Move to Jagran APP

Gorakhpur Famous Food: लाजवाब है पूर्वांचल के 'बुढ़ऊ चाचा' की बर्फी का स्वाद, 54 साल से लोगों की जुबान पर कर रहा राज

मेहमानों के आगमन की खबर हो या त्योहारों का मौसम हो मिठाई के बिना सब अधूरा है। मिठाई के शौकीनों के सामने बर्फी का नाम आते ही इनके मुंह में पानी आ ही जाता है। तो ऐसे लोगों के लिए हम खास जगह के बारे में बताने जा रहे हैं।

By JagranEdited By: Pragati ChandPublished: Sat, 24 Sep 2022 04:38 PM (IST)Updated: Sat, 24 Sep 2022 04:38 PM (IST)
लाजवाब है पूर्वांचल के 'बुढ़ऊ चाचा' की बर्फी का स्वाद। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। आज भले ही पूर्वांचल में मिठाई की सैकड़ों दुकाने हैं लेकिन बर्फी और उसकी शुद्धता की जब भी बात आती है, बरगदवां में बनने वाली बढ़ऊ चाचा की बर्फी का नाम खुद-ब-खुद हर किसी की जुबां पर आ ही जाता है। ऐसा इसलिए कि दो-चार वर्ष नहीं बल्कि पांच दशक से उनकी बर्फी अपनी विश्वसनीयता बरकरार रखते हुए कद्रदानोें की जुबां पर राज कर रही है। बुढ़ऊ चाचा तो अब रहे नहीं, उनके नाती राकेश चौधरी अपने नाना की बनाई साख को बचाए रखने का बीड़ा उठाए हुए हैं।

loksabha election banner

गुणवत्ता को लेकर कोई समझौता नहीं

बुढ़ऊ चाचा 'जिनका नाम तिलक चौधरी था' ने बर्फी बनाने का काम 1968 में शुरू किया। नकहा जंगल के रहने वाले तिलक दूध बेचते थे। इस कार्य में जब उन्हें देर हो जाती थी तो लूटपाट से बचने के लिए अक्सर बेटी सावित्री के घर बरगदवां आ जाया करते थे। बरगदवां में उन दिनों फर्टिलाइजर की वजह से चाय और बर्फी के व्यवसाय की काफी संभावना थी। ऐसे में वह जब भी आते बिकने से बचे दूध की बर्फी और चाय बनाकर बेचते। चूंकि बर्फी को बनाने में चाचा गुणवत्ता को लेकर कोई समझौता नहीं करते थे, इसलिए बतौर बर्फी विक्रेता उनकी ख्याति आसपास के क्षेत्र में भी फैलने लगी।

बढ़ऊ चाचा के बाद रामप्यारे ने संभाली कमान

स्थिति यह हो गई कि झोपड़ी में चलने वाली दुकान में ग्राहकों की कतार लगने लगी। कई बार तो ग्राहकों की डिमांड भी पूरा नहीं कर पाते। पर खासियत यह थी कि इस स्थिति में भी वह बर्फी की गुणवत्ता को कम नहीं करते, भले ही उन्हें ग्राहकों को अगले दिन बुलाना पड़े। तिलक चौधरी बूढ़े हो चले थे और उनका नाम हर कोई जानता नहीं था, इसलिए उनकी ख्याति बढ़ऊ चाचा के नाम से हो गई। धीरे-धीरे बढ़ऊ चाचा की बर्फी एक ब्रांड बन गई। 2001 में जब बढ़ऊ चाचा नहीं रहे तो उनके दुकान की कमान दामाद रामप्यारे चौधरी ने संभाली। उन्होंने भी गुणवत्ता को लेकर अपने ससुर की साख को बरकरार रखा। अब जब रामप्यारे भी काफी बूढ़े हो गए हैं तो दुकान की कमान तिलक चौधरी के नाती और रामप्यारे के पुत्र राकेश चौधरी ने संभाल रखी है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.