बिंब-प्रतिबिंब- दो पाट में फंसी नेताजी की नेतागिरी Gorakhpur News
पढ़ें- गोरखपुर से डॉ. राकेश राय का साप्ताहिक कॉलम बिंब-प्रतिबिंब
गोरखपुर, जेएनएन। देश के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक दल के शिक्षक नेता इन दिनों अपनी दोहरी नेतागिरी के चलते गहरे कशमकश में हैं। यह स्थिति दल के एक फैसले से बनी है। फैसला है- शिक्षक एमएलसी चुनाव में दल के प्रत्याशी को मैदान में उतारने का। अबतक इस चुनाव में शिक्षक गुटों की ही राजनीति चलती आई है। राजनीतिक दल के इस फैसले से वह नेता दो पाट में फंस गए हैं, जिनका गुट तो प्रतिस्पर्धी प्रत्याशी से अलग है पर दल एक। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वह दल से दगा करें या फिर गुट से। निर्णय इसलिए आसान नहीं कि चुनाव के बाद भी उन्हें अपनी दोहरी नेतागिरी कायम रखनी है। ज्यादा संकट उन निष्ठावान नेताओं के सामने हैं, जो अबतक न केवल दोनों संगठनों के प्रति अपनी निष्ठा का दावा करते रहे हैं बल्कि समय-समय पर इसे साबित करने भी हर संभव कोशिश करते भी देखे गए हैं।
मोबाइल कॉल है नेताजी का इलाज
यूं तो नेताओं की पहचान ही भाषण से होती है लेकिन जब यह बीमारी का रूप ले ले तो स्थिति विकट हो जाती है। ऐसी ही बीमारी से पीडि़त है देश के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक दल के एक छोटे नेता। बड़े मंचों पर उन्हें भाषण का मौका मिलता नहीं, छोटा मंच वह चूकते नहीं। अगर एक बार माइक पा गए तो आधे घंटे की छुट्टी। पहले तो नेताजी की इस आदत से साथी काफी परेशान रहते थे लेकिन अब उन्होंने उनसे बचने का रास्ता खोज निकाला है। दरअसल नेताजी टोकने पर भाषण भूल जाते हैं। लिहाज में उन्हें सीधे तो टोका नहीं जा सकता, सो इसके लिए साथी मोबाइल कॉल का इस्तेमाल कर रहे। जैसे ही नेताजी भाषण के फ्लो में आते हैं, एक कॉल से उनकी जुबां पर विराम लग जाता है। वह कॉल करने वाले को भला-बुरा जरूर कहते हैं, पर साथियों को उनसे निजात मिल जाती है।
आधी छोड़ पूरी को धावें...
मशहूर बालीवुड सिंगर का फीस वापसी प्रकरण इन दिनों जिले के आला-अफसरों के गले की हड्डी बन गया है। उनकी हालत पर 'आधी छोड़ पूरी को धावें, आधी मिली न पूरी पांवेंÓ कहावत पूरी तरह चरितार्थ हो रही है। राष्ट्रीय शोक घोषित होने की वजह से बालीवुड सिंगर का कार्यक्रम जब नहीं हो सका तो अफसर उस पैसे की वापसी को लेकर सख्त हो गए, जो सिंगर को एडवांस के तौर पर दिए गए थे। संवाद बढ़ा तो सिंगर सहृदयता दिखाते हुए करार की शर्तो को दरकिनार कर एडवांस की आधी रकम वापस करने को तैयार हो गए। पर अफसर तो ठहरे अफसर, उन्हें तो हर हाल में पूरी रकम ही चाहिए। सो विधिक कार्रवाई की धमकी के साथ चिट्ठी जारी कर दी। फिर तो सिंगर ने टका सा जवाब दे दिया है। सिंगर के जवाब के बाद अफसरों के समझ में नहीं आ रहा कि वह अब क्या करें।
...तो थाने पर काहें जाएं ?
प्रदेश के मुखिया जब भी शहर में होते हैं, उनका सुबह का एक घंटा फरियादियों के बीच जरूर गुजरता है। इसे वह अपनी जिम्मेदारी मानते हैं। उधर फरियादी भी उनपर अपना इस कदर अधिकार समझते हैं कि छोटे से छोटे दर्द को बयां करने के लिए सीधे उन तक पहुंच जाते हैं। इसकी बानगी बीते दिनों तब देखने को मिली जब मुखिया दर्द बांटने के लिए लोगों के बीच थे और एक फरियादी घरेलू मारपीट में मुकदमा दर्ज कराने का प्रार्थना पत्र लेकर उनके सामने। इससे पहले कि मुखिया उस तक पहुंचते, एक पुलिस अफसर ने उसका प्रार्थना-पत्र लेकर जब पूछताछ की तो पता चला कि वह थाने न जाकर सीधे वहां चला आया है। इसे लेकर अफसर ने जब उसकी काउंसिलिंग करने की कोशिश की तो जवाब सुनकर दंग रह गए। जवाब था, जब मुखिया शहर के हैं तो थाने पर काहें जाएं, सीधे उन्हीं से अपनी बात न कहें?