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हत्या, आत्महत्या के बीच उलझी रेल अधिकारी की मौत

पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर के अधिकारी तरुण की मौत की गुत्थी अभी नहीं सुलझी है। मुंह में रिवाल्वर का नाल डालकर गोली दागी गई थी। यह आत्महत्या कैसे हो सकता है।

By Edited By: Published: Fri, 07 Sep 2018 10:09 AM (IST)Updated: Fri, 07 Sep 2018 04:10 PM (IST)
हत्या, आत्महत्या के बीच उलझी रेल अधिकारी की मौत

गोरखपुर, (जेएनएन)। पूर्वोत्तर रेलवे गोरखपुर के उप मुख्य वाणिज्य प्रबंधक/प्रेजेंटिंग अफसर (डिप्टी सीसीएम/पीओ) रेल दावा अधिकरण, तरुण शुक्ल की मौत के बाद उठे कई अहम सवाल फिलहाल अनुत्तरित रह गए हैं। पुलिस इस घटना को खुदकुशी ही मान रही है लेकिन सवाल खड़े किए जाने पर छानबीन जारी रखने की बात भी कह रही है। कमरे के अंदर मौत होने के चार घंटे बाद शव देखे जाने और घर में मौजूद लोगों के गोली चलने की आवाज न सुनने की बात भी बेहद चौंकाने वाली है। आत्महत्या करने के पुलिस के दावे को मान लें तो भी कई ऐसे सवाल हैं जो अनुत्तरित रह गए हैं। इन सवालों का जब तक जवाब नहीं मिलता, तब तक तरुण शुक्ल की मौत पर रहस्य के घने बादल छाए ही रहेंगे।

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कौवाबाग रेलवे कालोनी स्थित सरकारी आवास के ड्राइंग रूम में शाम को छह बजे के आसपास तरुण शुक्ल की बेटी ने उनकी लाश देखी थी। गोली लगने से उनकी मौत हुई थी। मौके पर शव का परीक्षण करने वाले रेलवे के डाक्टर ने सीने में गोली लगने का दावा किया था लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मुंह में रिवाल्वर की नाल डालकर गोली दागे जाने का पता चला। तरुण शुक्ल की बेटी ने गोली मारकर उनके खुदकुशी करने की तहरीर दी है। तरुण शुक्ल का शव जिस समय देखा गया उस समय उनका लाइसेंसी रिवाल्वर उनके पेट पर पड़ा था। बताते हैं कि गोली उसी रिवाल्वर से दागी गई थी। ऐसे में यह सवाल अहम है कि गोली लगने के बाद क्या उनके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई थी? इसके अलावा मौत के बाद शव सोफे पर आराम से बैठी हुई मुद्रा में था। दोनों पैर सामने की मेज पर थे। दाहिना पैर बाएं पैर के ऊपर रखा था।

सामान्य तौर पर अचानक मौत होने के बाद शरीर में कुछ देर तक हरकत होती है और जोर के झटके लगते हैं। जिससे सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है। ऐसे में सोफे पर शव की स्थिति अपने आप में बड़ा सवाल है। शव के पास से दो पेज में लिखा सुसाइड नोट मिला था। एक पेज पर लिखने के लिए जहां हरी स्याही वाली की कलम का प्रयोग किया गया था वहीं दूसरे पेज पर लिखने के लिए लाल रंग की स्याही का इस्तेमाल किया गया था। यानी दो पेज लिखने के लिए दो कलम का प्रयोग हुआ था लेकिन घटना के बाद कमरे में एक भी कलम नहीं मिली। क्या ऐसा हो सकता है कि कोई व्यक्ति सुनियोजित ढंग से तैयारी कर सुसाइड नोट लिखे और फिर कलम को कमरे से बाहर किसी दूसरी जगह रखने के बाद खुदकुशी करे।

मनोवैज्ञानिक ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है कि खुदकुशी का फैसला तुरंत का होता है। इसे नियोजित ढंग से नहीं किया जा सकता। शव के पास एक खाली गिलास भी मिली थी। उसमें से खास तरह की गंध आ रही थी लेकिन कमरे में कहीं भी पानी या पीने वाली कोई चीज न मिलना भी सवाल खड़ा करता है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट है कि मुंह में रिवाल्वर की नाल डालकर गोली दागी गई थी। यह भी अटपटी लगने वाली बात है। सामान्य तौर पर गोली दागकर खुदकुशी करने वाला व्यक्ति कनपटी या सीने में गोली मारकर खुदकुशी करता है। मुंह में गोली दागकर खुदकुशी करने की घटना देखने-सुनने में नहीं आती। यदि कोई दूसरा व्यक्ति गुस्से में हमला करता है तभी मुंह में असलहे की नाल डालकर गोली दागने की घटना होते देखी जाती है।

