कम होती गई गहराई बढ़ती जा रही तबाही
कुशीनगर : नेपाल के पहाड़ों से निकली नारायणी नदी वर्षों से रास्ता बदल रही है। नदी की धारा अब कुशीनगर में बांधों के नजदीक दबाव बना रही है। नदी की तलहटी में भारी मात्रा में सिल्ट जमा होने व गहराई कम होने से नदी तबाही मचा रही है। वाल्मीकि नगर बैराज से निकल कर महराजगंज से कुशीनगर में प्रवेश करने वाली नदी का दायरा (चौड़ाई) बढ़ता जा रहा है। यही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में यह और विनाशकारी साबित होगी। कृषि योग्य भूमि को सिल्ट से पाटती नदी जिले के खड्डा, दुदही व सेवरही ब्लाक के गांवों को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। यहां के बांध से कहीं पांच से छह सौ मीटर है, तो कहीं-कही 800 से 900 मीटर चौड़ाई हो गई है। पहले बिहार के क्षेत्रों को प्रभावित करने वाली नदी की चपेट में अब यूपी का कुशीनगर जनपद है। बचाव के उपाय के नाम पर सिंचाई विभाग का बाढ़ खंड सिर्फ खानापूर्ति कर रहा है।
ऐसे बनता है सिल्ट
-नदी जिन-जिन स्थानों पर कटान करती है, उन स्थानों की मिट्टी तो पानी के साथ बह जाती है, लेकिन उसमें मिश्रित सिल्ट (बालू) थोड़ी दूर आगे जाने पर स्थिर हो जाता है। जो जमते-जमते नदी की गहराई कम कर देता है। आपदा विशेषज्ञ रवि राय ने बताया कि जनपद में नदी के किनारे की भूमि ऐसी है, जहां अलग-अलग जगहों पर 10 से 40 प्रतिशत तक सिल्ट मिलती है। यही वजह है कि नदी रास्ता बदल रही है।
पहले बिहार के ठकरहां के समीप बहती थी नदी
डेढ़ दशक पूर्व नारायणी की धारा बिहार के पश्चिमी चंपारण के ठकरहां ब्लाक क्षेत्र के अल्पहां, श्रीनगर, यादवपुर, डुमरियागंज आदि गांवों के साथ ही कुशीनगर के एपी बांध के पिपराघाट से करीब 500 मीटर और आगे, अमवाखास व छितौनी बांध से डेढ़ से दो किमी की दूरी पर बहती थी।
यह है नदी की स्थिति
नदी की तलहटी में सिल्ट भरने से वर्तमान में इसका रुख छितौनी, अमवाखास, पिपराघाट-अहिरौलीदान बांध की ओर हो गया है। इसकी वजह से ग्रामीणों की लगभग 7050 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि बर्बाद हो चुकी है। प्रभावित लोग नारायणी से मची तबाही के लिए सिंचाई विभाग को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। यहां के किसान झापस, राम ईश्र्वर, डोमा, गणेश, छठू, रामजीत, लोरिक, रूदल यादव, राजदेव, कान्ता, नन्द लाल का कहना है कि इससे निपटने के ठोस उपाय नहीं किए गए। यही वजह है कि हर साल बाढ़ के दौरान बंधे के किनारे तबाही मचती है।
नदी में समा गए कई गांव
वर्ष 1984 में आयी भीषण बाढ़ में अस्तित्व खो चुके अहिरौलीदान के बैरिया टोला, परसौनी का सोमाली, जवहीं दयाल, विरवट कोन्हवलिया के लोग नदी उस पार तथा बिहार प्रांत के अल्पहां समेत डेढ़ दर्जन गांव व टोलों के लोग दर-दर भटक रहे है। अमवाखास बंधे के समीप महुअवां, गोखुला, किशुनवा, रामपुर बरहन समेत एक दर्जन टोले पानी में विलीन हो चुके हैं।