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    Gorakhpur Famous Food: लाजवाब है बक्शीपुर चौराहे की पूड़ी-सब्जी और जलेबी, स्वाद ऐसा की चाटते रह जाएंगे अंगुली

    By Jagran NewsEdited By: Pragati Chand
    Updated: Sat, 01 Apr 2023 08:49 AM (IST)

    सुबह लाजवाब नाश्ते का स्वाद चाहिए तो गोरखपुर शहर के बक्शीपुर चौराहे पर स्थित प्रभुनाथ की दुकान पर पहुंच जाइए। यहां के पूड़ी-कचौड़ी और जलेबी के लोग सालों से मुरीद हैं। आठ दशक पहले खुली इस दुकान में स्वाद के साथ अब तक समझौता नहीं किया गया।

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    पूड़ी-सब्जी और जलेबी का लाजवाब स्वाद लेना है तो पहुंच जाएं बक्शीपुर। -जागरण

    गोरखपुर, जागरण संवाददाता। जिस तरह से गोरखपुर शहर के बक्शीपुर चौराहे की पहचान सर्वाधिक पुराने चौराहों में से है, उसी तरह उस चौराहे पर मौजूद प्रभुनाथ की पूड़ी-कचौड़ी और जलेबी की दुकान की पहचान भी शहर की पुरानी खानपान की दुकानों में है। हो भी क्यों न, बीते आठ दशक से इस दुकान का व्यंजन लोगों की जुबां पर राज जो कर रहा है। पीढ़ियां बदलीं पर जो नहीं बदला, वह है- व्यंजन का स्वाद।

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    आठ दशक से लोगों की जुबान पर राज कर रहा यहां का स्वाद

    वर्तमान में दुकान की जिम्मेदारी संभाल रहे विश्वनाथ बताते हैं कि यह दुकान के उनके दादा भगवती प्रसाद ने आठ दशक पहले खोली थी। उन दिनों दुकान का व्यंजन खाने का बहुत प्रचलन नहीं था, सो दादा को दुकान के प्रति लोगों को काफी मशक्कत करनी पड़ी। धीरे-धीरे उनकी पूड़ी-कचौड़ी और जलेबी लोगों को भाने लगी। पिता प्रभुनाथ ने जब दुकान पर बैठना शुरू किया तो उन्होंने पिता से विरासत में मिले व्यंजन के स्वाद को इस कदर बढ़ाया कि वह दुकान प्रभुनाथ की दुकान के नाम से मशहूर हो गई। प्रभुनाथ ने जब दोपहर बाद समोसा बनाना शुरू किया तो स्वाद के कद्रदानों ने उसे भी हाथोंहाथ लिया। फिर तो बहुत से लोगों का सुबह-शाम का नाश्ता प्रभुनाथ की दुकान पर ही होना लगा।

    स्वाद कायम रखने की चुनौती पर खरा उतरे विश्वनाथ

    बक्शीपुर चौराहे नब्बे के दशक में जब बक्शीपुर चौराहे पर दर्जन भर लाटरी की दुकानें खुल गईं तो दुकान की लोकप्रियता चरम पर पहुंच गई। विश्वनाथ बताते हैं कि जब उन्होंने दुकान की कमान संभाली तो उनके सामने दो पीढ़ी से विरासत में मिले स्वाद को कायम रखते हुए ग्राहकों की साधे रखने की चुनौती थी, जिसे उन्होंने व्यंजन की गुणवत्ता को कायम रखते हुए स्वीकार किया। नतीजा यह है कि आज भी उनके ग्राहक सुबह-शाम खिंचे चले आते हैं। कुछ तो सुबह पूड़ी-सब्जी व जलेबी और शाम को समोसा घर वालों के लिए बंधवा कर भी ले जाते हैं। विश्वनाथ ने बताया कि दादा और पिता की तरह वह भी पकवान का निर्माण केवल कारीगरों पर नहीं छोड़ते। अपनी देखरेख में सभी पकवान तैयार करवाते हैं।

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