्वसम्मति से प्रस्ताव भी पारित किया।

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कुलपति को कार्यविरत करने और उनके खिलाफ जांच कराने की उठी मांग

शिक्षक संघ के निवर्तमान अध्यक्ष प्राे. विनोद सिंह और पूर्व अध्यक्ष प्रो. उमेश नाथ त्रिपाठी के आह्वान पर बुलाई गई आमसभा में प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि विश्वविद्यालय की वर्तमान स्थिति को देखते हुए निर्णायक कार्रवाई जरूरी हो गई थी। प्रो. सिंह ने विश्वविद्यालय में शिक्षकों के हो रहे लगातार अपमान की चर्चा की। उन्होंने आमसभा से आग्रह किया कि उनका त्यागपत्र स्वीकार कर लिया जाए, जिससे अगली कार्यकारिणी के चयन की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा सके। आमसभा ने त्यागपत्र स्वीकार करते हुए अगले चुनाव के लिए प्रो. संजय बैजल को चुनाव अधिकारी नामित किया। प्रो. सुधा यादव ने कुलपति द्वारा अतार्किक ढंग से नोटिस के जरिए मानसिक प्रताड़ना देने की भर्त्सना की।

प्रो. दिग्विजय मौर्य ने कुलपति के खिलाफ सत्याग्रह छेड़ने की भूरि-भूरि प्रशंसा की और आमसभा में बड़ी संख्या में शिक्षकों की मौजूदगी पर खुशी जताई। प्रो. राजवंत राव ने भी नियमों- परिनियमों के परे मनमाने ढंग से प्रवेश, परीक्षा, सिलेबस के विषय में अतार्किक फैसले लेने को परिसर के इतिहास का एक काला अध्याय बताया। सभा ने कुलपति द्वारा नियमों, परिनियमों, अधिनियमों की धज्जियां उड़ाने, अपनी सुविधा के लिए वीआईपी कल्चर लादने और निलम्बन, वेतन कटौती और कारण बताओ नोटिसों के आतंक को अविलंब समाप्त करने की मांग की।

आमसभा में पारित हुए यह प्रस्ताव

कुलपति प्रो. राजेश सिंह के खिलाफ कुलाधिपति द्वारा अविलंब प्रो. राजेश सिंह को कार्यविरत करते हुए एक उच्च स्तरीय जांच समिति गठित की जाए।

नियमों, अधिनियमों, परिनियमों की खुलेआम अवहेलना करते हुए प्रो. कमलेश गुप्त के निलंबन, सात शिक्षकों की वेतन कटौती के आदेश तथा अब तक निर्गत 65 से अधिक कारण बताओ नोटिस को तत्काल वापस लिया जाए।

पठन पाठन और शिक्षकीय गरिमा को तत्काल बहाल किया जाए और कुलपति की निजी सुविधा वाले वीआईपी कल्चर खत्म किए जाएं।

शिक्षक संघ के निवर्तमान अध्यक्ष प्रो. विनोद सिंह के इस्तीफे को मंजूर करते हुए नई कार्यकारिणी के चुनाव के लिए सर्वसम्मत से प्रो. संजय बैजल को चुनाव अधिकारी नामित किया गया। नई कार्यकारिणी के अस्तित्व में आने तक शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्षों एवं महामंत्रियों का एक संघर्ष मोर्चा गठित किया गया जो आने वाले दिनों में संघर्ष की रणनीति बनाएगा।

एक सप्ताह में भुगतान की मांग

आम सभा ने तीन दिवंगत शिक्षकों प्रो. मानवेन्द्र प्रताप सिंह, प्रो. अशोक तिवारी एवं डॉ. शरद चन्द्र श्रीवास्तव को श्रद्धांजलि देते हुए मांग की कि इन शिक्षकों के सभी लम्बित देय का एक सप्ताह के भीतर भुगतान कर दिया जाए। सभा ने संघर्ष में सहयोग के लिए उप्र आवासीय विवि शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. चित्तरंजन मिश्र, गुआक्टा, लुआक्टा, सुआक्टा, लूटा, सूटा एवं माध्यमिक शिक्षक संघ (ठकुराई ग्रुप), विधान पार्षद ध्रुव कुमार त्रिपाठी एवं पूर्व आचार्यों के प्रति आभार ज्ञापित किया।

2017 में हुआ था शिक्षक संघ चुनाव

विश्वविद्यालय शिक्षक संघ का पिछला चुनाव 2017 में हुआ था, जिसमें प्रो. विनाेद सिंह को अध्यक्ष और मुकाबला बराबरी पर आने की वजह से बारी-बारी छह महीने के लिए प्रो. उमेश यादव व डा. ध्यानेंद्र दुबे को महामंत्री चुना गया था। चूंकि कार्यकारिणी का कार्यकाल केवल एक साल का होता है, ऐसे में शिक्षक संघ की नियमावली के अनुसार अगस्त 2018 चुने गए पदाधिकारियों का कार्यकाल समाप्त हो गया। उसके बाद चुनाव नहीं हुआ और प्रो. विनोद सिंह अध्यक्ष के तौर पर कार्य करते रहे। इस पर निवर्तमान महामंत्री ने जब वर्ष 2020 में सवाल उठाया तो विश्वविद्यालय में इसकी खूब चर्चा हुई। कुलपति ने शिक्षक संध के अस्तित्व में न होने की बात स्वीकारी और मामले की जांच को लेकर एक समिति गठित कर दी। समिति की रिपोर्ट नहीं आ सकी, सो शिक्षक संघ का चुनाव भी अबतक नहीं हो सका।


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