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राप्ती नदी में अठखेलियां कर रहीं गंगा डाल्फिन, गोरखपुर में मौजूद हैं एक दर्जन से अधिक डाल्फिन

Ganges Dolphin in Rapti River Gorakhpur गोरखपुर के राप्ती नदी में गंगा डाल्फिन अठखेलियां कर रही हैं। वन विभाग और गोरखपुर चिड़ियाघर की संयुक्त टीम को यहां एक दर्जन से अधिक डाल्फिन दिखी हैं। वन विभाग अब इनके संरक्षण की तैयारी कर रहा है।

By Rakesh RaiEdited By: Pradeep SrivastavaPublished: Wed, 19 Oct 2022 12:05 AM (IST)Updated: Wed, 19 Oct 2022 09:33 AM (IST)
राप्ती नदी में अठखेलियां कर रहीं गंगा डाल्फिन, गोरखपुर में मौजूद हैं एक दर्जन से अधिक डाल्फिन
गंगा नदी में अठखेलियां करती डाल्फिन। - सौजन्य, वन विभाग

गोरखपुर, डा. राकेश राय। गंगा डाल्फिन की अठखेलियां अब राप्ती नदी में भी देखने को मिल रही हैं। विशेषज्ञ नदी के राजघाट के पास एक दर्जन से अधिक डाल्फिन होने की आधिकारिक पुष्टि भी कर रहे हैं। ऐसा इसलिए कि चिड़ियाघर और वन विभाग की संयुक्त टीम को पर्यवेक्षण के दौरान नदी में उनकी अठखेलियां देखने को मिली है, जिसके बाद उन्होंने उसे अपने आधिकारिक रिकार्ड में दर्ज कर लिया है।

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शुरू हुई संरक्षण की तैयारी

दोनों विभागों ने संयुक्त रूप से डाल्फिन के संरक्षण को लेकर कार्यवाही भी शुरू कर दी है। इसके लिए जलीय वन्य जीवों का संरक्षण करने वाली संस्था टर्टल सर्वाइवल एलायंस (टीएसए) से संपर्क भी साधा गया है। आने वाले समय में संस्था के साथ करार की तैयारी भी है। इस बीच राप्ती नदी में पिकनिक स्पॉट बनाने की भी तैयारी शुरू कर दी गई।

नमामि गंगे अभियान में डाल्फिन संरक्षण को विशेष महत्व

गंगा डाल्फिन को राज्य जलीय जीव का दर्जा प्राप्त है। 2017 की गणना के अनुसार गंगा और उसकी सहायक नदियों में कुल 3500 डाल्फिन थीं। विशेषज्ञों के अनुसार उसके बाद बीते पांच वर्ष में इनकी संख्या में निरंतर कमी आई है। इनकी निरंतर घटती संख्या को लेकर सरकार चिंतित है। यही वजह है कि नमामि गंगे अभियान में डाल्फिन के संरक्षण को अलग से स्थान दिया गया है। ऐसे में जब वन विभाग और चिड़ियाघर प्रशासन को राप्ती नदी में डाल्फिन होने की जानकारी मिली तो इसकी पुष्टि के लिए चिड़ियाघर के निदेशक डा. एस.राजामोहन व पशु चिकित्सक डा. योगेश प्रताप सिंह के नेतृत्व में बताए गए स्थान राजघाट पर पर्यवेक्षण टीम ने डेरा डाला। तीन घंटे पर्यवेक्षण के दौरान उन्हें नदी में कई गंगा डाल्फिन अठखेलियां करती दिखीं। उसके बाद टीम ने एक ओर संरक्षण के लिए टीएसए से संपर्क साधा तो दूसरी ओर वहां रहने वाले मछुआरों को जागरूक करना शुरू किया। मछुआरों से कहा गया है कि अगर मछली मारते समय उन्हें गंगा डाल्फिन मिलती हैं तो वह उन्हें हरगिज नुकसान न पहुंचाए। कोई डाल्फिन यदि चोटिल अवस्था में मिलती है तो उसकी जानकारी तत्काल चिड़ियाघर प्रशासन को दें, जिससे उसे बचाया जा सके।

विलुप्तप्राय जीवों में होती है गंगा डाल्फिन की गिनती

गंगा डाल्फिन की गिनती इंटरनेशनल यूनियन फार कन्जर्वेशन आफ नेचर के रिकार्ड में विलुप्तप्राय जीवों में होती है। इनकी कम संख्या को देखते हुए ही वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट-1972 में इन्हें शिड्यूल-वन में रखा गया है, जिसमें शेर, बाघ, तेंदुआ जैसे सर्वाधिक दुर्लभ प्राणियों को स्थान मिला है।

राप्ती नदी में गंगा डाल्फिन के होने की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है। वन विभाग और चिड़ियाघर की टीम अब उनके संरक्षण के लिए संयुक्त रूप से लगी है। इसे लेकर टीएसए से करार किया जा रहा है। साथ ही मछुआरों को भी उनके संरक्षण के लिए जागरूक किया गया है। - डा. योगेश प्रताप सिंह, पशु चिकित्सक, चिड़ियाघर।


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