फिराक गोरखपुरी : दुनिया ने माना लोहा, अपने घर में हैं बेगाने Gorakhpur News
फिराक गोरखपुरी ने भले ही उर्दू अदब की दुनिया को नया आयाम दिया अपने विशेष अंदाज के चलते अंतिम सांस तक लोगों के चहेते बने रहे लेकिन आज उन्हें अपने ही घर में तवज्जो नहीं मिली।
गोरखपुर, जेएनएन। 28 अगस्त 1896 में गोला तहसील के बनवारपार गांव में जन्मे रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी ने भले ही उर्दू अदब की दुनिया को नया आयाम दिया, अपने विशेष अंदाज के चलते अंतिम सांस तक लोगों के चहेते बने रहे लेकिन आज उन्हें अपने ही घर में तवज्जो नहीं मिल रही। उनका पुस्तैनी आशियाना बदहाल है। उसकी वजह शासन और प्रशासन की उदासीनता है। उदासीनता का ही नतीजा है कि जो सम्मान उन्हें आज उन्हें मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा।
गांव के महीप कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि फिराक का पैतृक आवास उपेक्षा के चलते धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। इसे बचाने के लिए किसी तरह की कोशिश नहीं की जा रही है। आवास को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए पर्यटन विभाग की ओर से सर्वे तो किया गया लेकिन यह प्रयास उससे आगे नहीं बढ़ सका। प्रवीण श्रीवास्तव कहते हैं कि जयंती हो या फिर पुण्यतिथि किसी भी अवसर पर कोई सरकारी नुमाइंदा गांव में नजर नहीं आता। फिराक उर्दू साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं, ऐसे महान व्यक्तित्व को लेकर शासन-प्रशासन की उपेक्षा भरी नीति गले नहीं उतरती। इसे लेकर जब सरकारी अफसरों से सवाल किया जाता है तो उनके पास कोई ठोस जवाब नहीं होता।
आश्वासन तक सिमटा कम्युनिटी सेंटर
18 अक्टूबर 2012 को फिराक सेवा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. छोटेलाल यादव की मांग पर तत्कालीन मुख्यमंत्री ने लोक निर्माण विभाग को कम्युनिटी सेंटर के निर्माण कराने का आदेश दिया था। आदेश के अमल के क्रम में विभाग ने बनवारपार का सर्वे कर एक बड़े हाल, मंच, आर्ट गैलरी, वाचनालय, पुस्तकालय, गेस्ट रूम, व शौचालय आदि के निर्माण के लिए 61 लाख रूपये का प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा गया लेकिन बात इससे आगे नहीं बढ़ नहीं सकी।
ग्रामीणों के सहयोग से चल रहा है पुस्तकालय
फिराक सेवा संस्थान बनवारपार के अध्यक्ष डॉ. छोटेलाल यादव बतातें है कि शासन से फिराक के स्मृतियों को संयोजने के लिए हर सम्भव प्रयास किया गया लेकिन जब शासन से कोई मदद नही मिली तो ग्रामीणों के सहयोग से एक पुस्कालय बनाया गया है। जिसमे करीब सौ पुस्तके हैं। डॉ. यादव ने उस पुस्तकालय को विकसित करने के लिए भी शासन को लिखा लेकिन इस प्रस्ताव की उपेक्षा कर दी गई।
करना होगा संयुक्त प्रयास
फिराक गोरखपुरी को लेकर शासन-प्रशासन की उपेक्षा खलती है। एक महान शख्सियत की निशानी को सहेजना हम सभी की जिम्मेदारी है। इसके लिए संयुक्त प्रयास करना होगा। - दिनेश बावरा, कवि
गांव में होना चाहिए कार्यक्रम
शासन-प्रशासन को चाहिए कि फिराक की जयंती और पुण्यतिथि पर उनके पैतृक आवास पर कार्यक्रम आयोजित करे। मेरी तो ख्वाहिश है कि फिराक की याद में फिराक महोत्सव का आयोजन होना चाहिए। - डॉ. हरिहर राम त्रिपाठी
फिराक के गांव को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए शासन ने पहल की है। शासन के निर्देश पर पर्यटन विभाग ने मौके का सर्वे कर रिपोर्ट भेजी है। शासन से हरी झंडी मिलते ही फिराक के पैतृक स्थल को विकसित करने का कार्य शुरू कर दिया जाएगा। - रवींद्र कुमार मिश्र, क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी, गोरखपुर