मोबाइल काल डिटेल से खुल सकते हैं राज
जिस सोफे पर तरुण शुक्ल की लाश मिली थी उसके बगल में बेड पर उनका मोबाइल फोन रखा हुआ था। उन्होंने आखिरी बार किस-किस से बात की थी और कितनी देर तक बात की थी ? इसका जवाब उनके मोबाइल फोन के काल डिटेल से मिल सकता है। आखिरी बार जिन लोगों से उन्होंने बात की थी, उनसे पूछताछ कर पता लगाया जा सकता है कि उन्होंने क्या बातचीत की थी? इससे अंतिम समय के हालात और उनकी मन:स्थित का अंदाजा लगाया जा सकता है। जिससे संभव है कि उनकी मौत को लेकर उठ रहे सवालों के जवाब भी मिल जाए।

पारिवारिक पृष्ठभूमि के अध्ययन से ही निकाला जा सकता है नतीजा : प्रो. सुषमा
तरुण शुक्ल की मौत से जुड़े घटनाक्रम को लेकर सवाल पूछे जाने पर दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. सुषमा पांडेय कहती हैं कि इस मामले में किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए उनके पारिवारिक पृष्ठभूमि का गहराई से अध्ययन कर ही किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है। खासकर उनकी पारिवारिक और सामाजिक स्थिति का अध्ययन किया जाना जरूरी है। कई बार पारिवारिक कारणों से और कई बार सामाजिक कारणों से भी व्यक्ति काफी अधिक मानसिक दबाव में आकर अवसाद में चला जाता है। ऐसी स्थित में वह खुदकुशी करने जैसा आत्मघाती कदम उठा सकता है। मुंह में गोली मारकर खुदकुशी करने की बात जरूर चौंकाने वाली है। सामान्यत: ऐसा नहीं होता, लेकिन यह भी सच है कि जो व्यक्ति खुदकुशी करने जा रहा हो अंतिम समय में उसकी मानसिक स्थिति का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। आखिरी समय में उसने कौन सा कदम क्यों उठाया, इसे तर्क की कसौटी पर कसना बेमानी है।

विकास की अंधी दौड़ में बिगड़ गया है सा‍माजिक तानाबाना : प्रो. शफीक
तरुण शुक्ल की मौत को लेकर पूछे गए सवाल पर दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र विभाग में प्रो. शफीक अहमद कहते हैं कि विकास की अंधी दौड़ में समाज का तानाबाना बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। पढ़-लिखकर बेटे-बेटी अपना कैरियर संवारने दूसरी जगह चले गए। एक तरफ परिवार में कोई आपके साथ बैठकर बात करने वाला नहीं है। सभी अपने-अपने काम में व्यस्त हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति अकेलेपन का शिकार हो जाता है। दूसरी तरफ इस अकेलेपन और इससे उपजे घुटन को लेकर लोग विभिन्न वजहों से परिवार से बाहर किसी से चर्चा करने से बचते हैं। पहले परिवार और समाज नाम की संस्था ऐसी स्थिति से उबरने में मदद करती थी लेकिन अब व्यक्ति के जीवन में इन दोनों संस्थाओं का दखल न के बराबर रह गया है। अकेलेपन की इस स्थिति में कोई भी व्यक्ति आत्मघाती निर्णय ले सकता है। तरुण शुक्ल ने ऐसा क्यों किया? इसका गहराई से अध्ययन किए जाने की जरूरत है। 

गहराई से हो रही छानबीन : एसएसपी
गोरखपुर के एसएसपी शलभ माथुर माथुर ने कहा कि प्रथम दृष्टया मामला खुदकुशी का ही प्रतीत हो रहा है लेकिन कुछ सवाल हैं, जिनका जवाब मिलना जरूरी है। पूरे मामले की गहराई से छानबीन जारी है। जांच पूरी होने पर सच्चाई सामने आ जाएगी।


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