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गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट : बंद कीजिए स्त्रियों को अबला या श्रद्धा का केंद्र मानना

गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट के चौथे सत्र में स्त्री विषय पर बाहर से आए कवियों, कलाकारों, पत्रकारों ने अपने विचार व्‍यक्‍त किए।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Mon, 08 Oct 2018 11:03 AM (IST)Updated: Mon, 08 Oct 2018 12:07 PM (IST)
गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट : बंद कीजिए स्त्रियों को अबला या श्रद्धा का केंद्र मानना
गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट : बंद कीजिए स्त्रियों को अबला या श्रद्धा का केंद्र मानना

गोरखपुर, (जेएनएन)। गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट के चौथे सत्र में विमर्श के केंद्र में स्त्री विषय रहा। मंच पर प्रख्यात गजल गायिका और लेखिका डॉ. मालविका हरिओम, वरिष्ठ कहानीकार गीताश्री, मशहूर ब्लॉगर निकिताशा कौर, कवियत्री रंजना जायसवाल, लेखिका सोनाली मिश्रा मौजूद थीं। चर्चा की शुरुआत में गीताश्री ने नारी शब्द के उपयोग पर असहमति जताई और कहा कि इस समाज को अब नारी शब्द से परहेज करना चाहिए क्योंकि नारी अबला होने का संकेत करता है। उन्होंने कहा कि औरत या महिला कहीं अधिक सम्मानित और सशक्त शब्द महसूस होते हैं। चर्चा के दौरान उन्होंने कहा की नख- शिख वर्णन को छोड़ दें तो पुरुष का लेखन संदेह के घेरे में है।

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ब्लॉगर निकिताशा कौर ने पुरुषों की एकमेववादी सोच पर सवाल खड़े किए और कहा कि लड़कियों के लिए क्या अ'छा है, क्या बुरा है, यह तय करने का अधिकार पुरुषों को क्यों दिया जाए। कवियत्री रंजना जायसवाल ने कहा कि स्त्री विमर्श जरूर बदला है, पहले जहां विमर्श में पुरुष के खिलाफ होने की बातें होती थी या पुरुष के विरोध की बातें होती थी वहीं अब हम केवल पुरुष के दोहरे बर्ताव के खिलाफ हैं और इसमें पुरुष को साथ लेकर चलने की बात है ना कि उसके विरोध की। रंजना जायसवाल ने कहा कि हम पुरुष में केवल संवेदना चाहते हैं उनसे केवल बराबरी का दर्जा और सम्मान चाहते हैं। उन्होंने कहा कि स्त्री-पुरुष हर पक्ष में समान भागीदार हैं और स्त्री विमर्श हो या स्त्री अधिकारों की लड़ाई की बात हो, यह लड़ाई स्त्री अकेले नहीं लड़ सकती है।

चर्चा के क्रम में लेखिका सोनाली मिश्रा ने पुरुष लेखन में भेदभाव की तरफ इशारा किया और कहा कि पुरुष लेखन के लिए अलग नियम हो रहे हैं और स्त्री लेखन के लिए अलग। पुरुष अपनी लेखनी से भी भेदभाव करता है और स्त्री को या तो श्रद्धा का केंद्र बनाता है या फिर अबला बनाता है। मालविका हरिओम ने समाज से अपेक्षा की कि स्त्री विमर्श के दौरान मुद्दों की प्राथमिकता तय होनी चाहिए। चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए निकिताशा ने कहा की फेमिनिज्म से मुद्दे गायब हो रहे हैं। विमर्श के दौरान सवाल-जवाब का दौर भी खूब चला।

तीसरा सत्र : बाजारवाद ने किया थिएटर का बुरा हाल

तीसरे सत्र में सुप्रसिद्ध सिने अभिनेता विनय पाठक ने नाट्य विमर्श को विस्तार दिया। उन्होंने कहा कि नाटक को समृद्ध करने के लिए प्रोत्साहन की आवश्यकता है। आज नाटक और नाट्यकला उपेक्षा का शिकार है। यदि अच्छे लेखक और  अच्छे दर्शक इस विधा को फिर से पुराना स्नेह दे तो एक बार पुन: यह सशक्त रूप में सामने आएगी और बदलाव के मिशन की बेहतर वाहक बनकर उभरेगी। उन्होंने कहा कि अच्छे नाट्यकर्मी को भी पहचाने जाने की जरूरत है।
'भेजा फ्राई' 'चलो दिल्ली', 'गौरहरि दास्तान', 'दसविदानिया' जैसी बेहतरीन फिल्मों के नायक विनय ने कहा कि आज बॉलीवुड की तमाम प्रसिद्ध हस्तियां जो अभिनय की बारीकियों से दर्शकों को रूबरू करवाती हैं, फिल्मों में आने से पहले थियेटर में तप के निखर पाई हैं। हालांकि उन्होंने इस क्षेत्र में बढ़ते बाजारवाद पर चिंता भी व्यक्त की। विनय ने कहा कि अभिनय में शिद्दत की जरूरत होती है और यह शिद्दत कृत्रिम नहीं हो सकती बल्कि स्वत: स्फूर्त होती है।
नाटक के स्वरूप और महत्व पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि नाटक शिव के तांडव से निकला है। यह विधा अपने आप में एक तपस्या के समान है जिसमें भाव है, स्वर है, ताल है, लय है, छंद है और जीवन का निबंध है। नाटक जीवन के भावनात्मक पक्षों का मंचीय चित्रण है। विमर्श के इस सत्र में उनके साथ मंच पर वरिष्ठ पत्रकार शिवकेश मिश्र और राजशेखर थे।
किताब से अधिक आकर्षण स्टेज का
विमर्श को आगे बढ़ाते हुए शिवकेश मिश्र ने कहा कि कॉमर्शियल दुनिया में नाटक फिट हो सके इसके लिए कुछ सशक्त प्रस्तुतकर्ताओं की आवश्यकता है। आज नाटक को लोगों के मुताबिक और उनकी मानसिकता के अनुकूल बनाने की जरूरत महसूस होती है। उन्होंने कहा कि किताब से अधिक आकर्षण स्टेज का होता है। स्टेज अभिव्यक्ति का वह माध्यम है जो आपके मानस पटल पर गहरी छाप छोड़ता है। मंच पर साहित्य भावनाओं की अभिव्यक्ति से ही जीवंत होता है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग थिएटर के महत्व को भुलाते जा रहे हैं। थिएटर के लिए लिखने वालों को नए सिरे से आजकल की जिंदगी के मुताबिक कथानक रचने की गंभीर आवश्यकता है।


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