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आडिट रिपोर्ट से पर्दाफाश : विश्वविद्यालय ने मनमाने ढंग से खर्च किए पौने तीन करोड़ रुपये

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में मनमाने तरीके से पौने तीन करोड़ रुपये खर्च कर रिए गए। इसका पर्दाफश आडिट रिपोर्ट से हुआ है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 15 Feb 2019 10:29 AM (IST)Updated: Fri, 15 Feb 2019 10:29 AM (IST)
आडिट रिपोर्ट से पर्दाफाश : विश्वविद्यालय ने मनमाने ढंग से खर्च किए पौने तीन करोड़ रुपये

गोरखपुर, जेएनएन। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में नियम-व्यवस्था को ताक पर रख कर करीब पौने तीन करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए हैं। वर्ष 2011-12 की ऑडिट करते हुए स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश ने तमाम खर्चो पर सवाल उठाए हैं और इन्हें अमान्य, नियमविरुद्ध तथा अनियमित करार दिया है। बीते वर्ष अक्टूबर में ही स्थानीय निधि लेखा परीक्षा विभाग ने यह संपरीक्षा रिपोर्ट वित्त विभाग को सौंपते हुए शासन स्तर से आवश्यक कार्यवाही करने का अनुरोध किया था, जिस क्रम में अब उच्च शिक्षा विभाग ने विश्वविद्यालय से जवाब मांगा है।

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ऑडिट रिपोर्ट में मिले चौंकाने वाले तथ्य

ऑडिट के दौरान पाया गया कि वर्ष 2011-12 के दौरान, जबकि नए वाहनों की खरीद पर प्रतिबंध था, विश्वविद्यालय ने 2.91 करोड़ रुपये की गाड़ियां खरीद लीं, यही नहीं करीब 58 लाख रुपये की शुल्क वापसी कर दी गई, जिसका कहीं कोई नियम ही नहीं था। लेखा परीक्षक ने अवकाश नकदीकरण, दैनिक वेतनभोगी कर्मियों के भुगतान के मद में हुए खर्चो पर भी सवाल उठाए हैं। बता दें कि 2011-12 में बेहिसाब खर्चो के लेकर खूब सवाल उठे थे, लेकिन तत्कालीन विवि प्रशासन ने उन आपत्तियों का संज्ञान नहीं लिया।

आपत्तियों का हो रहा अध्ययन

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के वित्त अधिकारी वीरेंद्र चौबे ने इस संबंध में कहा कि प्रदेश शासन का पत्र प्राप्त हुआ है। प्रकरण कई वर्ष पूर्व का है। ऑडिट में उठाई गई आपत्तियों का अध्ययन किया जा रहा है। सम्यक विचारोपरांत आख्या दी जाएगी।

इन खर्चों पर उठाए हैं सवाल

जुलाई 1991 में रोक लगाए जाने के बाद भी दैनिक वेतन भोगी कर्मियों की नियुक्ति कर 2,599,422 रुपये का अमान्य भुगतान हुआ।

- विवि के नियम/परिनियम में व्यवस्था न होने पर भी विवि कर्मचारियों को त्योहार अग्रिम के लिए 8,152,285 रुपये का अमान्य भुगतान।

- सितंबर 2008 में नए वाहनों की खरीदारी पर शासन द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद भी 2,921,311 रुपये का अनियमित भुगतान।

शुल्क वापसी का कोई प्रावधान नहीं, फिर भी 588,922 रुपये की वापसी हुई, जो अमान्य थी।

- बगैर शासनादेश सेवानिवृत्त कर्मियों को अर्जित अवकाश के बदलते अवकाश नकदीकरण के मद में 2,842,050 रुपये का अधिक भुगतान।

- विभिन्न विभागों द्वारा अलग-अलग मदों में 971,349 रुपये का संदिग्ध एवं अमान्य भुगतान।

- एक प्रोफेसर को त्रुटिपूर्ण वेतन निर्धारण कर 757,540 रुपये का अनियमित भुगतान किया।

- एक प्रोफेसर व एक कर्मचारी की अनियमित नियुक्ति कर तथा एक कर्मचारी को 7,297,892 रुपये का अनियमित भुगतान।

- विवि कर्मचारियों को नैत्यक प्रकृति का कार्य होने पर भी मानदेय के रूप में 979,375 रुपये का अनियमित भुगतान।


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