बिंब-प्रतिबिंब - नागरिकता पर भारी संगठन का संशोधन Gorakhpur News
पढ़ें डॉ. राकेश राय का कॉलम - बिंब-प्रतिबिंब..
गोरखपुर, जेएनएन। देश के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक दल के कार्यकर्ता इन दिनों दो संशोधन से जूझ रहे हैं। नागरिकता कानून और संगठनात्मक संशोधन। नागरिकता कानून पर जनमत तैयार करने का टारगेट उन्हें ऊपर से मिला है, लेकिन संगठनात्मक संशोधन से जुड़ा टारगेट उन्होंने खुद तय किया है। दूसरे टारगेट की वजह संगठन के नियमों में उस बदलाव में छिपी है, जिसमें इस बार जिला और मंडल की टीम बनाने का अधिकार उनके अध्यक्षों से लेकर सर्वे टीम को दिया गया है। चूंकि टीम चयन अभी बाकी है, ऐसे में नागरिकता कानून पर जनमत को लेकर हो रहे कार्यक्रमों में कार्यकर्ता का जोर खुद के टारगेट पर ज्यादा है। कई बार तो पद हासिल करने की जोड़तोड़ में वह कार्यक्रम की हद तक भूल जा रहे हैं। कार्यक्रम के दौरान उनका पूरा समय सक्षम पदाधिकारियों को साधने में जा रहा है। ऐसे में कई कार्यक्रम भाषणबाजी तक सिमटकर रह जा रहे हैं।
कैमरा देख बदल गए मंत्रीजी के सुर
कोई लाख कहे कि चौथा खंभा अब कमजोर हो गया है पर आप मत मानिएगा। वह अब भी पहले की तरह ही मजबूत है, इसकी बानगी बीते दिनों शहर में बनाए जा रहे जंगली जानवरों के आशियाने में देखने को मिली। मंत्रीजी निर्माण की प्रगति देखने पहुुंचे थे। प्रगति उम्मीद के माफिक नहीं मिली तो उनकी भृकुटी तन गई। लगे जिम्मेदार अफसरों को फटकार लगाने। 'काम पूरा करने को लेकर दो बार समय बढ़ाया जा चुका है, आखिर कब तक चलेगा यह सिलसिला?' उनके सवाल में तल्खी देख कई अफसरों के चेहरे की हवाई उड़ गई। तभी मंत्रीजी की नजर पड़ गई चौथे खंभे से उनकी हरकतों को निहार रहे कैमरों पर। फिर तो उनके सुर बदल गए। उन्होंने तत्काल ट्रैक बदला और बचाव की मुद्रा में आ गए। बोले-जब काम बेहतर होगा तो वक्त तो लगेगा ही। सुर बदलने की वजह तो अफसर भांप नहीं सके लेकिन राहत की सांस जरूर ली।
पहले चार लाइनें फिर काम की बात
रामगढ़ ताल से सटे गीत-संगीत के दफ्तर से जुड़ा अगर आपका कोई काम है तो वक्त लेकर जाना होगा, क्योंकि वहां पहले आपको कविता की चार लाइनें सुननी होंगी तब जाकर काम की बात हो सकेगी। अगर कहीं यह चार लाइनें चौदह लाइनों में तब्दील हो गईं तो आपको अपना तय काम भूल भी सकता है। वजह इस दफ्तर के साहब का शायराना शौक है, जिसकी वजह से कई बार पद की जिम्मेदारी हाशिए पर नजर आती है। बीते दिनों ऐसा हुआ कि कुछ लोग अपनी संस्था से जुड़ी किताबों को भेंट करने के लिए दफ्तर पहुंचे। चर्चा के क्रम में साहब का कवि हृदय कुछ ऐसा जागा कि कुछ देर के लिए वह लोग अपना काम ही भूल गए। सिलसिला जब घंटे भर से ज्यादा खिंचा तो उनमें से एक व्यक्ति का धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने काम की याद दिलाई। उसके बाद जाकर कहीं किताबों को भेंट करने की औपचारिकता पूरी हो सकी।
सीट छोड़ स्टीयरिंग की फिराक में साहब
रेलवे बस अड्डे के ठीक बगल में मौजूद घुमने-फिरने वालों की फिक्र करने वाले विभाग के छोटे साहब के कामकाज का तरीका अनूठा है। वह सीट पर बैठे बिना ही गाड़ी की स्टीयरिंग थामने की फिराक में रहते हैं। ऑफिस की कुर्सी से दूरी बनाकर लाभ का कोई अवसर नहीं छोड़ते यह साहब। दो दिन पहले लंबी छुट्टी के बाद जब वह नौकरी पर एहसान के मूड में दफ्तर लौटे तो एक कर्मचारी के टेबल पर एक गिफ्ट देखकर उनका चेहरा तन गया। पहले तो उन्होंने अपनी नाराजगी मजाक में जाहिर की लेकिन जब लगा कि इससे काम नहीं चलेगा तो उन्होंने बाकायदा पड़ताल शुरू कर दी। पड़ताल दफ्तर खुले रहने तक ही नहीं सिमटी, मोबाइल से अन्य कर्मचारियों से पूछताछ का सिलसिला उन्होंने देर रात तक जारी रखा। पूछताछ के क्रम में वह इसे लेकर अपना अधिकार जताना भी नहीं भूले। दफ्तर में सबकी जुबां पर इस प्रकरण को लेकर एक ही प्रतिक्रिया थी कि काम तो करते नहीं, हक पूरा चाहिए।