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कर्बला के शहीदों की याद में खुद को किया लहूलुहान

हल्लौर एसोसिएशन का पांचवीं मोहर्रम का मातमी जुलूस निकला। इसमें लोगों ने इमाम हुसैन की शहादत पर प्रकाश डाला।

By Edited By: Published: Mon, 17 Sep 2018 01:53 AM (IST)Updated: Mon, 17 Sep 2018 01:41 PM (IST)
कर्बला के शहीदों की याद में खुद को किया लहूलुहान
कर्बला के शहीदों की याद में खुद को किया लहूलुहान

गोरखपुर (जेएनएन)। 'रसूल हम तेरे प्यारों का गम मनाते हैं, हर एक हाल में फर्शे अजा सजाते हैं'। नफीस हल्लौरी के इसी नौहे पर मातम करते हुए हल्लौर एसोसिएशन का पांचवीं मोहर्रम का मातमी जुलूस खूनीपुर से निकला। इससे पहले महिलाओं ने हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की अजीम कुर्बानी की याद में मजलिस एवं मातम किया।

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नम हो गईं लोगों की आंखें
लोग, सड़कों, गलियों और छतों पर जंजीर और कमा (छोटी तलवार) का मातमी जुलूस देखने के लिए जमें रहे। मातम कर रहे युवाओं के बदन से खून बहता देख लोगों की आंखें नम हो गई। हर तरफ या हुसैन, या हुसैन की सदा गूंज रही थी। अंजुमन हैदरी हल्लौर के मातमदारों के नौहा मर्सिया की सदाओं से लोगों के दिलों में कर्बला की याद ताजा हो गई। मातमी जुलूस खूनीपुर चौराहे से मदरसा अंजुमन इस्लामिया पहुंचा तो वहा हल्लौर से आये हानी हल्लौरी ने इमाम हुसैन की शहादत पर प्रकाश डालते हुए अल्लामा इकबाल का शेर 'अली का जेबोजैन जिंदा है फातिमा का चैन जिंदा है, ना पूछो वक्त की इन बेजबान किताबों से, जब सुनो अजान तो समझो हुसैन जिंदा है' पेश किया। हल्लौर से आये नौहाखा नफीस सैयद, बब्लू, मोहम्मद हैदर शब्लू, रज़ा हल्लौरी, अब्बास हल्लौरी, अज़ीम हैदर ने अपने कलाम से माहौल को गमगीन बना दिया।

अंजुमन के युवाओं और बच्चों ने कमा और जंजीरों का मातम किया। जुलूस नखास चौक से रेती चौक होते हुए गीता प्रेस रोड स्थित इमामबाड़ा रानी अशरफुन निशा खानम (इमामबाड़ा आगा साहेबान) में पहुंचकर मजलिस में तब्दील हो गई। इस दौरान एसोसिएशन के अध्यक्ष ई. कैसर रिजवी, आगा अली मोहम्मद, राशिद रिजवी, आसिफ रिजवी, आरिफ रिजवी, जव्वाद रिजवी, मोजिजा रिजवी, अरमान हैदर, मोहम्मद, ऑन रिजवी, जौन रिजवी, सुहेल रिजवी, रिजवान रिज़वी, सुलतान रिजवी, तनवीर रिजवी, अहमर रिजवी, दिलशाद रिजवी, कमाल असगर आदि मौजूद रहे।

इंसानियत के लिए इमाम हुसैन ने दी कुर्बानी
इतिहास गवाह है कि जालिम यजीद जुल्म करने के बाद भी अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सका और हार गया, लेकिन इमाम हुसैन जान देकर भी जीत गए। क्योंकि वह जुल्म के आगे नहीं झुके और इंसानियत को बचा लिया। इस्लाम अमन का मजहब है जो यह सिखाता है कि इंसानियत से बढ़कर कुछ भी नहीं। अगर आप एक अच्छे इंसान नहीं तो आप एक अच्छे मुसलमान भी नहीं बन सकते। यह बातें नफीस रिजवी ने पांचवीं मोहर्रम पर खूनीपुर से निकलने वाले मातमी जुलूस की मजलिस में कही।


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