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गोरखपुर के स्व-वित्तपोषित महाविद्यालयों में चार वर्षीय बीएड-बीटीसी कोर्स समाप्‍त

एनसीटीई ने वर्ष 2019-20 में चार वर्षीय बीएड व बीटीसी कोर्स संचालित करने के लिए आनलाइन आवेदन मांगा गया था। 31 जुलाई 2019 अंतिम तिथि निर्धारित की थी। 20 हजार वर्गफीट में भवन निर्माण की शर्त रखी गई थी।

By Satish chand shuklaEdited By: Published: Mon, 08 Mar 2021 05:29 PM (IST)Updated: Mon, 08 Mar 2021 07:01 PM (IST)
गोरखपुर के स्व-वित्तपोषित महाविद्यालयों में चार वर्षीय बीएड-बीटीसी कोर्स समाप्‍त
पढ़ाते हुए शिक्षक का प्रतीकात्‍मक फाइल फोटो, जेएनएन।

गोरखपुर, जेएनएन। स्व-वित्तपोषित महाविद्यालय अब चार वर्षीय बीएड व बीटीसी कोर्स का संचालन नहीं कर सकेंगे। एनसीटीई (राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद) ने इन महाविद्यालयों में चार वर्षीय पाठ्यक्रम संचालित न करने का निर्णय लिया है। एनसीटीई के इस निर्णय का असर दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध 201 महाविद्यालयों पर पड़ा है। इन महाविद्यालयों ने कोर्स की मान्यता के लिए आवेदन किया था। उन्हें अनापत्ति प्रमाण-पत्र हासिल करने में सफलता भी हासिल हो गई थी। कुछ ने कोर्स के मद्देनजर भवन निर्माण भी करा लिया था। एनसीटीई के इस फैसले के खिलाफ स्व-वित्तपोषित प्रबंधक महासभा हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रही है।

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एनसीटीई से प्रभावित होंगे 201 महाविद्यालय

एनसीटीई ने वर्ष 2019-20 में चार वर्षीय बीएड व बीटीसी कोर्स संचालित करने के लिए आनलाइन आवेदन मांगा गया था। 31 जुलाई 2019 अंतिम तिथि निर्धारित की थी। 20 हजार वर्गफीट में भवन निर्माण की शर्त रखी गई थी। इस कोर्स में इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद बीएड डिग्री हासिल करने की व्यवस्था की गई है। इसके लिए गोरखपुर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध 201 स्व-वित्तपोषित महाविद्यालयों ने आवेदन किया था। मान्यता मिलने की प्रत्याशा में कुछ विद्यालयों ने भवन निर्माण भी शुरू कर दिया है। ऐसे में एनसीटीई का यह फैसला स्व-वित्तपोषित महाविद्यालय प्रबंधन पर वज्रपात की तरह है।

निर्णय का होगा विरोध

स्ववित्तपोषित महााविद्यालय प्रबंधक महासभा के महामंत्री डा. सुधीर कुमार राय का कहना है कि आवेदन करने के एक साल बाद इस तरह से आवेदन निरस्त करना गलत है। एनसीटीई का इस फैसले से आवेदक महाविद्यालयों का काफी नुकसान होगा। निर्णय पर विरोध दर्ज कराने के लिए हम प्रबंधक केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से मिलेंगे। शिक्षा मंत्री के यहां से न्याय नहीं मिला तो उच्‍च न्यायालय की शरण ली जाएगी। हम लोग खामोश बैठने वाले नहीं है।


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