गोरखनाथ मंदिर में गुरु पूर्णिमा पर नहीं होगा आयोजन, ऐसे मिलेगा आशीर्वाद Gorakhpur News
मंदिर प्रबंधन की ओर से गोरक्षपीठाधीश्वर के आशीर्वचन का एक कार्ड छपवा जा रहा है जिसे शिष्यों तक भेजा जाएगा। कार्ड किन-किन लोगों को भेजा जाना है इसकी सूची भी तैयार कर ली गई है।
गोरखपुर, जेएनएन। इस बार गुरु पूर्णिमा पर गोरखनाथ मंदिर में होने वाला परंपरागत गुरु पूजन कार्यक्रम आयोजित नहीं हो सकेगा। कोरोना संक्रमण को देखते हुए मंदिर प्रबंधन की ओर से लिए गए इस निर्णय से इस बार शिष्य मंदिर में आकर अपने गुरु गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ का आशीर्वाद सीधे तौर पर नहीं ले सकेंगे। शिष्यों को आशीर्वाद जरूर मिलेगा लेकिन लिखित और ऑनलाइन माध्यम से।
कार्ड के माध्यम से शिष्यों तक आशीर्वाद भेजने की है तैयारी
मंदिर प्रबंधन की ओर से गोरक्षपीठाधीश्वर के आशीर्वचन का एक कार्ड छपवा जा रहा है, जिसे शिष्यों तक भेजा जाएगा। कार्ड किन-किन लोगों को भेजा जाना है, इसकी सूची भी मंदिर प्रबंधन ने तैयार कर ली है। इस सूची में साधु, संत, पुजारी, गृहस्थ शिष्य के साथ शहर के गण्यमान्य लोग भी शामिल है। कार्ड के माध्यम से पीठाधीश्वर लोगों को आशीर्वाद तो देंगे ही, साथ ही कोराना संक्रमण से बचने के लिए घर में पर्व को मनाने की अपील भी करेंगे।
शिष्यों को ऑनलाइन संबोधित करेंगे गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ
इसके अलावा वह गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्यों को ऑनलाइन संबोधित कर गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व और नाथ पंथ में इस परंपरा में भूमिका पर प्रकाश डालेंगे। मंदिर सचिव द्वारिका तिवारी ने बताया कि मंदिर में गुरु पूजा का आनुष्ठानिक कार्यक्रम परंपरागत तरीके से ही होगा। सभी नाथ योगियों को परंपरा रूप से भोग लगाया जाएगा। इस पूजा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शामिल होने की पूरी संभावना है।
मंदिर में गुरु पूजा की यह है परंपरा
गुरु पूर्णिमा के दिन गोरखनाथ मंदिर में गुरु पूजन का सिलसिला तड़के से ही शुरू हो जाता है। गोरक्षपीठाधीश्वर सुबह सबसे पहले गुरु गोरक्षनाथ की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं और फिर सभी नाथ योगियों के समाधि स्थल और देवी-देवताओं के मंदिर में जाकर उन्हें भी पूजते हैं। अंत में सामूहिक आरती का आयोजन होता है। गुरु की पूजा के बाद पीठाधीश्वर अपने शिष्यों के बीच होते हैं। शिष्य बारी-बारी से पीठाधीश्वर तक पहुंचते हैं और तिलक लगाकर उनका आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। इस दौरान गुरु दक्षिणा देने की भी परंपरा है। हालांकि बीते वर्ष तिलक कार्यक्रम नहीं हुआ था। उसके स्थान पर पीठाधीश्वर ने मंच से शिष्यों को गुरु-शिष्य की परंपरा की महिमा बताई थी और उस परंपरा को कायम रखने की अपील की थी।
गहरा है गुरु पूर्णिमा और नाथ पंथ का नाता
गुरु पूर्णिमा पर्व और नाथपंथ का संबंध कितना अटूट और गहरा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सभी नाथ योगियों ने इस परंपरा की गरिमा और प्रतिष्ठा को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ कायम रखा है। महायोगी गुरु गोरक्षनाथ से लेकर गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ तक ने न केवल इस परंपरा को समृद्ध किया है, बल्कि गुरु प्रतिष्ठा के प्रति लोगों को प्रेरित भी किया है। नाथ योगियों की गुरुपर्व को लेकर प्रतिबद्धता से उपजे सवाल के जवाब में मंदिर प्रबंधन से गहरे जुड़े डॉ. प्रदीप कुमार राव बताते हैं कि नाथ परंपरा के मूल में योग है और योग के मूल में गुरु-शिष्य परंपरा। चूंकि योग पूरी तौर पर व्यवहारिक क्रियाओं पर आधारित है और बिना गुरु के इसे साधना मुश्किल ही नहीं असंभव है, ऐसे में योग और गुरु परंपरा को एक दूसरे का पूरक कहना गलत नहीं होगा। इस तर्क से नाथ पंथ और गुरु पूर्णिमा के रिश्ते का स्वरूप भी साफ हो जाता है। दरअसल, योग की परंपरा को अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करने के लिए ही नाथ पंथ की स्थापना के समय से ही गुरु-शिष्य परंपरा उससे अनिवार्य रूप से जुड़ी रही।